Shri Surya Chalisa Lyrics in Hindi: सूर्य चालीसा भगवान सूर्य की स्तुति में रचित एक पवित्र और शक्तिशाली स्तोत्र है, जिसमें सूर्यदेव के तेज, ऊर्जा, कृपा और कल्याणकारी स्वरूप का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह चालीसा लगभग चालीस चौपाइयों से मिलकर बनी होती है, जिनमें सूर्यदेव की महिमा, उनके सात घोड़ों वाले दिव्य रथ, काल और दिशा के नियंता रूप तथा समस्त प्राणियों के जीवनदाता स्वरूप का सुंदर प्रतीकात्मक वर्णन मिलता है।
वेदों और पुराणों में सूर्यदेव को जगत का आत्मा कहा गया है, क्योंकि समस्त ऊर्जा, प्रकाश और जीवन उन्हीं से उत्पन्न होते हैं। सूर्य चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति न केवल आध्यात्मिक शक्ति का अनुभव करता है, बल्कि भीतर से उन्नति, प्रेरणा और उत्साह का संचार भी होता है। यह चालीसा प्रातःकाल के समय, विशेषकर उगते सूर्य की ओर मुख कर पढ़ी जाए तो इसका प्रभाव कई गुना अधिक हो जाता है। इसे पढ़ने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और व्यक्ति का मनोबल मजबूत होता है। कई विद्वानों के अनुसार, सूर्य चालीसा स्वास्थ्य, उन्नति और मानसिक संतुलन के लिए अत्यंत लाभकारी मानी जाती है।
सूर्य चालीसा के लाभ
सूर्य चालीसा का नियमित और श्रद्धापूर्वक पाठ अनेक आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक लाभ प्रदान करता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्यदेव के स्तुति-पाठ से व्यक्ति की किस्मत चमकती है, कार्यक्षेत्र में सफलता मिलती है और जीवन में अड़चनें दूर होती हैं। सूर्यदेव को ऊर्जा और बल का स्रोत माना गया है, इसलिए सूर्य चालीसा मनुष्य को शारीरिक शक्ति, उत्साह, आत्मविश्वास और मानसिक स्थिरता प्रदान करती है। यह चालीसा स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं, विशेषकर नेत्र दोष, थकान, कमजोरी, आलस्य और रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी को दूर करने में अत्यंत प्रभावी मानी जाती है।
कई लोग मानते हैं कि सूर्य चालीसा का पाठ कुंडली में मौजूद सूर्य ग्रह से जुड़े दोषों को शांत करता है, जिससे व्यक्ति के करियर, सरकारी कार्य, प्रतियोगी परीक्षाओं और सम्मान संबंधी क्षेत्रों में उन्नति होती है। इस चालीसा के जप से तनाव और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है तथा व्यक्ति का मन प्रकाश और सकारात्मकता से भर जाता है। घर में सूर्य चालीसा का पाठ करने से वातावरण शुद्ध और ऊर्जावान होता है, जिससे परिवार में समृद्धि, सौहार्द और सुख-शांति का निवास होता है। इसलिए सूर्य चालीसा न सिर्फ धार्मिक साधना है, बल्कि जीवन को सफल, स्वस्थ और ऊर्जा से परिपूर्ण बनाने का एक अद्भुत दिव्य साधन भी है।
श्री सूर्य चालीसा हिंदी में Shri Surya Chalisa Lyrics in Hindi
॥ दोहा ॥
कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग,
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥
॥ चौपाई ॥
जय सविता जय जयति दिवाकर,
सहस्त्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर॥
भानु पतंग मरीची भास्कर,
सविता हंस सुनूर विभाकर॥
विवस्वान आदित्य विकर्तन,
मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥
अम्बरमणि खग रवि कहलाते,
वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥ 4
सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि,
मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥
अरुण सदृश सारथी मनोहर,
हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥
मंडल की महिमा अति न्यारी,
तेज रूप केरी बलिहारी॥
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते,
देखि पुरन्दर लज्जित होते॥8
मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर,
सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥
पूषा रवि आदित्य नाम लै,
हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥
द्वादस नाम प्रेम सों गावैं,
मस्तक बारह बार नवावैं॥
चार पदारथ जन सो पावै,
दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥12
नमस्कार को चमत्कार यह,
विधि हरिहर को कृपासार यह॥
सेवै भानु तुमहिं मन लाई,
अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥
बारह नाम उच्चारन करते,
सहस जनम के पातक टरते॥
उपाख्यान जो करते तवजन,
रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥16
धन सुत जुत परिवार बढ़तु है,
प्रबल मोह को फंद कटतु है॥
अर्क शीश को रक्षा करते,
रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत,
कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥
भानु नासिका वासकरहुनित,
भास्कर करत सदा मुखको हित॥20
ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे,
रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे॥
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा,
तिग्म तेजसः कांधे लोभा॥
पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर,
त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर॥
युगल हाथ पर रक्षा कारन,
भानुमान उरसर्म सुउदरचन॥24
बसत नाभि आदित्य मनोहर,
कटिमंह, रहत मन मुदभर॥
जंघा गोपति सविता बासा,
गुप्त दिवाकर करत हुलासा॥
विवस्वान पद की रखवारी,
बाहर बसते नित तम हारी॥
सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै,
रक्षा कवच विचित्र विचारे॥28
अस जोजन अपने मन माहीं,
भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै,
जोजन याको मन मंह जापै॥
अंधकार जग का जो हरता,
नव प्रकाश से आनन्द भरता॥
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही,
कोटि बार मैं प्रनवौं ताही॥32
मंद सदृश सुत जग में जाके,
धर्मराज सम अद्भुत बांके॥
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा,
किया करत सुरमुनि नर सेवा॥
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों,
दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥
परम धन्य सों नर तनधारी,
हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥36
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन,
मधु वेदांग नाम रवि उदयन॥
भानु उदय बैसाख गिनावै,
ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै॥
यम भादों आश्विन हिमरेता,
कातिक होत दिवाकर नेता॥
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं,
पुरुष नाम रविहैं मलमासहिं॥40
॥ दोहा ॥
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य,
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य॥
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