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Parashuram Jayanti 2024: परशुराम जयंती कब है? जाने पूजा का शुभ मुहूर्त, विधि और पौराणिक कथा

परशुराम जयंती, जिसे वशिष्ठ जयंती और बेहुलाशमी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के एक महत्वपूर्ण त्योहार के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार, परशुराम जी के जन्म का उत्सव है। भगवान परशुराम को एक महान योद्धा और विद्वान ऋषि के रूप में सम्मानित किया जाता है। उनके जीवन और कार्यों से जुड़ी कथाएं सत्य, न्याय और धर्म के महत्व को दर्शाती हैं। आइए इस लेख में हम परशुराम जयंती 2024 की तिथि, पूजा विधि, पौराणिक कथा और महत्व के बारे में विस्तार से जानें।

Parashuram Jayanti 2024

परशुराम जयंती 2024 की तिथि और शुभ मुहूर्त (Parashuram Jayanti 2024 Date)

वर्ष 2024 में परशुराम जयंती का पावन पर्व 10 मई को मनाया जाएगा। यह तिथि ज्येष्ठ मास की तृतीया तिथि को पड़ती है। पूजा का शुभ मुहूर्त – सुबह 7: 14 मिनट से 8:55 मिनट तक।

परशुराम जयंती का महत्व (Parashuram Jayanti Importance)

परशुराम जयंती का हिंदू धर्म में कई स्तरों पर महत्वपूर्ण स्थान है। आइए इन विभिन्न आयामों को समझते हैं:

  • भगवान परशुराम का जन्मोत्सव: यह दिन भगवान परशुराम के जन्म का उत्सव है, जो विष्णु के छठे अवतार के रूप में जाने जाते हैं। भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए विभिन्न अवतार लिए, और परशुराम जी का अवतार पृथ्वी पर क्षत्रिय वर्चस्व को कम करने और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए हुआ था।
  • एक महान योद्धा का सम्मान: भगवान परशुराम को एक महान योद्धा के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रियों के अत्याचारों से मुक्त कराया था। उन्होंने धर्महीन और अहंकारी क्षत्रियों का संहार किया और पृथ्वी पर धार्मिक शासन स्थापित किया।
  • विद्वान ऋषि के रूप में सम्मान: भगवान परशुराम केवल एक महान योद्धा ही नहीं बल्कि एक विद्वान ऋषि भी थे। उन्हें वेदों और शास्त्रों का गहन ज्ञान था। उन्होंने शिष्यों को शिक्षा दी और समाज में धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रसार किया।
  • सत्य और न्याय का प्रतीक: भगवान परशुराम को सत्य और न्याय का प्रतीक माना जाता है। उनके जीवन और कार्यों से हमें यह संदेश मिलता है कि सत्य और धर्म के मार्ग पर चलना ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।

परशुराम जयंती की पूजा विधि (Parashuram Jayanti Puja Vidhi 2024)

परशुराम जयंती के दिन भक्तगण भगवान परशुराम की श्रद्धापूर्वक पूजा करते हैं। पूजा विधि इस प्रकार है:

  1. प्रातःकाल उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अपने मन और आत्मा को शुद्ध करके पूजा की तैयारी करें।
  2. पूजा स्थान की साफ-सफाई करें और सजावट करें। आप मंदिर या पूजा स्थल को रंगोली से सजा सकते हैं और पुष्प एवं धूप से सुगंधित वातावरण बना सकते हैं।
  3. भगवान परशुराम की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। यदि आपके पास भगवान परशुराम की प्रतिमा है तो उसे स्थापित करें, नहीं तो उनकी तस्वीर का भी उपयोग किया जा सकता है।
  4. आसन पर बैठकर भगवान गणेश की पूजा करें। किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने से पहले भगवान गणेश की पूजा आवश्यक मानी जाती है।
  5. पंचामृत से भगवान परशुराम का अभिषेक करें। पंचामृत में दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल का मिश्रण होता है। यह अभिषेक शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है।
  6. भगवान को वस्त्र, यज्ञोपवीत और आभूषण अर्पित करें। आप भगवान परशुराम को पीले वस्त्र, यज्ञोपवीत और धातु का बना हुआ परशु अर्पित कर सकते हैं।
  7. स्नान के बाद भगवान को सुगंधित पुष्प, फल और मिठाई का भोग लगाएं। आप तुलसी के पत्ते, कमल के फूल और पंचामृत से बने मीठे व्यंजन का भोग लगा सकते हैं।
  8. दीप प्रज्वलित करें और भगवान परशुराम की आरती करें। आप घी या तेल का दीप जला सकते हैं और भक्तिभाव से भगवान परशुराम की आरती गाएं।
  9. भगवान परशुराम के मंत्रों का जाप करें। आप “ॐ परशुरामाय नमः” या “ॐ ह्रीं परशुरामाय नमः” जैसे मंत्रों का जाप कर सकते हैं।
  10. भगवान से आशीर्वाद और ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करें। अपने मनोकामनाओं को भगवान के सम्मुख रखें और उनसे सच्चे मार्ग पर चलने का आशीर्वाद मांगें।
  11. दिन भर उपवास रख सकते हैं या सात्विक भोजन ग्रहण करें। आप इस दिन उपवास रख सकते हैं या सात्विक भोजन जैसे फल, सब्जियां और दूध का सेवन कर सकते हैं।
  12. जरूरतमंदों की सहायता करें और दान करें। परशुराम जयंती के पावन अवसर पर गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करें और अन्न, वस्त्र या धन का दान करें। दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और समाज में सद्भाव बना रहता है।

