Last Updated: 06 May 2025
Mohini Ekadashi Vrat Katha: मोहिनी एकादशी का व्रत हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को श्रद्धा और विधिपूर्वक रखा जाता है। इस पावन व्रत का विशेष महत्व पद्म पुराण में विस्तार से बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी को श्रद्धा से करने पर न केवल इस जन्म के, बल्कि पिछले जन्मों के पाप भी समाप्त हो जाते हैं।इस दिन व्रत करने वाले को मोहिनी एकादशी व्रत कथा का श्रवण अथवा पठन अवश्य करना चाहिए, क्योंकि बिना कथा सुने यह व्रत अधूरा माना जाता है।

मोहिनी एकादशी व्रत कथा (Mohini Ekadashi Vrat Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, जब युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से वैशाख शुक्ल एकादशी का नाम और उसका फल जानने की जिज्ञासा जताई, तो श्रीकृष्ण ने उन्हें एक प्राचीन संवाद सुनाया। यह वही संवाद था जो श्रीराम ने महर्षि वशिष्ठ से किया था।
भगवान श्रीराम ने वशिष्ठ जी से प्रश्न किया था— “ऐसा कौन-सा व्रत है, जो सभी पापों का अंत करता है और जीवन से दुःखों को दूर करता है?” इस पर वशिष्ठ मुनि ने बताया कि वैशाख शुक्ल एकादशी को रखा जाने वाला मोहिनी एकादशी व्रत अत्यंत पुण्यदायी होता है।
इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य माया, मोह और पाप के बंधनों से मुक्त होकर शुद्ध और सात्त्विक जीवन की ओर अग्रसर होता है। इसका फल अत्यंत कल्याणकारी माना गया है और यह व्रत मोक्ष प्रदान करने वाला कहा गया है।
सरस्वती नदी के सुरम्य तट पर स्थित एक सुंदर नगर था, जिसका नाम था भद्रावती। इस नगर में चंद्र वंश से उत्पन्न एक तेजस्वी राजा द्युतिमान का शासन था। उसी नगर में एक वैश्य परिवार का प्रतिष्ठित पुरुष धनपाल निवास करता था, जो अत्यंत समृद्ध और धार्मिक प्रवृत्ति का था। वह सदैव परोपकार और पुण्य के कार्यों में लीन रहता था।
धनपाल ने जनकल्याण के लिए प्याऊ, कुएं, मंदिर, बाग-बगीचे, तालाब और विश्रामगृह जैसी अनेक सुविधाएं बनवाई थीं। भगवान विष्णु के प्रति उसमें गहरी श्रद्धा और भक्ति थी। उसका स्वभाव शांत और संयमी था।
धनपाल के पांच पुत्र थे — सुमना, द्युतिमान, मेधावी, सुकृत और धृष्टबुद्धि। इन पाँचों में धृष्टबुद्धि सबसे छोटा था और स्वभाव से अत्यंत अवगुणों वाला था। वह बुरे संग में पड़कर जुआ खेलने, व्यसनों में डूबने और अनैतिक जीवन जीने का अभ्यासी बन गया था। वेश्याओं के संपर्क में रहने की उसमें तीव्र इच्छा थी और उसे न तो देवताओं की पूजा में रुचि थी और न ही ब्राह्मणों या पितरों के आदर-सत्कार में। उसने अपने पिता की कमाई को गलत रास्तों पर खर्च कर, अपार पाप अर्जित किए थे।
एक दिन धृष्टबुद्धि को लोगों ने नगर के चौराहे पर एक वेश्या के साथ कंधे से कंधा मिलाकर घूमते हुए देख लिया। यह दृश्य देखकर उसके पिता ने अत्यंत क्षुब्ध होकर उसे घर से निकाल दिया। परिवार और समाज के अन्य सदस्यों ने भी उससे संबंध समाप्त कर लिए। अब वह निराशा और दुःख के गर्त में डूब गया और दर-दर भटकने लगा। जीवन में दुख और अपमान का बोझ उठाते हुए वह पूर्णतः असहाय हो गया।
किसी शुभ कर्म के प्रभाव से, एक दिन वह भ्रमण करते हुए महर्षि कौण्डिन्य के आश्रम तक पहुँच गया। उस समय वैशाख मास चल रहा था। महर्षि कौण्डिन्य, जो तपस्वी और धर्मनिष्ठ थे, गंगा स्नान के पश्चात अपने आश्रम लौटे थे। धृष्टबुद्धि, जो पश्चाताप की अग्नि में जल रहा था, मुनि के पास जाकर folded hands (हाथ जोड़कर) खड़ा हो गया और निवेदन किया —
“हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! कृपया मुझ पर कृपा करें और कोई ऐसा व्रत बताइए, जिसकी शक्ति से मैं अपने जीवन के पापों से मुक्ति पा सकूं।”
महर्षि कौण्डिन्य ने धृष्टबुद्धि से कहा— “तुम वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली मोहिनी एकादशी का व्रत करो। यह व्रत इतना प्रभावशाली है कि इसके पालन से जीवों के अनेक जन्मों के विशालतम पाप, चाहे वे मेरु पर्वत के समान ही क्यों न हों, पूर्णतः नष्ट हो जाते हैं।”
वसिष्ठ मुनि ने श्रीराम को बताया— “हे रघुनंदन! जब धृष्टबुद्धि ने मुनिवर कौण्डिन्य की यह बात सुनी तो उसका मन आनंद से भर गया। उसने पूरी श्रद्धा और विधिपूर्वक मोहिनी एकादशी का उपवास किया। इस व्रत के प्रभाव से वह समस्त पापों से मुक्त हो गया।”
वह दिव्य तेज से युक्त होकर गरुड़ पर आरूढ़ हुआ और सब प्रकार के कष्टों से मुक्त होकर भगवान विष्णु के धाम को प्राप्त हो गया।
इस प्रकार, मोहिनी एकादशी का व्रत अत्यंत पुण्यदायक है। इसकी कथा का श्रवण और पाठ करने से सहस्त्र गायों के दान के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
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