हिन्दू धर्म में तुलसी विवाह को अत्यधिक शुभ और पवित्र माना जाता है। यह उत्सव भगवान विष्णु और माता तुलसी के मिलन का प्रतीक है। इस दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप और तुलसी के पौधे का विवाह किया जाता है। यह विवाह हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व को लेकर पूरे भारत में बड़ी धूमधाम और श्रद्धा के साथ तैयारी की जाती है। तुलसी विवाह का आयोजन मुख्य रूप से उत्तर और पश्चिम भारत में होता है, और इसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का एक प्रमुख तरीका माना जाता है।
तुलसी विवाह का महत्व (Tulsi Vivah Mahatva)
हिन्दू धर्म में विवाह को सबसे पवित्र संस्कारों में से एक माना गया है। तुलसी विवाह उसी पवित्रता का प्रतीक है और इसे भगवान विष्णु और माता तुलसी के मिलन के रूप में मनाया जाता है। तुलसी विवाह के आयोजन से घर-परिवार में सुख, शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और तुलसी का विवाह करवाने से सभी प्रकार की समस्याएं दूर होती हैं और जीवन में मंगलकारी बदलाव आते हैं। यह दिन विशेष रूप से हिंदू शादियों के मौसम की शुरुआत का प्रतीक भी है, और इसके बाद विवाह और अन्य मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है।
तुलसी विवाह मुहूर्त (Tulsi Vivah Date & Time)
तुलसी विवाह- 13 नवंबर 2024
द्वादशी तिथि प्रारंभ- 12 नवंबर 2024, शाम- 04:04 मिनट से
द्वादशी तिथि समापत – 13 नवंबर 2024 दोपहर – 01:01 मिनट
तुलसी विवाह की तिथि और आयोजन
तुलसी विवाह हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से लेकर पूर्णिमा तक कभी भी मनाया जा सकता है। सामान्यतया, इसे देवउठनी एकादशी के दिन मनाया जाता है, जब भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं। यह दिन अत्यंत शुभ होता है और इसे शुभ कार्यों की शुरुआत के रूप में देखा जाता है। विवाह समारोह में तुलसी के पौधे को दुल्हन के रूप में सजाया जाता है और भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप की प्रतिमा के साथ उसका विवाह किया जाता है। इस आयोजन में पारंपरिक हिंदू विवाह की सभी रस्में निभाई जाती हैं।
रीति-रिवाज और परंपराएं (Tulsi Vivah Rituals)
तुलसी विवाह के रीति-रिवाज सामान्य हिंदू विवाह के समान ही होते हैं। इस दिन व्रत रखा जाता है और संध्याकाल में विवाह का आयोजन किया जाता है। विवाह समारोह की तैयारी के लिए पहले फूलों और रंगोली से मंडप बनाया जाता है। तुलसी के पौधे को दुल्हन की तरह सजाया जाता है, जिसमें उसे लाल साड़ी और गहनों से शृंगारित किया जाता है। भगवान विष्णु की प्रतिमा या शालिग्राम को धोती पहनाई जाती है और दोनों को धागे से बांधकर विवाह की रस्में पूरी की जाती हैं। यह आयोजन मंदिर और घर दोनों स्थानों पर किया जा सकता है।
तुलसी विवाह की कथा (Tulsi Vivah Katha)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, तुलसी विवाह की कथा राक्षस जालंधर और उसकी पत्नी वृंदा से जुड़ी है। वृंदा अपने पतिव्रता धर्म के कारण जालंधर को अजेय बना रही थी। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण कर वृंदा का सतीत्व भंग किया, जिससे जालंधर युद्ध में मारा गया। इस छल से क्रोधित होकर वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि उन्हें भी स्त्री वियोग सहना पड़ेगा। इसी कारण भगवान विष्णु ने राम अवतार में सीता माता का वियोग सहा। वृंदा के सती होने के बाद उसके शरीर से तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। तुलसी को भगवान विष्णु की सबसे प्रिय माना जाता है, इसलिए उनका विवाह भगवान के साथ किया जाता है।
तुलसी विवाह का धार्मिक और सामाजिक महत्व
तुलसी विवाह का धार्मिक महत्व अत्यधिक है, क्योंकि यह भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी के अवतार तुलसी के बीच एक पवित्र मिलन को दर्शाता है। यह आयोजन न केवल धार्मिक उत्सव होता है, बल्कि समाज में एकता और प्रेम का प्रतीक भी है। समाज के विभिन्न वर्गों के लोग इस आयोजन में एकजुट होकर भाग लेते हैं। तुलसी विवाह के आयोजन से जीवन में शुभता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। माना जाता है कि जो लोग इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन करते हैं, उनके घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
तुलसी विवाह के दिन का उपवास और पूजा
तुलसी विवाह के दिन विवाहित महिलाएं और अविवाहित कन्याएं उपवास रखती हैं। विवाहित महिलाएं इस उपवास को अपने पति और परिवार के कल्याण के लिए करती हैं, जबकि अविवाहित कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती हैं। इस दिन तुलसी के पौधे के समक्ष दीप जलाया जाता है और तुलसी माता की विशेष पूजा की जाती है। तुलसी विवाह के पश्चात प्रसाद वितरण होता है और सभी भक्तों को प्रसाद ग्रहण करने का अवसर मिलता है।
तुलसी विवाह का आध्यात्मिक महत्व
तुलसी विवाह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि इसके पीछे आध्यात्मिक संदेश भी छिपा है। यह विवाह भगवान विष्णु और प्रकृति के बीच के संबंध को दर्शाता है, जो यह बताता है कि ईश्वर और प्रकृति एक-दूसरे के पूरक हैं। तुलसी का पौधा भारतीय संस्कृति में पवित्र माना जाता है और उसके साथ भगवान विष्णु का विवाह करवाना ईश्वर और प्रकृति की एकता को मान्यता देने जैसा है।
निष्कर्ष
तुलसी विवाह का दिन हिन्दू धर्म में अत्यंत शुभ और मंगलकारी माना जाता है। यह दिन भगवान विष्णु और तुलसी माता के मिलन का प्रतीक है और इस दिन को पूरे धूमधाम से मनाया जाता है। तुलसी विवाह के आयोजन से घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है। इस पवित्र आयोजन का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व इतना अधिक है कि इसे हिंदू समाज में विवाह के शुभारंभ का दिन माना जाता है। जो लोग तुलसी विवाह का आयोजन करते हैं, उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।