सीता अष्टमी का पर्व माता सीता को समर्पित है और यह हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष यह त्योहार 21 फरवरी 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान राम की पत्नी और जनक जी की पुत्री माता सीता की पूजा की जाती है। इसे जानकी जयंती के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि माता सीता का एक नाम जानकी भी था।
इस दिन महिलाएं अपने घर और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं और भगवान राम और माता सीता की विधिवत पूजा-अर्चना करती हैं। इस व्रत को करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। आइए जानते हैं सीता अष्टमी का शुभ मुहूर्त और इसके महत्व के बारे में।
सीता अष्टमी 2025 तिथि (Sita Ashtami Vrat 2025 Date and Time)
जानकी जयंती को फाल्गुन मास की सीता अष्टमी के रूप में मनाया जाता है, जो इस वर्ष 21 फरवरी 2025 को पड़ रही है। इस दिन की अष्टमी तिथि 20 फरवरी 2025 को सुबह 9:58 बजे शुरू होकर 21 फरवरी 2025 को सुबह 11:57 बजे समाप्त होगी।
सीता अष्टमी व्रत की पूजा विधि (Sita Ashtami Vrat 2025 Puja Vidhi)
सीता अष्टमी का दिन हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन सुबह स्नान करके माता सीता और भगवान राम को प्रणाम करते हुए व्रत का संकल्प लें। पूजा की शुरुआत प्रथम पूज्य भगवान गणपति और माता दुर्गा की पूजा से करें, उसके बाद माता सीता और भगवान राम की पूजा करें। माता सीता के समक्ष पीले फूल, पीले वस्त्र और श्रृंगार का सामान अर्पित करें, और भोग में पीली चीजें चढ़ाएं। आरती करें और “श्री जानकी रामाभ्यां नमः” मंत्र का 108 बार जप करें। गुड़ से बने व्यंजन तैयार करें और इनका दान करें। शाम के समय पूजा के बाद इन्हीं व्यंजनों से व्रत खोलें।
सीता अष्टमी महत्व (Sita Ashtami Vrat Mahatva)
शास्त्रों में सीता अष्टमी का विशेष महत्व है, जो माता सीता को समर्पित दिन है। इस दिन विधि-विधान से माता सीता की पूजा की जाती है। इस दिन ही जनक जी को खेत में माता सीता प्राप्त हुई थीं। बिहार में इस पर्व को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। महिलाएं अपने परिवार की खुशहाली के लिए व्रत रखती हैं और भगवान राम और माता सीता की पूजा करती हैं। इस व्रत को करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
सीता अष्टमी कथा (Sita Ashtami Vrat Katha)
रामायण महाकाव्य में माता सीता को जानकी के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि उनके पिता का नाम जनक था। माता सीता को जनक जी ने गोद लिया था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, एक बार राजा जनक खेत जोत रहे थे, तब उन्हें सोने की डलिया में मिट्टी में लिपटी हुई एक सुंदर कन्या मिली। राजा जनक की उस समय कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने उस कन्या को गोद लेकर उसका नाम सीता रखा और जीवन भर उसे अपनी पुत्री के रूप में अपनाया।
सीता अष्टमी व्रत लाभ (Sita Ashtami Vrat Labh)
सीता अष्टमी का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। अविवाहित युवतियां भी इस व्रत को रख सकती हैं ताकि वे आदर्श पत्नी बनने की प्रेरणा प्राप्त कर सकें। यह व्रत आदर्श पत्नी के गुणों और सीता जैसे चरित्र को अपनाने की भावना के साथ रखा जाता है। इस व्रत को रखने से सुखद और समृद्ध दांपत्य जीवन की कामना की जाती है।
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