Skanda Sashti June 2025 Date: स्कंद षष्ठी व्रत एक प्रमुख हिंदू पर्व है जो भगवान मुरुगन, जिन्हें कार्तिकेय, स्कंद या सुब्रमण्य के नाम से भी जाना जाता है, को समर्पित होता है। यह व्रत प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन श्रद्धालु उपवास रखते हैं और भगवान मुरुगन की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।

यह व्रत विशेष रूप से दक्षिण भारत, खासकर तमिलनाडु में अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है, जहां इसे “कंद षष्ठी” कहा जाता है और छह दिनों तक उपवास रखा जाता है। इस अवसर पर ‘कंद षष्ठी कवचम्’ का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। कई भक्त मुरुगन मंदिरों में जाकर विशेष पूजा और अनुष्ठान करते हैं। उत्तर भारत में भी इस व्रत का धार्मिक महत्व है और कई श्रद्धालु इसे पूरे नियम और श्रद्धा से करते हैं।
जून 2025 में स्कंद षष्ठी कब? (June 2025 Skanda Sashti Date)
ज्येष्ठ मास में स्कंद षष्ठी का पावन व्रत 1 जून को मनाया जाएगा। यह व्रत 31 मई की रात 8 बजकर 15 मिनट से आरंभ होकर, 1 जून की शाम 7 बजकर 59 मिनट तक रहेगा।
जून महीने की दूसरी स्कंद षष्ठी 30 जून को मनाई जाएगी।
30 जून 2025, सोमवार स्कंद षष्ठी आषाढ़, शुक्ल षष्ठी 30 जून आरंभ – 09:23 पूर्वाह्न 01 जुलाई
समाप्त – प्रातः 10:20 बजे
स्कंद षष्ठी व्रत की पूजा विधि (Skanda Sashti Vrat Puja Vidhi)
व्रत वाले दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और घर के पूजास्थल को साफ करें। इसके बाद भगवान मुरुगन की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें। उन्हें पुष्प, फल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें। स्कंद षष्ठी व्रत की कथा का श्रवण करें या उसका पाठ करें। भगवान मुरुगन के मंत्रों का जाप करें, जैसे – “ॐ शरवण भवाय नमः”। दिन भर व्रत का पालन करें। कुछ भक्त निर्जल उपवास रखते हैं जबकि कुछ फलाहार या एक समय भोजन करते हैं। संध्या के समय आरती करें और प्रसाद बांटें। व्रत का समापन अगले दिन सूर्योदय के पश्चात किया जाता है।
स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व (Skanda Sashti Vrat Significance)
यह व्रत भगवान मुरुगन की असुरों पर विजय का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भगवान मुरुगन ने तारकासुर नामक राक्षस का अंत किया था, इसलिए यह दिन उनकी जीत के रूप में मनाया जाता है। ऐसा विश्वास है कि इस व्रत के पालन से श्रद्धालुओं को साहस, बल और सफलता की प्राप्ति होती है। साथ ही यह व्रत संतान सुख, पारिवारिक सुख-शांति और समृद्धि के लिए भी किया जाता है। कई लोग यह भी मानते हैं कि स्कंद षष्ठी व्रत के प्रभाव से मंगल ग्रह की अशुभता कम होती है।
स्कंद षष्ठी व्रत कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब राजा दक्ष के यज्ञ में माता सती ने आत्मदाह कर लिया, तब भगवान शिव गहरे शोक में डूब गए और उन्होंने संसार से विरक्ति लेकर घोर तपस्या में लीन हो गए। इस कारण सृष्टि की गति धीमी पड़ गई और ब्रह्मांड में संतुलन बिगड़ गया। उसी समय राक्षस तारकासुर ने अपनी शक्तियों से देवलोक सहित समस्त लोकों में आतंक फैलाना शुरू कर दिया। देवता लगातार पराजित हो रहे थे और अधर्म का बोलबाला बढ़ता जा रहा था।
इस संकट से उबरने के लिए देवताओं ने ब्रह्मा जी से सहायता मांगी। ब्रह्मा जी ने उन्हें बताया कि केवल भगवान शिव के पुत्र ही तारकासुर का वध कर सकते हैं। तब इंद्र सहित सभी देवताओं ने भगवान शिव को तपस्या से बाहर लाने की योजना बनाई और इसके लिए कामदेव की सहायता ली गई। कामदेव ने प्रेम बाण चलाकर भगवान शिव की समाधि भंग करने का प्रयास किया। जैसे ही शिव जी की तपस्या टूटी, वे क्रोधित हो उठे और अपनी तीसरी आंख खोल दी, जिससे कामदेव भस्म हो गए।
तपस्या भंग होने के बाद भगवान शिव का ध्यान माता पार्वती की ओर आकर्षित हुआ, जिन्होंने वर्षों तक शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। भगवान शिव ने उनकी भक्ति और समर्पण की परीक्षा ली। अंततः शुभ समय में शिव-पार्वती का विवाह संपन्न हुआ। इस दिव्य युगल से भगवान कार्तिकेय (स्कंद) का जन्म हुआ।
समय आने पर भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर देवताओं को उनका स्वर्गलोक वापस दिलाया। यह भी माना जाता है कि कार्तिकेय का जन्म षष्ठी तिथि को हुआ था, इसी कारण इस दिन को “स्कंद षष्ठी” के रूप में मनाया जाता है और भगवान मुरुगन की विशेष पूजा की जाती है।
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