Shattila Ekadashi 2026| षटतिला एकादशी जनवरी 2026 कब| जाने तिथि और पूजा विधि

January Ekadashi Date 2026: माघ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली षटतिला एकादशी एक अत्यंत शुभ और पुण्यदायक तिथि मानी जाती है। हिंदू धर्मशास्त्रों में इसका विशेष महत्व बताया गया है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु की आराधना, तिलदान और व्रत से धन-संपत्ति की प्राप्ति, पापों का नाश और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। मान्यता है कि तिलों में महालक्ष्मी का वास होता है, इसलिए इस दिन तिल का दान और तिल से बनी वस्तुओं का उपयोग अत्यंत फलदायी माना गया है। वर्ष 2026 में यह पावन व्रत 14 जनवरी, बुधवार के दिन रखा जाएगा।

Shattila Ekadashi 2026 Date

षटतिला एकादशी का पौराणिक महत्व

पद्म पुराण में इस व्रत का वर्णन विशेष रूप से मिलता है। कथा के अनुसार, दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से ऐसा व्रत जानने की इच्छा जताई जो सभी प्रकार के पापों का नाश कर दे। पुलस्त्य ऋषि ने बताया कि माघ मास की कृष्ण एकादशी, जिसे षटतिला एकादशी कहा जाता है, ऐसे ही फल प्रदान करने में सक्षम है। इस दिन तिलों से स्नान, दान, तर्पण, भोजन और हवन किया जाता है। तिल पवित्रता, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के प्रतीक माने जाते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि तिल का छह रूपों में प्रयोग करने से जीवन में सभी प्रकार की बाधाएँ दूर होती हैं और दिव्य कृपा प्राप्त होती है।

इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत करने से अनजाने में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं, मन निर्मल होता है और साधक को धर्म, अर्थ और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग मिलता है। माघ मास में व्यक्ति को अपनी इंद्रियों पर संयम रखना चाहिए, क्योंकि यह काल आध्यात्मिक साधना व मनःशुद्धि के लिए अत्यंत उपयुक्त माना जाता है।

षटतिला एकादशी 2026: तिथि और शुभ मुहूर्त

वर्ष 2026 में षटतिला एकादशी की शुरुआत 13 जनवरी की शाम 3:17 बजे होगी और समाप्ति 14 जनवरी को 5:52 बजे सायंकाल होगी। व्रत और पूजा के लिए 14 जनवरी का दिन अत्यंत शुभ माना गया है। उस दिन के महत्वपूर्ण काल निम्न प्रकार बताए गए हैं— राहुकाल 12:36 से 13:57 तक अशुभ माना जाता है, जबकि यमघंटा 08:33 से 09:54 तक रहेगा। गुलिक काल 11:15 से 12:36 तक है, तथा अभिजीत मुहूर्त 12:14 से 12:58 तक रहेगा, जो कोई भी शुभ कार्य शुरू करने के लिए उत्तम समय है।

षटतिला एकादशी का आध्यात्मिक संदेश

इस पावन व्रत का मूल संदेश अन्नदान और तिलदान को सर्वोच्च स्थान देना है। पौराणिक ग्रंथ बताते हैं कि तिल पवित्रता का प्रतीक हैं और इनका उपयोग व्यक्ति के भीतर बसे कलुष को दूर कर देता है। इस व्रत में साधक को काम, क्रोध, लोभ, चुगली और अहंकार जैसे नकारात्मक भावों का त्याग करने की प्रेरणा दी जाती है। माघ मास को तप और अनुशासन का महीना माना गया है, इसलिए इस अवधि में सात्त्विक आचरण, दया, संयम और दान की भावना से जीवन व्यतीत करना अत्यंत फलदायी होता है।

षटतिला एकादशी व्रत की तैयारी और दशमी का नियम

इस व्रत की तैयारी दशमी तिथि से ही शुरू हो जाती है। धर्मशास्त्रों के अनुसार, दशमी के दिन व्यक्ति को एक समय भोजन करना चाहिए और व्रत के लिए मन, वचन और कर्म को शुद्ध रखने का संकल्प लेना चाहिए। इसी दिन तिल और कपास को गोबर में मिलाकर 108 उपले तैयार किए जाते हैं, जिन्हें एकादशी की रात्रि में हवन के लिए उपयोग किया जाता है।

एकादशी के दिन प्रातःकालीन पूजा-विधि

षटतिला एकादशी की सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र नदी या जल से स्नान करने का विधान है। स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लिया जाता है। पूजा में चंदन, कपूर, नैवेद्य, अक्षत, तुलसी और तिल का उपयोग किया जाता है। भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए तिल से बनी मिठाई, गुड़ और फल अर्पित किए जाते हैं।

इस दिन तिल से स्नान करने, तिल का उबटन लगाने, तिल मिश्रित जल पीने, तिलों का दान करने, तिल से बनी वस्तुओं का सेवन करने तथा तिलों से हवन करने—इन छह विधियों का विशेष महत्त्व है। इन सभी रूपों में तिल के उपयोग को ही “षट-तिल” कहा गया है। शास्त्रों में वर्णित श्लोक—
“तिलस्नायी तिलोद्वर्ती तिलहोमी तिलोदकी, तिलदाता च भोक्ता च षट्तिला पापनाशिनी”
इस व्रत की पवित्रता और दिव्य फल की पुष्टि करता है।

रात्रिकालीन पूजा और हवन विधि

एकादशी की रात्रि को जागरण करने का विशेष महत्व बताया गया है। इस दौरान भगवान का भजन-कीर्तन करना चाहिए और 108 बार “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करते हुए हवन किया जाता है। दशमी के दिन बनाए गए 108 उपलों को हवन में अर्पित किया जाता है, जिससे वातावरण और मन दोनों पवित्र होते हैं।

रात्रि जागरण व्यक्ति के भीतर आध्यात्मिक चेतना को जागृत करता है और हवन से पवित्रता तथा सकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि होती है। हवन के पश्चात भगवान कृष्ण से तथाकथित भूलों के लिए क्षमा मांगनी चाहिए।

द्वादशी का नियम और दान का महत्व

द्वादशी तिथि इस व्रत का समापन होती है। इस दिन प्रातः भगवान विष्णु की पूजा कर खिचड़ी का अर्पण किया जाता है। इसके बाद दान का विशेष महत्व बताया गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि द्वादशी के दिन ब्राह्मण को घड़ा, छाता, जूते, तिल और वस्त्र दान करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। यदि संभव हो तो काली गाय का दान सर्वोत्तम माना गया है।

दान को धर्म का आधार माना गया है, और षटतिला एकादशी में किया गया तिलदान जीवन से समस्त नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है तथा सुख-समृद्धि को स्थायी बनाता है।

षटतिला एकादशी केवल एक धार्मिक व्रत नहीं, बल्कि मन और आत्मा की शुद्धि का एक माध्यम है। यह व्रत व्यक्ति को संयम, दया, दान और भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। तिल के उपयोग से शरीर, मन और वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस दिन श्रद्धापूर्वक उपवास, पूजा और दान करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और साधक जीवन में धन, समृद्धि, सौभाग्य एवं पापों से मुक्ति का आशीर्वाद पाता है।

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