Pitru Paksh 2025 : पितृपक्ष का काल हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना गया है। मान्यता है कि इस अवधि में हमारे पितृलोक से पूर्वज अपनी संतान और वंशजों को आशीर्वाद देने के लिए धरती पर आते हैं। उनकी आत्मा की तृप्ति और शांति के लिए श्राद्ध तथा तर्पण का आयोजन किया जाता है।
शास्त्रों में वर्णन है कि जब तर्पण और पिंडदान श्रद्धा भाव से किया जाता है, तो न केवल पितरों की आत्मा प्रसन्न होती है, बल्कि परिवार में सुख-समृद्धि, वंश की वृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति होती है। पितृपक्ष के दौरान कुछ विशेष नियमों और मर्यादाओं का पालन करना आवश्यक माना गया है। आइए विस्तार से समझते हैं कि इस पावन काल में कौन-से कार्य करने चाहिए और किन चीजों से बचना आवश्यक है।
पितृपक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, सनातन धर्म की परंपराओं में अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। मान्यता है कि इस अवधि के 15 दिनों में पितृ अपने वंशजों को आशीर्वाद देने के उद्देश्य से धरती पर आते हैं। उनके आत्मिक कल्याण और शांति की प्राप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक तर्पण, पिंडदान और अन्य धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं।
शास्त्रों में उल्लेख है कि यदि पितरों के नाम से पूरी श्रद्धा और विधि-विधान के अनुसार तर्पण किया जाए, तो परिवार में वंश की वृद्धि होती है और व्यक्ति को सुख, सौभाग्य तथा समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। लेकिन यह भी कहा गया है कि पितृपक्ष के समय कुछ नियमों और मर्यादाओं का पालन करना आवश्यक है। यदि इन नियमों की उपेक्षा की जाए तो पितृ अप्रसन्न हो जाते हैं और इससे जीवन में बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि पितृपक्ष के दौरान कौन-से कार्य करने चाहिए और किन बातों से बचना आवश्यक है।
पितृपक्ष में क्या न करें (Pitru Paksha 2025 Niyam)
शास्त्रों में पितृपक्ष के लिए कई नियम और आचरण बताए गए हैं, जिनका पालन करना हर गृहस्थ का कर्तव्य माना गया है। इस अवधि में कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृहप्रवेश, नई दुकान या कारोबार की शुरुआत नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से पितृ अप्रसन्न हो सकते हैं और कार्य में बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं।
इसके अतिरिक्त, पितृपक्ष के दौरान आचरण की शुद्धता का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। किसी से झूठ बोलना, छल-कपट करना या अपशब्दों का प्रयोग करना वर्जित माना गया है। यह काल आत्मसंयम और सदाचार का होता है, इसलिए ब्रह्मचर्य का पालन करना भी अनिवार्य बताया गया है।
भोजन संबंधी नियमों का भी इस समय विशेष महत्व होता है। पितृपक्ष में शराब, मांसाहार, पान, प्याज, लहसुन, बैंगन, मूली, लौकी, मसूर की दाल, सरसों का साग, काला नमक, सत्तू और बासी भोजन का सेवन वर्जित माना गया है। इन वस्तुओं का प्रयोग पितरों को अप्रसन्न करता है और परिवार पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। अतः पितृपक्ष में सात्विक आहार, संयमित आचरण और श्रद्धा भाव से तर्पण करना ही श्रेष्ठ माना गया है।
पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। शास्त्रों के अनुसार, पितरों के तर्पण के लिए काले तिल का ही प्रयोग किया जाता है, क्योंकि यह पितरों को तृप्त करने वाला माना गया है। इसलिए भूलकर भी सफेद तिल का प्रयोग न करें। इसी प्रकार श्राद्ध के भोजन को बनाने के लिए लोहे या स्टील के बर्तनों का उपयोग वर्जित है। इसके स्थान पर पीतल के बर्तन का प्रयोग शुभ और शुद्ध माना गया है।
खाना पकाने से जुड़ी कुछ विशेष मर्यादाएँ भी हैं। पितरों के लिए बनाए जाने वाले भोजन को बिना चखे तैयार करना चाहिए। भोजन पकाने वाला व्यक्ति पहले खुद भोजन न करे, क्योंकि ऐसा करना अनुचित माना जाता है। पितृपक्ष में यदि आपके घर के द्वार पर कोई गाय, कुत्ता, भिखारी या ब्राह्मण भोजन की याचना के लिए आता है, तो उसका अपमान या अनादर नहीं करना चाहिए। इन्हें सम्मान और श्रद्धा से भोजन कराना पितरों की प्रसन्नता का कारण बनता है।
तर्पण का समय भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। शास्त्रों के अनुसार, पितरों के तर्पण के लिए दोपहर अथवा अपराह्न का समय सबसे श्रेष्ठ और पुण्यदायी माना गया है। ब्रह्म मुहूर्त या प्रातःकाल में श्राद्ध करने से अपेक्षित फल प्राप्त नहीं होता।
इस प्रकार यदि पितृपक्ष के सभी नियमों और मर्यादाओं का पालन श्रद्धा और विधिपूर्वक किया जाए, तो परिवार पर सदैव पितरों की कृपा बनी रहती है और जीवन में सुख-समृद्धि, शांति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
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