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Skand Sashti 2025,Tithi,Mahtava,Katha: स्कंद षष्ठी 2025 कब है? ऐसे करें भगवान कार्तिकेय की पूजा होगी हर मनोकामना पूरी

स्कंद षष्ठी का पर्व भगवान कार्तिकेय के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। भगवान कार्तिकेय, जिन्हें युद्ध और विजय का देवता माना जाता है, की पूजा इस दिन विशेष रूप से की जाती है। इस दिन विधि-विधान से भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से बुरी शक्तियों का नाश होता है और जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।

हिंदू धर्म में इस पर्व का अत्यधिक महत्व है। मान्यता है कि स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की आराधना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन की परेशानियों से छुटकारा मिलता है। इसके अलावा, परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।

स्कंद षष्ठी
Skand Sashti Photo

स्कंद षष्ठी 2025 तिथि (Skand Sashti 2025 Date and Time)

पंचांग के अनुसार, पौष मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 4 जनवरी 2025 को रात 10 बजे प्रारंभ होगी और 5 जनवरी 2025 को रात 8:15 बजे समाप्त होगी। उदयातिथि के आधार पर स्कंद षष्ठी का पर्व 5 जनवरी 2025 को मनाया जाएगा। यह नए साल की पहली स्कंद षष्ठी होगी, जब भक्त भगवान कार्तिकेय की पूजा-अर्चना करेंगे। इस दिन भगवान कार्तिकेय की विधि-विधान से पूजा करने का विशेष महत्व है। भक्त भगवान को पुष्प, धूप, दीप और प्रसाद अर्पित करते हैं। यह पर्व जीवन में सफलता और समृद्धि लाने वाला माना जाता है। स्कंद षष्ठी के दिन पूजा-अर्चना से सभी बाधाओं का नाश होता है।

स्कंद षष्ठी पूजा विधि (Skand Sashti Puja Vidhi)

भगवान कार्तिकेय की पूजा करने के लिए सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा के लिए एक साफ और पवित्र स्थान का चयन करें और उसे फूलों और दीपक से सजाएं। भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या चित्र को एक स्वच्छ आसन पर स्थापित करें। पूजा सामग्री जैसे गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद, शक्कर, चंदन, अक्षत, फूल, धूप, दीपक और नैवेद्य को पहले से एकत्रित कर लें। भगवान के समक्ष घी का दीपक जलाएं और गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अभिषेक करें। चंदन, अक्षत और फूल अर्पित करें, विशेष रूप से कमल का फूल चढ़ाना शुभ माना जाता है। भगवान को फल, मिठाई या अन्य नैवेद्य अर्पित करें।

भगवान कार्तिकेय के मंत्रों जैसे “ॐ षडाननाय नमः”, “ॐ स्कंददेवाय नमः”, “ॐ शरवणभवाय नमः” और “ॐ कुमाराय नमः” का जाप करें। भगवान की आरती करें और स्कंद षष्ठी व्रत कथा का पाठ करें। पूजा के दौरान मन को शांत और श्रद्धा से भरा रखें। इस समय किसी भी प्रकार का विवाद या झगड़ा न करें और व्रत के नियमों का पालन करते हुए मांस-मदिरा का सेवन न करें।

स्कंद षष्ठी का महत्व (Skand Sashti Mahatva)

स्कंद षष्ठी हिंदू धर्म में भगवान कार्तिकेय को समर्पित एक प्रमुख पर्व है, जिन्हें युद्ध और विजय के देवता माना जाता है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा-अर्चना करने से भक्तों को साहस, बुद्धि और सफलता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसा विश्वास है कि उनकी पूजा से बुरी शक्तियों का नाश होता है और जीवन में शांति और समृद्धि का आगमन होता है। स्कंद षष्ठी के दिन व्रत रखने का विशेष महत्व है, खासकर संतान प्राप्ति की कामना रखने वाले भक्त इस दिन भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

स्कंद षष्ठी कथा (Skand Sashti Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार, राजा दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव की पत्नी सती ने अपमान सहन न कर यज्ञ अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे। इस घटना के बाद भगवान शिव गहरे शोक में तपस्या में लीन हो गए। शिव जी के तपस्या में लीन होने से सृष्टि शक्तिहीन हो गई, और इस कमजोरी का लाभ उठाते हुए असुर तारकासुर ने देव लोक में भयंकर आतंक मचा दिया। उसने देवताओं को पराजित कर दिया, जिससे चारों ओर भय और अराजकता फैल गई।

इस समस्या के समाधान के लिए सभी देवता ब्रह्माजी के पास पहुंचे। ब्रह्माजी ने बताया कि तारकासुर का वध केवल भगवान शिव के पुत्र के द्वारा ही संभव है। यह सुनकर देवताओं ने भगवान शिव को यह स्थिति बताई। देवताओं की प्रार्थना के बाद भगवान शिव ने तपस्या में लीन पार्वती की परीक्षा ली और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उनसे विवाह कर लिया।

विवाह के बाद भगवान शिव और माता पार्वती से एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम कार्तिकेय रखा गया। भगवान कार्तिकेय बाल्यकाल से ही वीर, बुद्धिमान और शक्तिशाली थे। उन्होंने तारकासुर के अत्याचारों को समाप्त करने के लिए युद्ध किया और उसे पराजित कर देव लोक में शांति स्थापित की।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कार्तिकेय का जन्म षष्ठी तिथि को हुआ था। इसी कारण इस दिन को स्कंद षष्ठी के रूप में मनाया जाता है। भगवान कार्तिकेय को प्रसन्न करने के लिए इस दिन उनकी पूजा-अर्चना और व्रत का विशेष महत्व है। यह कथा न केवल भगवान कार्तिकेय की महिमा को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि कड़ी तपस्या, समर्पण और सत्य के मार्ग पर चलकर हर कठिनाई को पार किया जा सकता है।

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