Santoshi Mata Chalisa Lyrics : संतोषी माता हिंदू धर्म में संतोष, धैर्य, सरलता और मनोकामनाओं की पूर्ति की देवी मानी जाती हैं। भक्तों का विश्वास है कि माता की उपासना जीवन में शांति, स्थिरता और मानसिक सुकून प्रदान करती है। संतोषी माता की पूजा खासकर शुक्रवार के दिन की जाती है, जहाँ भक्त 16 शुक्रवार का व्रत रखकर देवी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। संतोषी माता की चालीसा एक ऐसी भक्तिमय रचना है, जिसे श्रद्धाभाव से पढ़ने पर जीवन में संतोष की भावना बढ़ती है और मनुष्य अपने भीतर सकारात्मक ऊर्जा महसूस करता है।
चालीसा में माता की महिमा, सौम्यता और भक्तों पर बरसाए गए अनुग्रह का विस्तार से उल्लेख मिलता है। इसे पढ़ते समय साधक का मन एकाग्र होता है, जिससे वह तनाव और चिंताओं से मुक्त होकर आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करता है। संतोषी माता की चालीसा केवल पाठ मात्र नहीं, बल्कि मन को कोमलता, स्नेह और तृप्ति से भर देने वाली आध्यात्मिक साधना है, जो इंसान के जीवन को सरल और सुखमय बनाने का मार्ग प्रदान करती है।

संतोषी माता की चालीसा लाभ
संतोषी माता की चालीसा का नियमित पाठ भक्तों के जीवन में कई सकारात्मक बदलाव लाता है। माना जाता है कि इस चालीसा का जप करने से मन की अस्थिरता दूर होती है, और व्यक्ति के अंदर संतोष का भाव गहरा होता जाता है। इससे लोभ, क्रोध, ईर्ष्या जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियों का क्षय होता है और मनुष्य जीवन को अधिक सहजता से जीना सीख जाता है। आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे लोगों को भी इस चालीसा के पाठ से राहत मिलती है, क्योंकि माता संतोषी अपने भक्तों को धन-संपत्ति, स्थिर आय और समृद्धि का वरदान देती हैं।
कहा जाता है कि जो व्यक्ति नियमित रूप से चालीसा का पाठ करता है, उसके जीवन में खुशहाली और पारिवारिक सौहार्द बढ़ता है। मनोकामनाओं की पूर्ति, विवाह संबंधी रुकावटों का समाधान और कार्यक्षेत्र में सफलता भी इस चालीसा के प्रमुख लाभों में शामिल हैं। माता की कृपा से व्यक्ति का मन मजबूत होता है और वह हर परिस्थिति में धैर्यपूर्वक आगे बढ़ने की शक्ति प्राप्त करता है। संतोषी माता की यह चालीसा भक्तों के जीवन को प्रकाश, संतोष और प्रसन्नता से भरने वाली दिव्य साधना कही गई है।
संतोषी माता चालीसा हिंदी में (Santoshi Mata Chalisa Lyrics in Hindi)
॥ दोहा ॥
बन्दौं सन्तोषी चरण रिद्धि-सिद्धि दातार ।
ध्यान धरत ही होत नर दुःख सागर से पार ॥
भक्तन को सन्तोष दे सन्तोषी तव नाम ।
कृपा करहु जगदम्ब अब आया तेरे धाम ॥
॥ चौपाई ॥
जय सन्तोषी मात अनूपम ।
शान्ति दायिनी रूप मनोरम ॥
