June Ekadashi Date 2025: सनातन धर्म में निर्जला एकादशी का अत्यंत पावन महत्व बताया गया है। यह व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है और इसे वर्ष की सबसे कठोर लेकिन अत्यधिक पुण्यदायी एकादशी माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। शास्त्रों में बताया गया है कि इस तिथि पर उपवास, पूजन और कुछ विशेष वस्तुएं घर लाने से धन-धान्य की वृद्धि, सकारात्मक ऊर्जा का आगमन और मां लक्ष्मी की अनुकम्पा प्राप्त होती है।

Nirjala Ekadashi 2025 Date: निर्जला एकादशी के दिन व्रत रखने वाले साधक को सभी एकादशियों का संयुक्त पुण्यफल प्राप्त होता है। यही कारण है कि इस व्रत को “एकादशियों का सम्राट” भी कहा जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस दिन विष्णु पूजन, तुलसी अर्पण, पवित्र मंत्रों का जाप और अन्न, जल एवं वस्त्र दान अत्यंत पुण्यकारी होते हैं।
मान्यता है कि यदि इस दिन कुछ शुभ वस्तुएं घर लायी जाएं, तो घर में लक्ष्मीजी का स्थायी वास होता है और आय के स्रोत भी बढ़ते हैं। इसलिए यह जानना उपयोगी है कि निर्जला एकादशी 2025 के दिन किन वस्तुओं को घर में लाना चाहिए ताकि जीवन में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहे।
घर में सकारात्मक ऊर्जा का आगमन:
निर्जला एकादशी के दिन कामधेनु गाय की मूर्ति को घर में स्थापित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि कामधेनु समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली देवीगाय मानी जाती है। इसे घर में रखने से न केवल धन में वृद्धि होती है, बल्कि पारिवारिक वातावरण में शांति और सौहार्द भी बना रहता है। इस एकादशी पर यदि साधक कामधेनु की प्रतिमा घर लाते हैं, तो पूरे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
तुलसी का पौधा लाने से मिलेगा सुख-शांति का वरदान:
सनातन परंपरा में तुलसी को देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। निर्जला एकादशी के दिन तुलसी का पौधा घर लाना अत्यंत फलदायी होता है। इसे उत्तर या पूर्व दिशा में लगाना वास्तु के अनुसार लाभकारी होता है। धार्मिक विश्वास है कि जहां तुलसी का वास होता है, वहां दरिद्रता, रोग और कलह नहीं टिकते। यह उपाय मां लक्ष्मी की कृपा पाने के साथ-साथ घर की समृद्धि और सुख-शांति के लिए भी कारगर है।
वास्तु दोष से मुक्ति दिलाएगा मोरपंख:
यदि आपके घर में लंबे समय से वास्तु दोष, मानसिक अशांति या नकारात्मकता बनी हुई है, तो निर्जला एकादशी के शुभ दिन मोरपंख को लाकर अपने घर के मंदिर में रखें। धार्मिक दृष्टिकोण से मोरपंख भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय है और इसे रखने से घर में छिपी वास्तु की बाधाएं दूर होती हैं। साथ ही यह मानसिक शांति, रचनात्मक ऊर्जा और ईश्वरीय आशीर्वाद प्रदान करता है।
निर्जला एकादशी 2025: तिथि और समय (Nirjala Ekadashi 2025 Date and Time)
Nirjala Ekadashi 2025 Date and Time: दृक पंचांग के अनुसार, निर्जला एकादशी व्रत 2025 में अत्यंत शुभ और पुण्यकारी मानी गई है। यह व्रत 6 जून 2025, शुक्रवार को प्रारंभ होगा और 7 जून 2025, शनिवार की सुबह तक जारी रहेगा।
- एकादशी तिथि की शुरुआत: 6 जून को सुबह 2:15 बजे
- एकादशी तिथि का समापन: 7 जून को सुबह 4:47 बजे
- हरिवासर का अंत: 7 जून को सुबह 11:25 बजे
व्रती की परंपरा और संप्रदाय के अनुसार:
- स्मार्त व्रत रखने वालों के लिए उपवास: 6 जून, शुक्रवार
- वैष्णव व्रती इस व्रत को 7 जून, शनिवार को करेंगे।
यह व्रत सूर्योदय से लेकर पारण के समय तक चलता है और कुल मिलाकर लगभग 32 घंटे 21 मिनट की अवधि में किया जाता है।
निर्जला एकादशी का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व (Nirjala Ekadashi Mahatva)
‘निर्जला’ शब्द का अर्थ है – बिना जल के। इस व्रत की खास बात यह है कि इसमें न तो अन्न और न ही जल का सेवन किया जाता है। यही कारण है कि यह व्रत साधना, संयम और आत्मनियंत्रण की दृष्टि से सर्वाधिक कठिन और तपस्वी व्रतों में से एक माना गया है।
हिंदू पंचांग के अनुसार यह व्रत वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच, शुक्ल पक्ष की एकादशी को आता है। इसे भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, महाबली भीमसेन ने जब अन्य एकादशी व्रतों का पालन कठिन पाया, तो श्रीव्यासजी के निर्देश पर उन्होंने केवल निर्जला एकादशी का कठोर व्रत किया और उन्हें संपूर्ण वर्ष की 24 एकादशियों का फल प्राप्त हुआ।
व्रत करने के लाभ और जीवन में प्रभाव
यह व्रत मन और शरीर दोनों के शुद्धिकरण का माध्यम है। जहां अन्य एकादशियों में केवल आहार का संयम रखा जाता है, वहीं निर्जला एकादशी में जल तक का त्याग कर तपस्या की जाती है। यह व्रत आध्यात्मिक चेतना को जाग्रत करता है और व्यक्ति को धैर्य, आत्मनियंत्रण और शक्ति प्रदान करता है।
इस दिन उपवास करने वाले व्यक्ति को वैकुंठ धाम की प्राप्ति और समस्त पापों से मुक्ति मिलने की मान्यता है। यह व्रत स्त्री और पुरुष दोनों के लिए समान रूप से फलदायी और लाभकारी होता है। साथ ही, जो व्यक्ति इस दिन दान, जप और भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसे साल की सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है।
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