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Varalaxmi Vrat 2024 :वरलक्ष्मी व्रत 2024 में कब है, तिथि, महत्व और क्या है पौराणिक कथा

वरलक्ष्मी व्रत, हिंदू धर्म में विवाहित महिलाओं द्वारा मनाए जाने वाले महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। यह व्रत धन की देवी, माता लक्ष्मी की विशेष पूजा के लिए समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन माता लक्ष्मी की विधिपूर्वक आराधना करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और जीवन में सौभाग्य का वास होता है। आइए, इस लेख में हम विस्तार से जानें कि वरलक्ष्मी व्रत 2024 में कब है, इसका क्या महत्व है, इससे जुड़ी पौराणिक कथा क्या है और इसकी पूजा विधि कैसी है।

Varalaxmi Vrat 2024

वरलक्ष्मी व्रत 2024: तिथि और मुहूर्त (Varalaxmi Vrat 2024 Date & Tithi)

वरलक्ष्मी व्रत हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को मनाया जाता है। वर्ष 2024 में, यह शुभ व्रत शुक्रवार, 16 अगस्त को पड़ेगा। इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए कई शुभ मुहूर्त हैं, जिनका आप अपनी सुविधा अनुसार चयन कर सकते हैं।

  • शुभ मुहूर्त: सुबह 9:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक
  • अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:13 बजे से 12:58 बजे तक
  • लाभ मुहूर्त: दोपहर 1:34 बजे से 2:19 बजे तक

वरलक्ष्मी व्रत का महत्व (Varalaxmi Vrat Significance)

वरलक्ष्मी व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन विवाहित महिलाएं न केवल अपने सुख-शांति के लिए बल्कि अपने परिवार के कल्याण के लिए भी देवी लक्ष्मी की आराधना करती हैं। ऐसा माना जाता है कि विधिपूर्वक की गई वरलक्ष्मी पूजा से घर में धन-धान्य का आगमन होता है, संतान प्राप्ति का सुख मिलता है, पति की आयु लंबी होती है और परिवार में सौहार्द का वातावरण बनता है। जीवन में आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।

इस व्रत का महत्व इस बात में भी है कि यह केवल स्त्रियों द्वारा ही नहीं, पुरुषों द्वारा भी किया जा सकता है। माना जाता है कि दंपति मिलकर वरलक्ष्मी व्रत का पालन करते हैं, तो उन्हें विशेष फल प्राप्त होते हैं और उनका वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है।

वरलक्ष्मी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा (Varalaxmi Vrat Katha)

वरलक्ष्मी व्रत से जुड़ी एक प्रचलित कथा है, जो इस व्रत के महत्व को और भी अधिक उजागर करती है। कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी समुद्र से प्रकट हुईं। उनकी दिव्य छवि को देखकर सभी देवता मंत्रमुग्ध हो गए। देवी लक्ष्मी ने सभी देवताओं को मनचाहे वरदान दिए।

उसी समय वहां एक गरीब ब्राह्मणी, चंद्रभागा भी मौजूद थीं। उन्होंने भी देवी लक्ष्मी से वरदान मांगा, लेकिन देवी लक्ष्मी ने उन्हें कोई वरदान नहीं दिया। इससे निराश होकर चंद्रभागा ने देवी लक्ष्मी की कठोर तपस्या करने का निश्चय किया। उन्होंने कई वर्षों तक कठोर परिश्रम और निष्ठा के साथ देवी लक्ष्मी की पूजा की। उनकी अदम्य श्रद्धा से प्रसन्न होकर अंततः देवी लक्ष्मी ने उन्हें दर्शन दिए और मनचाहा वरदान दिया।

तभी से, चंद्रभागा द्वारा की गई कठिन तपस्या को याद करते हुए, श्रावण शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को वरलक्ष्मी व्रत का पालन किया जाने लगा।

वरलक्ष्मी पूजा विधि: विधि-विधान से पाएं माता का आशीर्वाद

वरलक्ष्मी व्रत को मनाने के लिए कई महत्वपूर्ण विधियां हैं। इन विधियों का पालन करने से पूजा का फल उत्तम प्राप्त होता है और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है। आइए, विस्तार से जानें वरलक्ष्मी पूजा विधि के बारे में:

पूजा की तैयारी (पूर्व रात्रि):

वरलक्ष्मी व्रत से एक दिन पहले यानी पूजा वाले दिन की पूर्व रात्रि में ही तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।

  • सबसे पहले पूजा स्थल की साफ-सफाई करें और उसे स्वच्छ जल से धो लें।
  • पूजा स्थल को रंगोली से सजाएं और आम के पत्तों को बिछाएं।
  • कलश की स्थापना के लिए मिट्टी या तांबे का एक कलश लें और उसे अच्छी तरह से धो लें।
  • कलश में शुद्ध जल भरें और उसमें आम के पत्ते और मौली (लाल रंग का सूत) बांध दें।
  • नारियल को साफ करके उस पर भी मौली बांध दें।

पूजा का दिन (प्रातःकाल):

पूजा के दिन सुबह जल्दी उठें और स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

