Shri Shani Chalisa Lyrics in Hindi: शनि देव हिंदू धर्म में न्याय और कर्म के देवता माने जाते हैं। वे व्यक्ति के जीवन में उसके कर्मों के आधार पर फल प्रदान करते हैं, इसलिए उन्हें ‘न्यायाधीश देव’ भी कहा जाता है। शनि देव का स्वभाव कठोर जरूर है, लेकिन वे भक्तों पर अत्यंत कृपालु भी होते हैं जब व्यक्ति सच्चे मन से भक्ति करता है और अपने कर्मों को सुधारने का प्रयास करता है। शनि चालीसा, भगवान श नि की स्तुति में रचित एक पवित्र और शक्तिशाली स्तोत्र है जिसमें उनकी महिमा, स्वरूप, गुण और कृपा का वर्णन मिलता है।
चालीसा के प्रत्येक चरण में शनि देव के जीवन, उनके स्वभाव और उनके दैवी स्वरूप की गहराई से व्याख्या होती है। इसे श्रद्दापूर्वक पढ़ने से व्यक्ति अपने मन को शुद्ध करता है और शनि देव के प्रति विश्वास और समर्पण की भावना विकसित होती है। शनि चालीसा का पाठ शनिवार को विशेष फलदायक माना जाता है, लेकिन इसे किसी भी दिन मन से पढ़ने पर समान ही आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। इस चालीसा का पाठ जीवन में अनुशासन, धैर्य और कर्मप्रवृत्ति जैसे गुणों का विकास करता है, जिससे व्यक्ति वही प्राप्त करता है जिसका वह वास्तव में अधिकारी होता है।
श्री शनि चालीसा लाभ
शनि चालीसा का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आने लगते हैं। मान्यता है कि इससे शनि ग्रह की कुप्रभावी स्थितियाँ शांत होती हैं और जीवन में जारी बाधाएँ धीरे-धीरे कम होने लगती हैं। श नि की ढैया, साढ़ेसाती या कुंडली में शनि से संबंधित दोषों के समय यह चालीसा विशेष रूप से लाभकारी मानी जाती है। इसके प्रभाव से मनुष्य के कार्यों में आ रही रुकावटें दूर होती हैं, व्यवसाय और नौकरी में स्थिरता आती है और मानसिक तनाव तथा भय भी कम होते हैं।
शनि देव की कृपा से व्यक्ति अनुशासित, परिश्रमी और धैर्यवान बनता है, जिसके परिणामस्वरूप वह कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सफलता प्राप्त करने में सक्षम होता है। साथ ही, यह चालीसा जीवन में नकारात्मक ऊर्जा, बुरी नजर और अप्रिय परिस्थितियों से भी रक्षा करती है। जो लोग मन की अशांति, आर्थिक परेशानियों या अस्थिरता का सामना कर रहे हों, उन्हें शनि चालीसा का पाठ अत्यंत शुभ माना जाता है। यह न केवल आध्यात्मिक उत्थान प्रदान करती है बल्कि आत्मविश्वास, संयम और कर्म के महत्व को भी समझाती है, जिससे व्यक्ति का जीवन संतुलित, समृद्ध और सुरक्षित बनता है।
श्री शनि चालीसा (Shri Shani Chalisa Lyrics in Hindi)
दोहा
जय-जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महराज।
करहुं कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज।।
चौपाई
जयति-जयति शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला।।चारि भुजा तन श्याम विराजै।
माथे रतन मुकुट छवि छाजै।।
परम विशाल मनोहर भाला।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमकै।
हिये माल मुक्तन मणि दमकै।।
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
पल विच करैं अरिहिं संहारा।।
पिंगल कृष्णो छाया नन्दन।
यम कोणस्थ रौद्र दुःख भंजन।।
सौरि मन्द शनी दश नामा।
भानु पुत्रा पूजहिं सब कामा।।
जापर प्रभु प्रसन्न हों जाहीं।
रंकहु राउ करें क्षण माहीं।।
पर्वतहूं तृण होई निहारत।
तृणहंू को पर्वत करि डारत।।
राज मिलत बन रामहि दीन्हा।
कैकइहूं की मति हरि लीन्हा।।
बनहूं में मृग कपट दिखाई।
मात जानकी गई चुराई।।
लषणहि शक्ति बिकल करि डारा।
मचि गयो दल में हाहाकारा।।
दियो कीट करि कंचन लंका।
बजि बजरंग वीर को डंका।।
नृप विक्रम पर जब पगु धारा।
चित्रा मयूर निगलि गै हारा।।
हार नौलखा लाग्यो चोरी।
हाथ पैर डरवायो तोरी।।
भारी दशा निकृष्ट दिखाओ।
तेलिहुं घर कोल्हू चलवायौ।।
विनय राग दीपक महं कीन्हो।
तब प्रसन्न प्रभु ह्नै सुख दीन्हों।।
हरिशचन्द्रहुं नृप नारि बिकानी।
आपहुं भरे डोम घर पानी।।
वैसे नल पर दशा सिरानी।
भूंजी मीन कूद गई पानी।।
श्री शकंरहि गहो जब जाई।
पारवती को सती कराई।।
तनि बिलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़ि गयो गौरि सुत सीसा।।
पाण्डव पर ह्नै दशा तुम्हारी।
बची द्रोपदी होति उघारी।।
कौरव की भी गति मति मारी।
युद्ध महाभारत करि डारी।।
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला।
लेकर कूदि पर्यो पाताला।।
शेष देव लखि विनती लाई।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई।।
वाहन प्रभु के सात सुजाना।
गज दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना।।
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी।।
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।
हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं।।
गर्दभहानि करै बहु काजा।
सिंह सिद्धकर राज समाजा।।
जम्बुक बुद्धि नष्ट करि डारै।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै।।
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
चोरी आदि होय डर भारी।।
तैसहिं चारि चरण यह नामा।
स्वर्ण लोह चांदी अरु ताम्बा।।
लोह चरण पर जब प्रभु आवैं।
धन सम्पत्ति नष्ट करावैं।।
समता ताम्र रजत शुभकारी।
स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी।।
जो यह शनि चरित्रा नित गावै।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।।
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
करैं शत्राु के नशि बल ढीला।।
जो पंडित सुयोग्य बुलवाई।
विधिवत शनि ग्रह शान्ति कराई।।
पीपल जल शनि-दिवस चढ़ावत।
दीप दान दै बहु सुख पावत।।
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।
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