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Shri Gopalashtak Stotra Lyrics: श्रीगोपालाष्टक स्तोत्र -भज श्रीगोपालं दीनदयालं, वचनरसालं तापहरम्….

श्रीगोपालाष्टक स्तोत्र भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित एक दिव्य स्तोत्र है, जिसका पाठ संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है। इसके नियमित जाप से दंपत्ति को योग्य और सद्गुणी संतान की प्राप्ति होती है। यदि संतान प्राप्ति में किसी प्रकार की बाधा आ रही हो, तो इस स्तोत्र का श्रद्धा पूर्वक पाठ अवश्य करना चाहिए। यह अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है और इसकी निष्ठापूर्वक साधना कभी निष्फल नहीं जाती।

श्रीगोपालाष्टक
Shri Gopalashtak Stotra Lyrics In Hindi

श्रीगोपालाष्टक का महत्व (Shri Gopalashtak Mahatva)

श्रीगोपालाष्टकस्तोत्र संतान सुख की प्राप्ति के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है। जिन दंपत्तियों को विवाह के कई वर्षों बाद भी संतान प्राप्त नहीं हो रही हो और चिकित्सा उपाय भी असफल हो चुके हों, उनके लिए यह स्तोत्र विशेष रूप से लाभकारी होता है। यदि सभी प्रयासों के बावजूद निराशा हाथ लग रही हो, तो श्रद्धा और नियमपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। यह स्तोत्र अत्यंत फलदायी होता है और संतान प्राप्ति में सहायक सिद्ध होता है।

श्रीगोपालाष्टक स्तोत्र के लाभ (Shri Gopalashtak Labh)

श्रीगोपालाष्टक स्तोत्र अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है। निःसंतान दंपत्तियों के लिए इसका नियमित पाठ करना अत्यंत शुभ फलदायी होता है, जिससे संतान प्राप्ति की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। यह स्तोत्र न केवल मनचाही संतान प्राप्त करने में सहायक होता है, बल्कि संतान को नकारात्मक ऊर्जा और अशुभ प्रभावों से भी बचाता है। इसके नियमित पाठ से संतान के भविष्य में उन्नति होती है तथा विद्या और करियर से जुड़ी रुकावटें भी समाप्त हो जाती हैं।

श्रीगोपालाष्टक (Shri Gopalashtak Stotra Lyrics In Hindi)


भज श्रीगोपालं दीनदयालं, वचनरसालं तापहरम् ।
विहरत स्वच्छन्दं आनन्दकन्दं, श्रीव्रजचन्दं ब्रह्मपरम ।।

पूरणशशिवदनं, शोभासदनं, जित-छबिमदनं रूपवरम् ।
हलधरवरवीरं श्यामशरीरं, गुणगम्भीरं धीरधरम् ।।

राजत बनमाला, रूपविशाला, चाल मराला सुरतहरम् ।
कुण्डलधृतकरणं, गिरिवरधरणं, निज-जन शरणं कृपाकरम् ।
गोपिन कृतअंगं, ललित-त्रिभंगं, लज्जित अनंगं निरखि परम्।।

जलधरवरश्यामं, पूरणकामं, अति सुखधामं दुःखहरम्।
वृन्दावन-क्रीड़ित असुरन-पीड़ित, ब्रजतिय-व्रीड़ित रसिकवरम् ।
नूपुरध्वनिचरणं मुनिमनहरणं, तारणं-तरणं तुष्टतरम्।।

राधा-उपहार, रूप-अपारं, नीरविहारं चीरहरम् ।
कुञ्चित वरकेशं मुकुटविशेष, गोपसुवेषं, निगमवरम् ।
कोमल अतिचरणं, वेदविवरणं, जगदुद्धरणं मृदुलतरम् ।।

अकलन-मुखराजत मन्मथलाजत, किंकणीबाजत मधुरस्वरम् ।
वंशीकृतनादं, हरतविषादं, युगवरपादं तिमिरहरम् ।
भक्तन-आधीनं चरित-नवीनं, परम प्रवीनं प्रेम-परम् ।।

अतिनृत्यप्रवीरे धीरसमीरे, यमुनातीरे रासकरम् ।
कलगान अनूपं श्यामस्वरूपं, त्रिभुवनभूपं मोदभरम् ।
राधागुणगायक ब्रजसुखदायक, सुरवरनायक बेणुधरम्।।

सुन्दर मृदुहासं विपिन-विलासं कुञ्जनिवासं केलिकरम् ।
युवतीदृग-अञ्जन जनमनरञ्जन, केशीभञ्जन भारहरम् ।
भूषण निज-भवनं गजगति गमनं, कालियदमनं नृत्यकरम्।।

गोरजमुखशोभित सुरनरलोभित, मन्मथक्षोभित दृश्यपरम्।
गोपनसहभुञ्ज विपिननिकुञ्ज, वत्सनपुञ्ज दुहिणहरम् ।।

यह छवि-तारायण लखि ‘नारायण’ भये परायण अखिल नरम्।
भज श्रीगोपालं दीनदयालं, वचनरसालं तापहरम् ।।

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