Tilak Importance On Forehead: माथे के बीच में स्थित होता है ‘आज्ञा चक्र‘, जो इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों का मिलन स्थल है। तिलक सदैव इसी आज्ञा चक्र पर लगाया जाता है, जिसे चेतना का केंद्र भी कहा जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो चंदन का तिलक लगाने से मस्तिष्क में शांति, ताजगी और शीतलता बनी रहती है। इससे मस्तिष्क में सेरोटोनिन और बीटा-एंडोर्फिन जैसे रसायनों का संतुलन बना रहता है, जिससे स्मरण शक्ति और मानसिक क्षमता में वृद्धि होती है।

तिलक लगाते समय सिर पर हाथ रखने का भी एक विशेष कारण है। ऐसा करने से सकारात्मक ऊर्जा शीर्ष चक्र पर एकत्रित होती है और विचारों में शुद्धता तथा सकारात्मकता आती है।
Tilak On Forehead: अक्सर यह प्रश्न उठता है कि पूजा-पाठ या किसी धार्मिक अनुष्ठान के समय तिल क लगाने का क्या महत्व है और किस प्रकार का चंदन उपयोग करना चाहिए। धार्मिक दृष्टि से तिलक लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है। पूजा के दौरान जब भगवान को स्नान कराया जाता है, तो उन्हें भी चंदन का तिल क लगाया जाता है। पूजन करने वाला स्वयं भी अपने मस्तक पर चंदन का तिलक लगाता है। चंदन की सुगंध न केवल वातावरण को पवित्र बनाती है, बल्कि उसके शीतल गुण मन और तन को भी शांति प्रदान करते हैं।
भगवान को चंदन अर्पित करने का महत्व
भगवान को चंदन अर्पित करने का भाव यह है कि उनके आशीर्वाद से हमारा जीवन सुगंधित और शांतिपूर्ण बन जाए। इसका उद्देश्य यह है कि हम अपना व्यवहार सौम्य रखें और हर परिस्थिति में शांत चित्त से निर्णय लें। जब हम उत्तेजना में कार्य करते हैं, तो अक्सर गलतियां हो जाती हैं। चंदन का तिलक लगाने से उत्तेजना पर नियंत्रण पाया जा सकता है। पारंपरिक रूप से चंदन का तिलक ललाट पर या दोनों भौहों के बीच एक छोटी बिंदी के रूप में लगाया जाता है।
चंदन तिलक का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो चंदन का तिलक लगाने से मस्तिष्क में ठंडक, ताजगी और मानसिक शांति बनी रहती है। इससे मस्तिष्क में सेरोटोनिन और बीटा-एंडोर्फिन जैसे रसायनों का संतुलन बेहतर होता है, जिससे मानसिक शक्ति बढ़ती है और थकान जैसी समस्याएं नहीं होतीं।
मस्तिष्क के बीचों-बीच, भौंहों के मध्य, जहाँ तिलक या टीका लगाया जाता है, वह स्थान ‘आज्ञा चक्र’ कहलाता है। शरीर विज्ञान के अनुसार, यहां ‘पीनियल ग्रंथि’ (Pineal Gland) स्थित होती है। जब इस ग्रंथि को सक्रिय किया जाता है, तो मस्तिष्क में प्रकाश जैसा अनुभव होता है। विभिन्न प्रयोगों से यह तथ्य प्रमाणित हो चुका है। हमारे प्राचीन ऋषियों ने भी इस रहस्य को गहराई से समझा था और इसी कारण पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान और शुभ कार्यों में तिलक लगाने की परंपरा प्रचलित हुई, ताकि बार-बार इस केंद्र के उद्दीपन से हमारे स्थूल और सूक्ष्म शरीर के अंग जागृत हो सकें।
तिलक लगाने की भारतीय परंपरा और उसका महत्व
भारत को छोड़कर विश्व के अन्य किसी भी देश में मस्तक पर तिलक लगाने की परंपरा प्रचलित नहीं है। यह प्रथा अत्यंत प्राचीन काल से चली आ रही है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, मानव के माथे के मध्य भाग में भगवान विष्णु का वास माना गया है, और तिलक इसी पवित्र स्थान पर लगाया जाता है।
मनोविज्ञान की दृष्टि से भी तिलक लगाने के कई लाभ बताए गए हैं। माथा चेहरे का सबसे आकर्षक और केंद्रित भाग होता है, जहाँ स्वाभाविक रूप से लोगों की दृष्टि टिकती है। जब माथे के बीचों-बीच तिलक लगाया जाता है, विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा, तो यह देखने वालों का ध्यान आकर्षित करने का कार्य करता है।
स्त्रियां प्रायः लाल कुंकुम का तिलक लगाती हैं, जो केवल सजावट का माध्यम नहीं है, बल्कि इसका गहरा अर्थ है। लाल रंग ऊर्जा, उत्साह और जीवन शक्ति का प्रतीक होता है। तिलक न केवल सौंदर्य में वृद्धि करता है, बल्कि यह देवी आराधना से भी जुड़ा हुआ है। पूजा-अर्चना के बाद माथे पर तिलक लगाना देवी के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है, जो साधक के जीवन में शुभता और सकारात्मकता का संचार करता है।
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