Feb Ekadashi 2026: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है, और फाल्गुन शुक्ल पक्ष में आने वाली रंगभरी एकादशी इस परंपरा में एक अनोखा स्थान रखती है। यह एकादशी केवल उपवास और साधना तक सीमित नहीं रहती, बल्कि इसमें भक्ति, आनंद और उल्लास का संगम दिखाई देता है। वसंत ऋतु के आगमन के साथ यह पर्व होली के रंगों की आहट भी देता है। मान्यता है कि इस दिन से ब्रज क्षेत्र में होली का औपचारिक आरंभ माना जाता है। मंदिरों, गलियों और भक्तों के हृदय में भक्ति के रंग घुलने लगते हैं और वातावरण आध्यात्मिक उल्लास से भर उठता है।

रंगभरी एकादशी का महत्व
रंगभरी एकादशी का मूल भाव भक्त और भगवान के बीच प्रेम और समर्पण का है। यह दिन बताता है कि भक्ति केवल तप और त्याग का नाम नहीं, बल्कि आनंद, सौंदर्य और प्रेम का उत्सव भी है। शास्त्रों में वर्णित है कि एकादशी का व्रत मन, शरीर और आत्मा—तीनों को शुद्ध करता है। रंगभरी एकादशी पर किया गया व्रत विशेष रूप से मन के विकारों को दूर कर भक्त को आनंद और सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। यह दिन हमें सिखाता है कि ईश्वर की आराधना प्रसन्न हृदय से की जाए तो जीवन स्वयं उत्सव बन जाता है।
रंगभरी एकादशी व्रत का महत्व
इस एकादशी का व्रत रखने से जीवन में सुख, शांति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि जो भक्त श्रद्धा से इस दिन उपवास करता है और भगवान विष्णु तथा श्रीकृष्ण का स्मरण करता है, उसके जीवन से नकारात्मकता दूर होती है। यह व्रत इंद्रियों पर संयम और मन पर नियंत्रण का अभ्यास कराता है। रंगभरी एकादशी पर व्रत का पालन करते हुए भजन, कीर्तन और कथा श्रवण करने से भक्ति का रस और गहरा होता है। माना जाता है कि इस दिन किया गया जप और ध्यान शीघ्र फल देने वाला होता है।
ब्रज में रंगभरी एकादशी का उत्सव
रंगभरी एकादशी का सबसे भव्य रूप ब्रजभूमि में देखने को मिलता है। वृंदावन, बरसाना और मथुरा जैसे पावन स्थानों में यह पर्व विशेष श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। मंदिरों में ठाकुरजी को गुलाल अर्पित किया जाता है और भक्त एक-दूसरे पर प्रेम के रंग उड़ाते हैं। यह केवल रंग खेलने का पर्व नहीं, बल्कि भक्ति के माध्यम से आत्मिक आनंद को अनुभव करने का अवसर होता है। ब्रज की गलियों में गूंजते भजन और कीर्तन वातावरण को दिव्यता से भर देते हैं।
राधा-कृष्ण से जुड़ी पौराणिक कथा
रंगभरी एकादशी का गहरा संबंध राधा और कृष्ण की लीलाओं से जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथा के अनुसार, फाल्गुन मास में भगवान कृष्ण ने वृंदावन में राधा रानी और सखियों के साथ प्रेमपूर्वक रंग खेला था। यह वही समय था जब प्रेम, भक्ति और आनंद एक-दूसरे में घुल गए थे। कहा जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने अपने प्रेम को रंगों के माध्यम से प्रकट किया और राधा रानी के साथ दिव्य होली खेली। यही कारण है कि इसे रंगभरी एकादशी कहा गया।
राधा-कृष्ण की यह लीला केवल एक कथा नहीं, बल्कि जीवन का गूढ़ संदेश है। यह बताती है कि प्रेम जब भक्ति से जुड़ता है तो वह दिव्यता का रूप ले लेता है। रंगभरी एकादशी हमें सिखाती है कि अहंकार, द्वेष और भेदभाव को त्यागकर प्रेम और करुणा के रंग अपनाए जाएं। जैसे रंग एक-दूसरे में मिलकर सुंदरता बढ़ाते हैं, वैसे ही भक्ति और प्रेम मिलकर जीवन को सार्थक बनाते हैं।
रंगभरी एकादशी और होली का संबंध
रंगभरी एकादशी को होली पर्व की भूमिका के रूप में भी देखा जाता है। मान्यता है कि इस दिन से होली की तैयारियां शुरू हो जाती हैं और वातावरण में रंगों की मस्ती छा जाती है। यह पर्व बताता है कि आध्यात्मिकता और उत्सव एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं। जब भक्ति आनंद से जुड़ती है, तब वह और अधिक प्रभावशाली बन जाती है। इसलिए रंगभरी एकादशी को आनंदमयी भक्ति का पर्व कहा जाता है।
रंगभरी एकादशी का प्रभाव केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक भी है। यह पर्व समाज में आपसी प्रेम, भाईचारे और सौहार्द की भावना को मजबूत करता है। लोग पुराने मतभेद भुलाकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और शुभकामनाएं देते हैं। यह परंपरा समाज को जोड़ने और सकारात्मक ऊर्जा फैलाने का कार्य करती है। रंगभरी एकादशी इस बात का प्रतीक है कि जीवन में उल्लास और आध्यात्मिकता साथ-साथ चल सकते हैं।
रंगभरी एकादशी एक ऐसा पर्व है जिसमें व्रत की पवित्रता, भक्ति की गहराई और उत्सव की मधुरता—तीनों का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यह दिन राधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम की स्मृति कराता है और हमें प्रेम, करुणा तथा आनंद से भरा जीवन जीने की प्रेरणा देता है। श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाई गई रंगभरी एकादशी न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है, बल्कि जीवन को रंगों की तरह सुंदर और अर्थपूर्ण भी बना देती है।
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