परशुराम जयंती से जुड़ी पौराणिक कथा (Parashuram Jayanti Pauranik Katha)

परशुराम जयंती भगवान परशुराम के जन्म का उत्सव मनाती है, लेकिन उनकी जीवन यात्रा से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा भी है। आइए इस कथा को विस्तार से जानते हैं:

ऋषि जमदग्नि और उनकी पत्नी रेणुका के छह पुत्र थे। परशुराम उनका छठा पुत्र था। जमदग्नि एक महान ऋषि थे और उनके पास अमोघ शक्ति वाला एक दिव्य परशु (कुल्हाड़ी) था।

एक बार, स्वर्गलोक के राजा इंद्र ने जमदग्नि के परशु को प्राप्त करना चाहा। उन्होंने जमदग्नि के पुत्रों को धोखा देकर परशु को चुरा लिया। क्रोधित होकर जमदग्नि के पुत्रों ने इंद्र के दूतों को मार डाला।

जब जमदग्नि को इस घटना का पता चला तो उन्होंने अपने पुत्रों को क्षमा करने के लिए इंद्र से विनती की। लेकिन इंद्र नहीं माने। जमदग्नि के पुत्रों का अहंकार उन्हें क्षमा के मार्ग से दूर ले गया। क्रोध में जमदग्नि ने अपने पुत्रों को आदेश दिया कि वे अपनी माता रेणुका का सिर काट दें।

यह आदेश सभी पुत्रों के लिए कठिन था। वे अपनी माता का सिर कैसे काट सकते थे? लेकिन परशुराम अपने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए जाने जाते थे। उन्होंने भारी मन से अपनी माता का सिर काट दिया।

इस घटना के बाद, जमदग्नि को अपने पुत्र के कृत्य पर पश्चाताप हुआ। उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की और उनसे क्षमा मांगी। भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने रेणुका को जीवनदान दिया।

जमदग्नि ने परशुराम को क्षमा मांगी और उन्हें एक वरदान दिया। परशुराम ने अपने पिता से अमरता

का वरदान मांगा, लेकिन जमदग्नि ने उन्हें समझाया कि अमरता का वरदान संसार के नियमों के विरुद्ध है। इसके बजाय, परशुराम ने अमरत्व के समान ही दीर्घायु और युद्ध में कभी न हारने का वरदान मांगा। जमदग्नि ने उन्हें यह वरदान दिया।

भविष्य में, परशुराम ने पृथ्वी को 21 बार क्षत्रियों के अत्याचारों से मुक्त कराया। उन्होंने धर्महीन और अहंकारी क्षत्रियों का संहार किया और पृथ्वी पर धार्मिक शासन स्थापित किया।

यह कथा हमें कई महत्वपूर्ण संदेश देती है। सबसे पहले, यह कथा आज्ञाकारिता और कर्तव्यनिष्ठा का पाठ पढ़ाती है। परशुराम अपने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए समर्पित थे, भले ही वह आज्ञा कितनी कठिन क्यों न हो।

दूसरे, यह कथा हमें कर्मों के फल के बारे में भी बताती है। जमदग्नि के पुत्रों को उनके अहंकार का दंड भुगतना पड़ा। रेणुका के सिर कटने की घटना एक दुखद परिणाम थी।

तीसरे, यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि क्षमा ही सबसे बड़ा धर्म है। जमदग्नि ने अपने पुत्रों को क्षमा कर दिया और भगवान शिव ने रेणुका को जीवनदान दिया। क्षमा ही समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखने का मार्ग है।

परशुराम जयंती का पर्व भगवान परशुराम के जीवन, कर्मों और आदर्शों का स्मरण कराता है। यह दिन हमें सत्य, न्याय, धर्म, आज्ञाकारिता और कर्तव्यनिष्ठा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

परशुराम जयंती के विभिन्न क्षेत्रों में मनाए जाने वाले रिवाज

परशुराम जयंती पूरे भारत में मनाई जाती है, लेकिन विभिन्न क्षेत्रों में इसे अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। आइए कुछ क्षेत्रों में परशुराम जयंती के रिवाजों के बारे में जानते हैं:

  • महाराष्ट्र: महाराष्ट्र में परशुराम जयंती को ‘पराशुराम जयंती’ या ‘बैल पोला’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग बैलों की पूजा करते हैं, क्योंकि माना जाता है कि भगवान परशुराम ने पृथ्वी को हल चलाने के लिए बैल को बनाया था।
  • केरल: केरल में परशुराम जयंती को ‘हयग्रीवा जयंती’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग भगवान परशुराम के गुरु भगवान हयग्रीव की पूजा करते हैं।
  • उत्तर भारत: उत्तर भारत में परशुराम जयंती को सादगी से मनाया जाता है। लोग भगवान परशुराम की पूजा करते हैं और कथा सुनते हैं।

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