हिंदू धर्म में एकादशी का स्थान अत्यंत पवित्र और शक्तिदायक माना गया है। कुल चौबीस एकादशियों में से मोक्षदा एकादशी सबसे विशेष मानी जाती है, क्योंकि यह केवल पापों का नाश ही नहीं करती, बल्कि जीवन-मरण के बंधनों से मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करती है। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली यह एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे मोक्ष प्रदान करने वाली तिथि कहा गया है।
शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि इस पवित्र दिन देवी तुलसी भगवान विष्णु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं, इसलिए इस दिन तुलसी पूजन का विशेष महत्व बढ़ जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस एकादशी पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी दोनों की पूजा करने से व्यक्ति के समस्त कष्टों का अंत होता है और जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य का आगमन होता है।
मोक्षदा एकादशी का संबंध गीता जयंती से भी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन महाभारत के युद्ध क्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवद् गीता का दिव्य ज्ञान प्रदान किया था। यह अद्भुत संवाद न केवल अर्जुन के भ्रम को दूर करता है, बल्कि समस्त मानव जाति के लिए कर्म, धर्म, योग और आत्मा के ज्ञान का मार्ग प्रकाशित करता है। इस प्रकार मोक्षदा एकादशी केवल एक व्रत नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक जागरण का समय है, जहाँ मनुष्य आत्मबोध की दिशा में अग्रसर होता है। इस दिन व्रत, पूजा, दान, सत्संग, गीता पाठ और ध्यान को विशेष रूप से श्रेष्ठ माना जाता है।
मोक्षदा एकादशी का महत्व और मोक्ष प्राप्ति का रहस्य
मोक्षदा एकादशी का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के जीवन में संचित पापों का शमन और आत्मा को परम शांति की दिशा में अग्रसर करना है। माना जाता है कि इस एकादशी का व्रत करने से वह सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं, जो जीवन में दुख, क्लेश और असफलताओं का कारण बनती हैं। कई पौराणिक कथाओं में इस तिथि को इतना शक्तिशाली बताया गया है कि इसके प्रभाव से मनुष्य का स्वर्ग और मोक्ष दोनों का मार्ग प्रशस्त होता है। मृत्यु के समय व्यक्ति को किस दिशा में गमन प्राप्त होगा, यह उसके कर्मों और धार्मिक आचरण पर निर्भर करता है। मोक्षदा एकादशी इन दोनों ही स्तरों पर व्यक्ति की आत्मा को पवित्र बनाने का कार्य करती है।
तुलसी माता को देवी लक्ष्मी का रूप माना गया है और वे भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं। हर एकादशी के दिन तुलसी माता भगवान विष्णु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं, इसलिए इस पावन दिन तुलसी से जुड़े उपाय अत्यंत फलदायी सिद्ध होते हैं। मोक्षदा एकादशी पर तुलसी पूजा जीवन के दोषों को मिटाती है और घर में सुख, शांति और धन-संपत्ति के द्वार खोलती है। इस दिन का व्रत व्यक्ति के मन, वाणी और कर्म को सात्विक बनाता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार, इस तिथि पर व्रत रखने से मनुष्य के पूर्व जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं और वह परमपद की प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ता है।
इस तिथि का प्रभाव केवल मनुष्य तक सीमित नहीं है, बल्कि कई विद्वान मानते हैं कि मोक्षदा एकादशी का वातावरण दिव्य ऊर्जा से परिपूर्ण होता है। गंगा, यमुना, सरस्वती और पवित्र तीर्थस्थलों पर इस दिन साधु-संतों और भक्तों की भीड़ उमड़ती है। गीता का पाठ, विष्णु सहस्रनाम और ओम नमो भगवते वासुदेवाय का जप करने पर मन को जो शांति प्राप्त होती है, वह सामान्य दिनों में संभव नहीं होती।
