हिंदू धर्म शास्त्रों में षटतिला एकादशी तिथि की महानता का वर्णन किया गया है। एकादशी व्रत का पालन करने से जीवन में सभी सुखों का आगमन होता है और सभी बिगड़े काम बन जाते हैं। इस तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। आइए जानते हैं कि षटतिला एकादशी क्यों मनाई जाती है और इसका क्या महत्व है।
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। इस शुभ अवसर पर लक्ष्मी नारायण जी की पूजा का विधान है और उनके निमित्त एकादशी का व्रत रखा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, एकादशी व्रत से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और जीवन में सभी सुखों का आगमन होता है। यह व्रत महिला और पुरुष दोनों द्वारा रखा जा सकता है। माघ माह में षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाता है, जिसका विशेष महत्व होता है। आइए जानते हैं कि माघ माह में षटतिला एकादशी क्यों मनाई जाती है? आइए षटतिला एकादशी की सही तिथि और इसका महत्व बताते हैं।”
षटतिला एकादशी कब मनाई जाती है? (Shattila Ekadashi 2025)
माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को हर साल षटतिला एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इसे आसान शब्दों में माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में उल्लेख है कि इस व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन के कठिन कार्य भी सफल हो जाते हैं। षटतिला एकादशी पर तिल और अन्न का दान करने से अद्भुत फल की प्राप्ति होती है, जो जीवन को शुभता और समृद्धि से भर देता है।
षटतिला एकादशी महत्व
षटतिला एकादशी भगवान विष्णु की प्रिय एकादशियों में से एक मानी जाती है। इस व्रत को रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। यह व्रत दरिद्रता और दुखों को समाप्त कर जीवन में खुशहाली लाता है। यदि व्रत रखना संभव न हो, तो केवल इस व्रत की कथा सुनने मात्र से वाजपेयी यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। षटतिला एकादशी व्रत तीनों प्रकार के पापों – वाचिक, मानसिक और शारीरिक – से मुक्ति प्रदान करता है। इस व्रत का फल कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और यज्ञों के समान माना गया है।
षटतिला एकादशी पर तिल का महत्व (Shattila Ekadashi Mahatva)
पद्म पुराण के अनुसार, षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा में तिल का विशेष महत्व होता है। इस पवित्र तिथि पर तिल का दान करने से पापों से मुक्ति प्राप्त होती है। इस दिन तिल से स्नान, तर्पण, दान और पूजन करने का विधान है। तिल के बहुआयामी उपयोग और इसके धार्मिक महत्व के कारण ही इस एकादशी को “षटतिला एकादशी” कहा जाता है। तिल का प्रयोग इस दिन जीवन में शुद्धता और पुण्य को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
षटतिला एकादशी 2025 तिथि (Shattila Ekadashi 2025 Tithi)
माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 24 जनवरी 2025 को शाम 7:25 बजे प्रारंभ होगी और 25 जनवरी 2025 को रात 8:31 बजे समाप्त होगी। हिंदू धर्म में तिथि की गणना सूर्योदय के अनुसार की जाती है। इसी कारण षटतिला एकादशी का व्रत 25 जनवरी 2025 को रखा जाएगा। इस दिन व्रत और पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है।
षटतिला एकादशी पूजा विधि (Shattila Ekadashi Puja Vidhi)
एकादशी व्रत की प्रक्रिया दशमी तिथि की रात्रि से ही शुरू हो जाती है। मान्यता है कि इन विधियों का पूर्ण श्रद्धा और नियम से पालन करने पर व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि और शांति का वास होता है। आइए जानते हैं कि षटतिला एकादशी व्रत के दिन किन-किन नियमों का पालन करना चाहिए:
- दशमी तिथि के नियम:
दशमी तिथि के सूर्यास्त के बाद व्रती को भोजन नहीं करना चाहिए। यह व्रत की पवित्रता बनाए रखने के लिए आवश्यक है। - स्नान और संकल्प:
नारद पुराण के अनुसार, एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें और अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर तिल युक्त जल से स्नान करें। इसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत का संकल्प लें। - पूजा की तैयारी:
अपने घर के मंदिर में भगवान श्री हरि विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। मूर्ति के आस-पास गंगाजल और तिल छिड़कें। मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएं, जिसमें तिल का उपयोग अवश्य करें। - घटस्थापना और दीप प्रज्ज्वलन:
घटस्थापना के बाद घी का दीपक जलाएं और धूपबत्ती प्रज्वलित करें। भगवान को तिल, फूल, और मिठाई अर्पित करें। - विष्णु सहस्त्रनाम का जाप:
भगवान विष्णु की आराधना करते हुए विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें। पूजा के अंत में भगवान श्री हरि विष्णु की आरती करें। - तिल का दान:
इस दिन तिल का दान करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। मान्यता है कि जितना तिल दान किया जाता है, उतने ही दिनों तक स्वर्ग में सुख-शांति प्राप्त होती है।
व्रत की ये विधियां श्रद्धा और समर्पण से पूरी की जाएं तो भगवान विष्णु की कृपा से जीवन के सभी कष्टों का निवारण होता है।
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