Shri Ganesh Chalisa Lyrics: गणेश चालीसा हिंदू धर्म में अत्यंत लोकप्रिय और पवित्र स्तोत्र है, जिसे विघ्नहर्ता भगवान गणेश को समर्पित किया गया है। चालीसा का अर्थ है चालीस चौपाइयों से बना स्तुतिगान, जो देवता की महिमा, गुण, स्वरूप और उनकी कृपा का वर्णन करता है। गणेश चालीसा का पाठ प्राचीन संतों और भक्तों द्वारा रचित है, जिसमें भगवान गणपति के अद्भुत तेज, बुद्धि, चातुर्य, करुणा और भक्तों के प्रति उनके स्नेह का विशद चित्रण मिलता है।
मान्यता है कि किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले गणेश चालीसा का पाठ करने से कार्य में आने वाली बाधाएँ स्वयं ही दूर हो जाती हैं, क्योंकि भगवान गणेश कल्याण, सफलता और सिद्धि के अधिष्ठाता देव हैं। यह चालीसा न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है, बल्कि मन–मस्तिष्क को एकाग्र करने, विचारों को पवित्र बनाने और जीवन में सकारात्मकता लाने का मार्ग भी प्रशस्त करती है। भक्तजन इसे सुबह या शाम के समय भगवान गणेश की पूजा के दौरान पढ़ते हैं ताकि दिव्य ऊर्जा का अनुभव हो सके और जीवन में नई सफलताओं का मार्ग खुल सके।
गणेश चालीसा के लाभ
गणेश चालीसा का नियमित पाठ अनेक आध्यात्मिक और मानसिक लाभ प्रदान करता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास के साथ इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके जीवन में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं और हर क्षेत्र में सफलता का मार्ग सुगम हो जाता है। यह चालीसा बुद्धि, स्मरण शक्ति और निर्णय क्षमता को बढ़ाने में भी सहायक मानी जाती है, इसलिए विद्यार्थियों और नए कार्यों की शुरुआत करने वालों के लिए इसका पाठ विशेष रूप से फलदायी माना गया है। गणेश चालीसा का जप मन को शांति देता है, तनाव कम करता है और नकारात्मक विचारों को दूर करता है।
इसके पाठ से घर–परिवार में सौभाग्य, सुख-समृद्धि और मंगल का निवास होता है, क्योंकि भगवान गणेश को कल्याणकारी शक्तियों का प्रतीक माना गया है। कहा जाता है कि जब किसी व्यक्ति पर संकट, भय या मानसिक उलझन बढ़ने लगे, तब इस चालीसा का गहन भाव से किया गया पाठ उसके जीवन में नई ऊर्जा भर देता है और कठिन परिस्थितियों को पार करने की शक्ति प्रदान करता है। भक्तगण मानते हैं कि गणेश चालीसा भगवान गणेश की कृपा पाने का सरलतम और अत्यंत प्रभावी साधन है, जो हर भक्त के जीवन में सुख, शांति और सफलता की वर्षा करता है।
श्री गणेश चालीसा हिंदी में Shri Ganesh Chalisa Lyrics in Hindi
दोहा ॥
जय गणपति सदगुण सदन,
कविवर बदन कृपाल ।
विघ्न हरण मंगल करण,
जय जय गिरिजालाल ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जय गणपति गणराजू ।
मंगल भरण करण शुभः काजू ॥
जै गजबदन सदन सुखदाता ।
विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥
वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना ।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥
राजत मणि मुक्तन उर माला ।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।
चरण पादुका मुनि मन राजित ॥
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता ।
गौरी लालन विश्व-विख्याता ॥
ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे ।
मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।
अति शुची पावन मंगलकारी ॥
एक समय गिरिराज कुमारी ।
पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥ 10 ॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।
तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥
अतिथि जानी के गौरी सुखारी ।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा ।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला ।
बिना गर्भ धारण यहि काला ॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना ।
पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥
अस कही अन्तर्धान रूप हवै ।
पालना पर बालक स्वरूप हवै ॥
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना ।
लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।
नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥
शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं ।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा ।
देखन भी आये शनि राजा ॥ 20 ॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।
बालक, देखन चाहत नाहीं ॥
गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।
उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥
कहत लगे शनि, मन सकुचाई ।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ ।
शनि सों बालक देखन कहयऊ ॥
पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा ।
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥
गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी ।
सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥
हाहाकार मच्यौ कैलाशा ।
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।
काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो ।
प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥ 30 ॥
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥
चले षडानन, भरमि भुलाई ।
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥
धनि गणेश कही शिव हिये हरषे ।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।
शेष सहसमुख सके न गाई ॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी ।
करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥
अब प्रभु दया दीना पर कीजै ।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥ 38 ॥
॥ दोहा ॥
श्री गणेश यह चालीसा,
पाठ करै कर ध्यान ।
नित नव मंगल गृह बसै,
लहे जगत सन्मान ॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश,
ऋषि पंचमी दिनेश ।
पूरण चालीसा भयो,
मंगल मूर्ती गणेश ॥
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