Shri Laxmi Chalisa Lyrics in Hindi: लक्ष्मी चालीसा देवी महालक्ष्मी को समर्पित एक पवित्र स्तोत्र है, जिसे भक्त प्रतिदिन या विशेष रूप से शुक्रवार, दीपावली, धनतेरस और शरद पूर्णिमा जैसे शुभ अवसरों पर बड़े श्रद्धा-भाव से पढ़ते हैं। यह चालीसा चौवन (५०) चौपाइयों से मिलकर बनी है, जिनमें देवी लक्ष्मी के गुण, स्वरूप, महिमा और कृपा के स्वरूप का विस्तृत वर्णन मिलता है। हिंदू धर्म में लक्ष्मी माता को संपत्ति, सौभाग्य, आरोग्य, ऐश्वर्य और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है।
ऐसा विश्वास है कि जहां लक्ष्मी चालीसा का नियमित और शुद्ध मन से पाठ किया जाता है, वहां न केवल धन-वृद्धि होती है, बल्कि मानसिक शांति, पारिवारिक सुख और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी बढ़ता है। इस स्तोत्र की हर चौपाई भक्त के हृदय में भक्ति, विनम्रता और मां के स्नेहिल आशीर्वाद को अनुभव कराने का सामर्थ्य रखती है। लक्ष्मी चालीसा केवल एक धार्मिक पाठ ही नहीं, बल्कि आत्मबल, विश्वास और जीवन में स्थिरता प्रदान करने वाली एक दिव्य साधना है, जो मनुष्य के भीतर के भय, असुरक्षा और नकारात्मकता को दूर कर जीवन में नई दिशा प्रदान करती है।
लक्ष्मी चालीसा के लाभ
लक्ष्मी चालीसा के नियमित पाठ से मन, घर और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। कहते हैं कि जब व्यक्ति श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता के साथ इस चालीसा का जप करता है, तो मां लक्ष्मी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है। इसके प्रभाव से आर्थिक संकट दूर होने लगते हैं, व्यापार में उन्नति होती है और रुके हुए कार्यों में गति आने लगती है। यह पाठ मन को शांत करता है, आत्मविश्वास बढ़ाता है और जीवन में स्थिरता लाता है।
कई लोग मानते हैं कि लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने से घर में दरिद्रता, कलह और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है, और परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम, सद्भाव और सुख-समृद्धि बनी रहती है। शुक्रवार को दीपक जलाकर लक्ष्मी चालीसा पढ़ने से विशेष फल मिलता है, क्योंकि यह दिन देवी लक्ष्मी का प्रिय माना गया है। मानसिक तनाव, असफलता का भय और अस्थिरता जैसी समस्याओं से जूझ रहे साधकों के लिए भी यह चालीसा अत्यंत लाभकारी मानी जाती है। सार रूप में, लक्ष्मी चालीसा का पाठ व्यक्ति के जीवन में धन, सौभाग्य, संतुलन और अध्यात्म—चारों का सुंदर संगम रचता है, जिससे संपूर्ण जीवन उजाले और समृद्धि से भर उठता है।
श्री लक्ष्मी चालीसा हिंदी में (Shri Laxmi Chalisa Lyrics in Hindi)
।। दोहा ।।
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस॥
।। चौपाई ।।
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही॥
श्री लक्ष्मी चालीसा
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदम्बा । सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥
रूप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥
॥ दोहा॥
त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास। जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर। मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥
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