Vaman Dwadashi 2025 Date: भगवान विष्णु को समर्पित पवित्र वामन द्वादशी का पर्व वर्ष में दो बार श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। पहली वामन द्वादशी चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को आती है, जबकि दूसरी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। वामन भगवान, विष्णु जी के दस प्रमुख अवतारों में पांचवें अवतार के रूप में पूजनीय हैं।
वामन जयंती, भगवान विष्णु के वामन स्वरूप में अवतरण दिवस के सम्मान में मनाई जाती है। भागवत पुराण के अनुसार, वामन अवतार त्रेता युग में भगवान विष्णु का पहला अवतार था, जिसमें उन्होंने दैत्यराज बलि के अहंकार का नाश कर धर्म की पुनः स्थापना की थी।

वामन देव की पूजा का महत्व
हिंदू धर्म में वामन देव की पूजा अत्यंत श्रद्धा और आस्था के साथ की जाती है। भगवान वामन, श्री हरि विष्णु के अवतार हैं, जो ब्राह्मण बालक के रूप में पृथ्वी पर प्रकट हुए थे। उनका यह दिव्य अवतार देवताओं और दैत्यों के बीच शक्ति का संतुलन स्थापित करने तथा धर्म की रक्षा के लिए हुआ था। वामन द्वादशी के अवसर पर भक्त विशेष रूप से उनकी आराधना करते हैं। यह पावन दिन अच्छाई की बुराई पर और भक्ति की अहंकार पर विजय का प्रतीक माना जाता है।
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान वामन की पूजा-अर्चना करने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही उनके पिछले जन्मों के पाप और दुखों का नाश हो जाता है। ऐसा भी विश्वास है कि भगवान विष्णु अपने उपासकों को सभी सांसारिक सुख, समृद्धि और आनंद से परिपूर्ण कर देते हैं।
वामन द्वादशी का शुभ मुहूर्त
वामन द्वादशी व्रत वर्ष 2025 में 09 अप्रैल, बुधवार को शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर मनाया जाएगा। इस बार द्वादशी तिथि का प्रारंभ 08 अप्रैल की रात 9 बजकर 12 मिनट पर होगा, जबकि इसका समापन 09 अप्रैल की रात 10 बजकर 55 मिनट पर होगा। इस पावन तिथि पर श्रद्धालु भगवान वामन की पूजा-अर्चना कर व्रत का पालन करेंगे।
वामन जयंती की पूजा विधि
वामन जयंती के दिन प्रातःकाल शीघ्र उठकर स्नान आदि से शुद्ध होकर पूजा आरंभ करें। पूजा स्थल पर एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु के वामन अवतार की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। मान्यता है कि इस दिन श्रवण नक्षत्र में पूजा करना अत्यंत शुभ फलदायी होता है। भगवान को रोली, पीले पुष्प, नैवेद्य, दही और मिश्री का भोग अर्पित करें। पूजा के दौरान वामन अवतार की कथा का श्रवण या पाठ करें, तत्पश्चात आरती करें और प्रसाद का वितरण करें। विशेषकर, श्रवण नक्षत्र में की गई पूजा को सर्वोत्तम माना गया है।
वामन द्वादशी व्रत कथा
त्रेता युग में भगवान विष्णु के पंचम अवतार, भगवान वामन के अवतरण दिवस को ही वामन जयंती के रूप में मनाया जाता है। माना जाता है कि भगवान वामन का जन्म भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को, अभिजीत मुहूर्त एवं श्रवण नक्षत्र में हुआ था। यही कारण है कि इस पावन अवसर को वामन द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है।
भगवान वामन, त्रेता युग में अवतरित होने वाले श्री विष्णु के प्रथम अवतार थे, जबकि इससे पहले उनके चार अवतार सतयुग में प्रकट हुए थे। वामन अवतार को श्री विष्णु का पहला पूर्ण मानव अवतार भी माना जाता है। उनका जन्म माता अदिति और महर्षि कश्यप के पुत्र रूप में इस धरती पर हुआ था।
श्री जयदेव गोस्वामी द्वारा रचित श्रीगीतगोविन्दम् के दशावतार स्तोत्र में भी भगवान वामन को श्री हरि का पाँचवाँ अवतार बताया गया है—
छलयसि विक्रमणे बलिमद्भुतवामन ।
पदनखनीरजनितजनपावन ।
केशव धृतवामनरुप जय जगदीश हरे ॥५॥
अर्थात— हे जगत के स्वामी श्रीहरि! हे केशव! आपने अद्भुत वामन रूप धारण कर दैत्यराज बलि से तीन पग भूमि याचना के बहाने उसका अहंकार तोड़ा। आपके चरण-कमलों के नखों से बहने वाला पवित्र जल सम्पूर्ण लोक को शुद्ध कर रहा है। हे अद्भुत वामन देव, आपकी जय हो!
वामन द्वादशी पर दान का महत्व
वामन द्वादशी का व्रत एवं पूजा सम्पन्न करने के बाद एक पात्र में एक कटोरी चीनी, एक कटोरी चावल और एक कटोरी दही रखकर ब्राह्मण को दान करें। इस दिन सफेद वस्तुओं का दान अत्यंत शुभ माना जाता है। इसके अतिरिक्त, ब्राह्मणों को माला, आसन, वस्त्र, फल तथा श्रीमद्भगवद्गीता का दान भी किया जा सकता है। ऐसा करने से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को सुख-समृद्धि एवं आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
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