सुन्दर वरण चतुर्भुज रूपा ।
वेश मनोहर ललित अनुपा ॥
श्वेताम्बर रूप मनहारी ।
माँ तुम्हारी छवि जग से न्यारी ॥
दिव्य स्वरूपा आयत लोचन ।
दर्शन से हो संकट मोचन ॥ 4 ॥
जय गणेश की सुता भवानी ।
रिद्धि- सिद्धि की पुत्री ज्ञानी ॥
अगम अगोचर तुम्हरी माया ।
सब पर करो कृपा की छाया ॥
नाम अनेक तुम्हारे माता ।
अखिल विश्व है तुमको ध्याता ॥
तुमने रूप अनेकों धारे ।
को कहि सके चरित्र तुम्हारे ॥ 8 ॥
धाम अनेक कहाँ तक कहिये ।
सुमिरन तब करके सुख लहिये ॥
विन्ध्याचल में विन्ध्यवासिनी ।
कोटेश्वर सरस्वती सुहासिनी ॥
कलकत्ते में तू ही काली ।
दुष्ट नाशिनी महाकराली ॥
सम्बल पुर बहुचरा कहाती ।
भक्तजनों का दुःख मिटाती ॥ 12 ॥
ज्वाला जी में ज्वाला देवी ।
पूजत नित्य भक्त जन सेवी ॥
नगर बम्बई की महारानी ।
महा लक्ष्मी तुम कल्याणी ॥
मदुरा में मीनाक्षी तुम हो ।
सुख दुख सबकी साक्षी तुम हो ॥
राजनगर में तुम जगदम्बे ।
बनी भद्रकाली तुम अम्बे ॥ 16 ॥
पावागढ़ में दुर्गा माता ।
अखिल विश्व तेरा यश गाता ॥
काशी पुराधीश्वरी माता ।
अन्नपूर्णा नाम सुहाता ॥
सर्वानन्द करो कल्याणी ।
तुम्हीं शारदा अमृत वाणी ॥
तुम्हरी महिमा जल में थल में ।
दुःख दारिद्र सब मेटो पल में ॥ 20 ॥
जेते ऋषि और मुनीशा ।
नारद देव और देवेशा ।
इस जगती के नर और नारी ।
ध्यान धरत हैं मात तुम्हारी ॥
जापर कृपा तुम्हारी होती ।
वह पाता भक्ति का मोती ॥
दुःख दारिद्र संकट मिट जाता ।
ध्यान तुम्हारा जो जन ध्याता ॥ 24 ॥
जो जन तुम्हरी महिमा गावै ।
ध्यान तुम्हारा कर सुख पावै ॥
जो मन राखे शुद्ध भावना ।
ताकी पूरण करो कामना ॥
कुमति निवारि सुमति की दात्री ।
जयति जयति माता जगधात्री ॥
शुक्रवार का दिवस सुहावन ।
जो व्रत करे तुम्हारा पावन ॥ 28 ॥
गुड़ छोले का भोग लगावै ।
कथा तुम्हारी सुने सुनावै ॥
विधिवत पूजा करे तुम्हारी ।
फिर प्रसाद पावे शुभकारी ॥
शक्ति-सामरथ हो जो धनको ।
दान-दक्षिणा दे विप्रन को ॥
वे जगती के नर औ नारी ।
मनवांछित फल पावें भारी ॥ 32 ॥
जो जन शरण तुम्हारी जावे ।
सो निश्चय भव से तर जावे ॥
तुम्हरो ध्यान कुमारी ध्यावे ।
निश्चय मनवांछित वर पावै ॥
सधवा पूजा करे तुम्हारी ।
अमर सुहागिन हो वह नारी ॥
विधवा धर के ध्यान तुम्हारा ।
भवसागर से उतरे पारा ॥ 36 ॥
जयति जयति जय संकट हरणी ।
विघ्न विनाशन मंगल करनी ॥
हम पर संकट है अति भारी ।
वेगि खबर लो मात हमारी ॥
निशिदिन ध्यान तुम्हारो ध्याता ।
देह भक्ति वर हम को माता ॥
यह चालीसा जो नित गावे ।
सो भवसागर से तर जावे ॥ 40 ॥
॥ दोहा ॥
संतोषी माँ के सदा बंदहूँ पग निश वास ।
पूर्ण मनोरथ हो सकल मात हरौ भव त्रास ॥
॥ इति श्री संतोषी माता चालीसा ॥
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