Sharad Purnima 2025 Date|शरद पूर्णिमा 2025 में कब| जाने तिथि और पौराणिक कथा

Last Updated: 02 October 2025

Sharad Purnima 2025 :हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व माना जाता है। यह पर्व अश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इसे शरद ऋतु की सबसे पावन रात्रि कहा जाता है। इस दिन का महत्व केवल इसलिए नहीं है कि यह पूर्णिमा की रात्रि है, बल्कि इसके साथ जुड़ी अनेक पौराणिक कथाएं और मान्यताएं इसे और भी विशेष बना देती हैं।

नारद पुराण के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का दिव्य मिलन हुआ था। इसी रात श्रीकृष्ण ने ब्रज की गोपियों के साथ रासलीला रचाई थी, जिसमें सभी देवताओं ने साक्षी बनकर आनंद लिया। इसलिए शरद पूर्णिमा को भक्ति, प्रेम और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

शरद पूर्णिमा
Sharad Purnima 2025 Date

शरद पूर्णिमा 2025 की तिथि और मुहूर्त (Sharad Purnima 2025 Date)

पंचांग के अनुसार वर्ष 2025 में शरद पूर्णिमा का पर्व 6 अक्टूबर को मनाया जाएगा। पूर्णिमा तिथि 6 अक्टूबर दोपहर 12 बजकर 23 मिनट से प्रारंभ होगी और 7 अक्टूबर सुबह 9 बजकर 16 मिनट तक रहेगी। इस दिन चंद्रोदय का समय शाम 5 बजकर 27 मिनट है, और इस क्षण से चंद्रमा का पूजन विशेष रूप से फलदायी माना गया है।

शरद पूर्णिमा का सबसे प्रमुख आकर्षण चंद्रमा की पूजा है। मान्यता है कि इस दिन की चांदनी अन्य दिनों की तुलना में अधिक उज्ज्वल और दिव्य होती है। शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि इस रात चंद्रमा की किरणों में अमृत का संचार होता है। इसी कारण इस दिन चांद की रोशनी में खीर रखी जाती है। कहा जाता है कि खीर में अमृत तत्व समाहित हो जाते हैं और अगले दिन इसे ग्रहण करने से दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

इस दिन को कौमुदी व्रत भी कहा जाता है। नवविवाहित दंपत्ति इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करते हैं। वे रात्रि भर जागरण करते हैं और अगले दिन चंद्रमा की किरणों से संचित खीर का सेवन करते हैं। इससे उनके दांपत्य जीवन में प्रेम और सौहार्द बना रहता है।

शरद पूर्णिमा व्रत कथा (Sharad Purnima Katha)

शरद पूर्णिमा से जुड़ी एक अत्यंत प्रेरणादायक कथा प्रचलित है। एक साहूकार की दो बेटियां थीं जो प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा का व्रत करती थीं। बड़ी बेटी श्रद्धा और विधि-विधान से व्रत का पालन करती थी, जबकि छोटी बेटी आधा-अधूरा व्रत करती थी। परिणामस्वरूप बड़ी बेटी को स्वस्थ और निरोगी संतान प्राप्त हुई, लेकिन छोटी बेटी के सभी बच्चे जन्म के बाद ही मर जाते थे।

एक दिन छोटी बेटी ने जलनवश अपने मृत शिशु को कपड़े में लपेटकर बड़ी बहन के पास रख दिया ताकि लोग उसे अपशगुनी समझें। किंतु बड़ी बहन ने उसकी चालाकी को पहचान लिया और उसे समझाया कि व्रत का पालन पूर्ण श्रद्धा और शुद्ध भाव से करना चाहिए। छोटी बहन ने अपनी गलती स्वीकार की और व्रत की सही विधि को अपनाया। परिणामस्वरूप आगे चलकर उसे भी जीवित और स्वस्थ संतान की प्राप्ति हुई।

यह कथा इस बात का संदेश देती है कि शरद पूर्णिमा का व्रत केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि इसमें सच्ची श्रद्धा और निष्ठा का होना आवश्यक है।

शरद पूर्णिमा का धार्मिक महत्व

शरद पूर्णिमा की रात को किया गया पूजन, उपवास और जागरण अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। इस दिन मां लक्ष्मी, इंद्रदेव और चंद्रमा की आराधना करने से घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है। ऐसा विश्वास है कि इस रात्रि मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और जिन घरों में स्वच्छता और दीपों का प्रकाश होता है, वहां स्थायी रूप से निवास करती हैं।

इसके अतिरिक्त, श्रीकृष्ण की रासलीला की स्मृति में भक्त भजन-कीर्तन करते हैं और रात्रि को आनंद और भक्ति के रंगों से भर देते हैं। यह दिन जीवन में प्रेम, समर्पण और आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।

शरद पूर्णिमा 2025 का पर्व केवल एक धार्मिक अवसर नहीं है, बल्कि यह जीवन को सुख, शांति और समृद्धि से भरने का मार्ग भी है। इस दिन चंद्रमा की पूजा और खीर का प्रसाद ग्रहण करना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना गया है। साथ ही, माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु का पूजन करने से घर में धन, सौभाग्य और सुख-समृद्धि आती है।

पौराणिक कथाओं और परंपराओं से जुड़े इस पर्व का उद्देश्य हमें यह संदेश देना है कि सच्ची श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता से किए गए कार्य ही जीवन को सफल और मंगलमय बनाते हैं। शरद पूर्णिमा की रात्रि का आनंद लेते हुए भक्तों को आत्मिक शांति और दिव्य सुख की अनुभूति होती है।

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