Vat Savitri Vrat 2025 | वट सावित्री व्रत में सुहागनें क्यों करती हैं बरगद के पेड़ की पूजा | जाने महत्व

Vat Savitri Vrat 2025 Date: वट सावित्री व्रत की तिथि को लेकर हर साल लोगों में भ्रम की स्थिति बनी रहती है। कोई इसे 26 मई को मानता है, तो कोई 10 जून को। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सही तारीख क्या है? दरअसल, यह व्रत वर्ष में दो बार मनाया जाता है—पहली बार ज्येष्ठ अमावस्या के दिन और दूसरी बार ज्येष्ठ पूर्णिमा को। इसी कारण कई लोग यह सोचकर उलझन में पड़ जाते हैं कि एक ही पर्व दो बार कैसे हो सकता है।

 वट सावित्री
Vat Savitri Vrat 2025 Date

उत्तर भारत के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पंजाब और हरियाणा में अमावस्या तिथि को यह व्रत किया जाता है, जबकि महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत में इसे पूर्णिमा के दिन मनाने की परंपरा है। आइए जानते हैं कि इस साल वट सावित्री व्रत किन-किन तारीखों पर पड़ रहा है और किस क्षेत्र में कौन-सी तिथि मान्य है।

वट सावित्री व्रत 2025 तिथि, समय (Vat Savitri Vrat 2025 Date and Time)

वर्ष 2025 में वट सावित्री व्रत दो बार मनाया जाएगा। पहली बार यह व्रत 26 मई 2025 को ज्येष्ठ अमावस्या के दिन रखा जाएगा, जबकि दूसरी बार 10 जून 2025 को यह व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन रखा जाएगा। अमावस्या तिथि वाला व्रत अधिकतर उत्तर भारत में प्रचलित है, वहीं पूर्णिमा तिथि का पालन पश्चिम और दक्षिण भारत में किया जाता है।

वट सावित्री व्रत का महत्व क्या है? (Vat Savitri Vrat 2025 Mahtava)

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वट सावित्री व्रत महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, वैवाहिक सुख और संतान की प्राप्ति के उद्देश्य से करती हैं। यह व्रत देवी सावित्री और उनके पति सत्यवान से जुड़ी पौराणिक कथा पर आधारित है। कहा जाता है कि इसी दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लेकर, अपने दृढ़ संकल्प और पतिव्रत धर्म का परिचय दिया था। इस दिन व्रत रखने से महिलाओं को अटूट दांपत्य सुख की प्राप्ति होती है।

वट सावित्री व्रत कैसे करें? (Vat Savitri Vrat Kaise Kare)

वट सावित्री व्रत के दिन व्रती महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करती हैं और सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करती हैं। इसके बाद श्रृंगार करके वट वृक्ष के पास साफ-सफाई कर, पूजा की तैयारियां की जाती हैं। फिर व्रती महिलाएं धूप और अगरबत्ती जलाकर वटवृक्ष की सात बार परिक्रमा करती हैं। इसके पश्चात व्रत की कथा पढ़ी जाती है और प्रसाद अर्पण कर भोग लगाया जाता है। अंत में जरूरतमंदों को भोजन और दान देकर व्रत का समापन किया जाता है। इस दिन मानसिक शांति बनाए रखें, किसी से विवाद न करें और किसी के प्रति अपमानजनक विचार न रखें।

बरगद का धार्मिक महत्व

बरगद का वृक्ष केवल एक साधारण पेड़ नहीं है, यह हिंदू परंपरा में दिव्यता का प्रतीक माना जाता है। इसे ‘अक्षय वट’ कहा जाता है क्योंकि इसमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों देवताओं का वास माना गया है। धार्मिक मान्यता अनुसार, इसकी जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु और शाखाओं में शिव का निवास होता है। वहीं, इसकी लटकती जटाएं मां सावित्री का स्वरूप मानी जाती हैं, जो पतिव्रता धर्म और संतान की कामना की देवी हैं। बरगद का पेड़ न केवल शरीर को छांव देता है, बल्कि यह आत्मा को भी संतुलन और शांति प्रदान करता है।

वट सावित्री व्रत में वटवृक्ष की पूजा क्यों की जाती है?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प और पतिव्रता धर्म से यमराज को भी झुका दिया था और अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले आई थीं। व्रत के दिन बरगद के पेड़ की पूजा इसी समर्पण और आस्था का प्रतीक मानी जाती है। यह विश्वास किया जाता है कि वटवृक्ष के नीचे विधिवत पूजा करने से स्त्रियों को अखंड सौभाग्य और वैवाहिक सुख का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

वट सावित्री व्रत में बरगद के नीचे क्या करें दान? (Vat Savitri Vrat Daan)

इस व्रत के अवसर पर 7 या 11 सुहागिन स्त्रियों को साड़ी, सिंदूर, चूड़ी, बिंदी आदि सुहाग सामग्री का दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह दान समर्पण और शुभता का प्रतीक है। मान्यता है कि इस दिन किए गए दान से वैवाहिक जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और संतान सुख की प्राप्ति होती है। साथ ही, त्रिदेव की कृपा बनी रहती है और जीवन में सुख-शांति और प्रेम का संचार होता है।

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