Narasimha Jayanti 2025 Date: नरसिंह जयंती हिंदू धर्म में अत्यंत पावन और शुभ अवसर माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु ने अपने चौथे अवतार, नरसिंह रूप (अर्ध-मानव और अर्ध-सिंह) में प्रकट होकर अधर्म और अन्याय का विनाश किया था। यही कारण है कि यह पर्व धार्मिक उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। नरसिंह जयंती बुराई, अन्याय और नकारात्मक शक्तियों को दूर करने का प्रतीक मानी जाती है। यह दिन हमें जीवन के हर क्षेत्र में—चाहे वह स्वास्थ्य हो, करियर, धन, प्रेम जीवन या पारिवारिक संबंध—नकारात्मकता को हटाकर सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

नरसिंह जयंती 2025: तिथि और पूजा का समय (Narasimha Jayanti 2025 Date and Time)
नरसिंह जयंती हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाती है। यह पर्व भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की स्मृति में मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह पावन उत्सव रविवार, 11 मई को मनाया जाएगा।
- नरसिंह जयंती पूजा का सयाना काल समय: शाम 4:33 बजे से लेकर रात 7:12 बजे तक
- मध्याह्न संकल्प का समय: सुबह 11:17 बजे से दोपहर 1:55 बजे तक
- चतुर्दशी तिथि प्रारंभ: 10 मई 2025, शाम 5:29 बजे
- चतुर्दशी तिथि समाप्त: 11 मई 2025, रात 8:01 बजे
नरसिंह जयंती का महत्व (Narasimha Jayanti 2025 Mahatva)
नरसिंह जयंती का प्रमुख उद्देश्य अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना है। इस दिन जो भी भक्त सच्चे मन से व्रत रखता है और श्रद्धा पूर्वक भगवान नरसिंह की पूजा करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति दूसरों के प्रति द्वेष या शत्रुता रखता है, तो इस दिन भगवान नरसिंह की आराधना करने से उसके मन में शांति आती है। भगवान नरसिंह अपने भक्तों को नकारात्मक शक्तियों, बुरी नजर और छल-कपट से सुरक्षा प्रदान करते हैं। यह दिन जीवन में सकारात्मकता और न्याय की भावना को बढ़ावा देता है।
नरसिंह जयंती पूजा-विधि (Narasimha Jayanti Puja Vidhi)
भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की कृपा प्राप्त करने के लिए नरसिंह जयंती के दिन विशेष पूजा-विधि अपनाई जाती है। इस दिन श्रद्धालु प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर शुद्ध वस्त्र धारण करते हैं। इसके पश्चात भगवान नरसिंह की प्रतिमा या चित्र के समक्ष चंदन, केसर, नारियल, फल-फूल आदि अर्पित कर पूजा आरंभ की जाती है। भक्तगण इस दिन श्रद्धापूर्वक ‘नरसिंह गायत्री मंत्र’ का जाप करते हैं। उपवास रखने वाले भक्त अपनी श्रद्धा अनुसार तिल, सोना या अन्य पुण्यदायी वस्तुओं का दान कर सकते हैं, जिससे उन्हें भगवान की कृपा और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
नरसिंह जयंती की पौराणिक कथा (Narasimha Jayanti Katha)
प्राचीन भारत में कश्यप नाम के एक प्रसिद्ध ऋषि रहते थे, जिनकी पत्नी दिति से दो पुत्र उत्पन्न हुए—हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु। भगवान विष्णु ने अपने वराह अवतार में हिरण्याक्ष का वध किया, जिससे हिरण्यकशिपु क्रोधित हो गया और अपने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने का निश्चय किया। उसने कठोर तपस्या कर भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न किया और उनसे ऐसा वरदान प्राप्त किया जिससे वह अजेय बन गया।
इस शक्ति के अहंकार में हिरण्यकशिपु ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया और देवताओं, ऋषियों व मुनियों को परेशान करने लगा। इसी समय उसकी पत्नी कयाधु से प्रह्लाद का जन्म हुआ, जो बचपन से ही भगवान विष्णु के परम भक्त थे। प्रह्लाद की आस्था देख हिरण्यकशिपु अत्यंत क्रोधित हो गया और उसने कई बार अपने पुत्र को मारने का प्रयास किया, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा की।
अंततः हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को उसकी बुआ होलिका के साथ आग में बैठा दिया, जो अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त थी। परंतु प्रभु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहा और होलिका भस्म हो गई। क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने खंभे की ओर इशारा करते हुए पूछा कि “तेरा भगवान कहाँ है?”, तभी खंभे से भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए।
चूँकि हिरण्यकशिपु को न किसी मानव, न पशु, न दिन में, न रात में, न धरती और न आकाश पर मारे जाने का वरदान मिला था, इसलिए भगवान नरसिंह ने संध्या समय, अपनी गोद पर बिठाकर, नाखूनों से उसका अंत कर दिया।
यह कथा अधर्म पर धर्म की विजय और भक्ति की शक्ति का प्रतीक है। नरसिंह जयंती पर प्रभु नरसिंह की कृपा से सभी के जीवन में शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का वास हो—इसी शुभकामना के साथ।
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