मोक्षदा एकादशी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि वर्ष 2025 में नवंबर और दिसंबर के संधिकाल में पड़ेगी। पंचांग के अनुसार, एकादशी तिथि 30 नवंबर 2025 दिन रविवार रात 9:29 बजे प्रारंभ होगी और इसका समापन 1 दिसंबर 2025 दिन सोमवार शाम 7:01 बजे होगा। उदया तिथि का विशेष महत्व होने के कारण मोक्षदा एकादशी का व्रत 1 दिसंबर 2025 को रखा जाएगा। इस दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक व्रत का पालन करना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। रात्रि में हरि-नाम जप और प्रभु के ध्यान से व्रत पूर्ण होता है।
मोक्षदा एकादशी और तुलसी पूजा का दिव्य संबंध
तुलसी की पवित्रता और शक्ति का वर्णन स्वयं पुराणों में मिलता है। तुलसी को पृथ्वी पर अवतरित देवी माना गया है, जो भगवान विष्णु की अति प्रिय संगिनी हैं। उनकी उपस्थित से ही घर और मंदिर शुद्ध होते हैं। मोक्षदा एकादशी के दिन तुलसी माता विशेष रूप से जाग्रत मानी जाती हैं, और इस कारण इस दिन किया गया हर तुलसी उपाय अत्यंत फलदायी माना गया है। तुलसी के पौधे में बस घर के सद्भाव और सौभाग्य को बढ़ाने की क्षमता होती है। खासकर इस दिन तुलसी के पास दीप जलाना, तुलसी जल अर्पित करना और तुलसी मंत्रों का जाप जीवन की नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर देता है।
मोक्षदा एकादशी 2025 पर तुलसी से जुड़े पवित्र उपाय
इस दिव्य दिन की सुबह स्नान करने के बाद तुलसी माता के पौधे में जल या गाय का कच्चा दूध अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से घर का वातावरण पवित्र होता है और मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। तुलसी की परिक्रमा करने से शरीर और मन के दोष दूर होते हैं। सात बार परिक्रमा करते हुए ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप अत्यंत शुभ माना गया है, क्योंकि यह मंत्र भगवान विष्णु के परम स्वरूप का स्मरण कराता है। इस जाप से आर्थिक समस्याएँ कम होती हैं और जीवन में स्थिरता आती है।
भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इस दिन केसर मिश्रित खीर का भोग लगाना अत्यंत शुभ माना गया है। विष्णु को खीर विशेष रूप से प्रिय है और जब इसमें तुलसी दल अर्पित किया जाता है, तब इसका फल कई गुना बढ़ जाता है। इस दिन सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास घी का दीपक जलाना मोक्ष प्रदान करने वाला माना गया है। लोक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं और आत्मा में शुद्धता का संचार होता है। दीपक की लौ को देखना मन को शांत करता है और व्यक्ति के भीतर भक्ति की भावना प्रबल होती है।
मोक्षदा एकादशी का व्रत और त्योहार का आध्यात्मिक प्रभाव
मोक्षदा एकादशी का व्रत केवल भोजन त्याग का नियम नहीं है, बल्कि यह आत्मानुशासन, संयम और प्रभु भक्ति का संयुक्त स्वरूप है। इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति दिन भर भगवान विष्णु का स्मरण करता है। मानसिक रूप से शांत और एकाग्र रहकर अपने समस्त कर्मों का निरीक्षण करता है और आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है। कहा जाता है कि इस एकादशी पर किया गया दान अनेक गुना फल प्रदान करता है। गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करने से भगवान विष्णु स्वयं प्रसन्न होते हैं। इस दिन मंदिरों में कीर्तन, भजन, गीता पाठ और अखंड हरिनाम संकीर्तन होता है।
मोक्षदा एकादशी जीवन में एक नई दिशा प्रदान करती है। यह तिथि हमें यह संदेश देती है कि मोक्ष केवल मृत्यु के बाद प्राप्त होने वाली अवस्था नहीं है, बल्कि मोक्ष एक मानसिक शांति है। जब हमारा मन वासनाओं, अहंकार, क्रोध, लोभ और मोह से मुक्त होने लगता है, तभी वास्तविक मोक्ष का अनुभव होता है। मोक्षदा एकादशी इस मार्ग को सरल बनाती है और मनुष्य को आत्मचिंतन का अवसर देती है।
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