  • पूजा स्थल पर आसन बिछाएं और उस पर कलश स्थापित करें।
  • कलश के चारों ओर रोली और चावल का चौकोर आकार बनाएं।
  • कलश के ऊपर नारियल रखें और सिंदूर से उसका टीका लगाएं।
  • देवी लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें और उनका स्नान कराएं।
  • देवी लक्ष्मी को वस्त्र और आभूषण अर्पित करें।
  • हल्दी, कुमकुम, और चंदन का टीका लगाएं।
  • पुष्पांजलि अर्पित करें।

षोडशोपचार पूजा:

हिंदू धर्म में पूजा के दौरान षोडशोपचार विधि का विशेष महत्व है। वरलक्ष्मी पूजा में भी इस विधि का पालन किया जाता है। षोडशोपचार में सोलह तरह की सामग्रियों से देवी का पूजन किया जाता है।

  • आवाहन: देवी लक्ष्मी का पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर का मिश्रण) से आवाहन करें।
  • आसन: देवी लक्ष्मी को आसन अर्पित करें।
  • पाद्य: देवी लक्ष्मी के चरणों को धोने के लिए जल अर्पित करें।
  • अर्घ्य: देवी लक्ष्मी को पुष्प और जल से अर्घ्य दें।
  • आचमन: देवी लक्ष्मी को आचमन के लिए जल अर्पित करें।
  • स्नान: देवी लक्ष्मी को पंचामृत या शुद्ध जल से स्नान कराएं।
  • वस्त्र: देवी लक्ष्मी को वस्त्र अर्पित करें।
  • आभूषण: देवी लक्ष्मी को आभूषण पहनाएं।
  • गंध: देवी लक्ष्मी को सुगंध अर्पित करें।
  • पुष्प: देवी लक्ष्मी को पुष्पांजलि अर्पित करें।
  • धूप: देवी लक्ष्मी को धूप दिखाएं।
  • दीप: देवी लक्ष्मी के समक्ष दीप जलाएं।
  • नैवेद्य: देवी लक्ष्मी को भोजन का भोग लगाएं।
  • तांबूल: देवी लक्ष्मी को पान का बीड़ा अर्पित करें।
  • दक्षिणा: पूजा के अंत में ब्राह्मणों को दक्षिणा दें।
  • मंत्र जाप: पूजा के दौरान “ॐ श्रीं वरलक्ष्म्यै नमः” मंत्र का जाप करें।

वरलक्ष्मी व्रत के उपरांत

पूजा संपन्न होने के बाद वरलक्ष्मी व्रत का पारण (व्रत तोड़ना) किया जाता है। पारण से पहले घर की अन्य महिलाओं को भी प्रसाद ग्रहण करने के लिए आमंत्रित किया जाता है।

  • पूजा स्थल पर बैठकर देवी लक्ष्मी का ध्यान करें और उन्हें प्रार्थना करें।
  • प्रार्थना के पश्चात् भोजन ग्रहण करें। भोजन सात्विक और शुद्ध होना चाहिए।
  • प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रत का संकल्प तोड़ें।

वरलक्ष्मी व्रत के कुछ नियम और सावधानियां

वरलक्ष्मी व्रत को विधिपूर्वक संपन्न करने के लिए कुछ नियमों और सावधानियों का पालन करना आवश्यक होता है:

  • व्रत रखने वाली महिलाओं को सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए।
  • पूरे दिन व्रत रखना चाहिए। आप चाहें तो एक समय सात्विक भोजन कर सकती हैं।
  • व्रत के दौरान मांस, मदिरा, और लहसुन-प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • पूरे दिन क्रोध और ईर्ष्या जैसे नकारात्मक भावों से दूर रहना चाहिए।
  • पूजा के दौरान साफ-सुथरे वस्त्र पहनें।
  • पूजा स्थल को साफ रखें।
  • पूजा विधि का यथासंभव पालन करने का प्रयास करें।

वरलक्ष्मी व्रत का विज्ञान

धार्मिक आस्था के साथ-साथ वरलक्ष्मी व्रत का वैज्ञानिक महत्व भी है। पूजा के दौरान किया जाने वाला मंत्र जप और धूप जलाना वातावरण को शुद्ध बनाता है। साथ ही, व्रत रखने से शरीर को आराम मिलता है और पाचन तंत्र को भी लाभ होता है।

वरलक्ष्मी व्रत का सामाजिक महत्व (Varalaxmi Vrat Importance)

वरलक्ष्मी व्रत का सामाजिक महत्व भी कम नहीं है। इस दिन महिलाएं एकत्रित होकर पूजा करती हैं और मिल-जुलकर भोजन ग्रहण करती हैं। इससे आपसी सौहार्द और सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं।

उपसंहार (Conclusion)

वरलक्ष्मी व्रत सुख-समृद्धि का प्रतीक है। इस व्रत को करने से माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और घर में सुख-शांति का वास होता है। उम्मीद है कि इस लेख में दी गई जानकारी आपको वरलक्ष्मी व्रत को मनाने में सहायक होगी। शुभ व्रत और माता लक्ष्मी की कृपा आप पर सदैव बनी रहे।

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