आज है वरुथिनी एकादशी, जिसे पापमोचनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू व्रत है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इसे रखने से व्यक्ति को अपार पुण्य फल प्राप्त होते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को रखने से अनजाने में किए गए पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। आइए, इस लेख में हम वरुथिनी एकादशी के महत्व, तिथि, लाभ, पूजा विधि और इससे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में विस्तार से जानें।
वरुथिनी एकादशी: तिथि और मुहूर्त
वरुथिनी एकादशी 03 मई को दोपहर 11 बजकर 24 मिनट पर शुरू होगी और 04 मई को दोपहर 3 बजकर 35 मिनट पर समाप्त होगी
वरुथिनी एकादशी के लाभ
वरुथिनी एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों ही प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। आइए, इन लाभों को विस्तार से देखें:
- भगवान विष्णु की कृपा: वरुथिनी एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। भगवान विष्णु सौम्यता और कल्याण के देवता हैं। उनकी कृपा से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
- पापों का नाश: जैसा कि पहले बताया गया है, वरुथिनी एकादशी को पापमोचनी एकादशी भी कहा जाता है। इस व्रत को रखने से व्यक्ति के अनजाने में किए गए पापों का नाश होता है और आत्मा शुद्ध होती है।
- मोक्ष की प्राप्ति: शास्त्रों में कहा गया है कि वरुथिनी एकादशी का व्रत रखने का फल दस हजार वर्षों तक तप करने के बराबर होता है। नियमित रूप से इस व्रत को रखने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
- मन की शांति और एकाग्रता: वरुथिनी एकादशी के व्रत में उपवास और भगवान विष्णु का ध्यान करना शामिल होता है। इससे व्यक्ति के मन को शांति मिलती है और एकाग्रता बढ़ती है। एकाग्र मन से ही व्यक्ति अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है और जीवन में सफलता हासिल कर सकता है।
- सुख, समृद्धि और आरोग्य: वरुथिनी एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है, जिससे व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और आरोग्य का वास होता है।
वरुथिनी एकादशी का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व होता है। प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में, दोनों में ही एकादशी तिथि पड़ती है। इनमें से कृष्ण पक्ष की एकादशी को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। वरुथिनी एकादशी वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
वरुथिनी एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा
वरुथिनी एकादशी से जुड़ी एक प्रचलित कथा है, जो हमें इस व्रत के महत्व को समझने में सहायता करती है। कथा के अनुसार, प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर महाराजा मांधाता नामक एक धर्मात्मा और दानी राजा राज्य करते थे। वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे और सदैव उनकी आराधना में लीन रहते थे।
एक दिन, जब राजा मांधाता जंगल में तपस्या कर रहे थे, तब एक जंगली भालू उन पर आक्रमण कर देता है। भालू राजा को बुरी तरह से घायल कर देता है और उन्हें घसीटकर जंगल में ले जाता है। घायल अवस्था में भी राजा मांधाता भगवान विष्णु का ध्यान करते रहते हैं और उनसे सहायता की गुहार लगाते हैं। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु अपने चक्र से उस भालू का वध कर देते हैं।
हालांकि, भालू के हमले से राजा मांधाता का एक पैर पूरी तरह से नष्ट हो चुका था। इस घटना से अत्यंत दुखी होकर राजा मांधाता भगवान विष्णु से अपने पैर वापस पाने की प्रार्थना करते हैं। भगवान विष्णु राजा मांधाता को सलाह देते हैं कि वे वरुथिनी एकादशी का व्रत रखें और मथुरा में स्थित भगवान विष्णु के वराह अवतार की पूजा करें। राजा मांधाता विष्णु जी की आज्ञा का पालन करते हैं और पूरे विधि-विधान से वरुथिनी एकादशी का व्रत रखते हैं।
वरुथिनी एकादशी के व्रत के प्रभाव से राजा मांधाता को शीघ्र ही स्वस्थ्य लाभ होता है और उनका नष्ट हुआ पैर पुनः स्वस्थ हो जाता है। इस प्रकार, वरुथिनी एकादशी के व्रत की महिमा से राजा मांधाता न केवल अपने पैर वापस पा लेते हैं, बल्कि भगवान विष्णु की कृपा से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
यह कथा हमें बताती है कि वरुथिनी एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को न केवल भौतिक लाभ प्राप्त होते हैं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त होता है।
वरुथिनी एकादशी की पूजा विधि
वरुथि निर्जला या फलाहार दोनों तरह से रखा जा सकता है। आइए, विधि-विधान से वरुथिनी एकादशी का व्रत रखने की प्रक्रिया को समझें:
- दशमी तिथि की रात्रि: वरुथिनी एकादशी से एक दिन पहले यानी दशमी तिथि की रात्रि में सात्विक भोजन करें। सात्विक भोजन में शाकाहारी भोजन शामिल होता है, जिसमें लहसुन, प्याज और मांसाहार का सेवन वर्जित होता है।
- एकादशी तिथि का प्रारंभ: एकादशी तिथि के प्रारंभ में, अर्थात् सूर्योदय से पहले उठें और स्नान कर लें। स्नान करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- संकल्प: इसके बाद, भगवान विष्णु का ध्यान करें और वरुथिनी एकादशी का व्रत रखने का संकल्प लें। संकल्प लेते समय व्रत का कारण, विधि और व्रत को पूर्ण करने का संकल्प लें।
- पूजा: घर के मंदिर की साफ-सफाई करें और भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्नान कराएं। इसके बाद, भगवान विष्णु को वस्त्र, चंदन, पुष्प, धूप और दीप अर्पित करें। भगवान विष्णु को तुलसी दल अवश्य चढ़ाएं। आप भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की भी पूजा कर सकते हैं।
- व्रत का पालन: निर्जला व्रत रखने वाले व्यक्तियों को पूरे दिन जल ग्रहण करने से भी बचना चाहिए। फलाहारी व्रत रखने वाले व्यक्ति दूध, फल, फ्रूट जूस आदि का सेवन कर सकते हैं।
- भजन-कीर्तन: पूजा के बाद भगवान विष्णु का नाम जपें और भजन-कीर्तन करें। आप “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप कर सकते हैं।
- पीपल पूजा: यदि आपके घर के पास पीपल का पेड़ है, तो उसकी भी पूजा करें। पीपल के वृक्ष को भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है। पीपल के पेड़ की जड़ में कच्चा दूध चढ़ाएं और घी का दीपक जलाएं। यदि घर के पास पीपल का पेड़ नहीं है, तो आप तुलसी के पौधे की पूजा कर सकते हैं।
- रात्रि जागरण: रात्रि में भगवान विष्णु की आराधना करें और जागरण करें। आप इस समय भगवान विष्णु की कथा का पाठ भी कर सकते हैं।
- दान: व्रत का पारण करने के बाद किसी गरीब या ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथाशक्ति दान दें। दान करने से व्रत का पुण्य फल और भी अधिक बढ़ जाता है।
वरुथिनी एकादशी के दौरान ध्यान देने योग्य बातें
- व्रत के दौरान मन में किसी के प्रति द्वेष या ईर्ष्या का भाव न रखें। क्रोध, हिंसा और झूठ बोलने से भी बचें।
- सत्यनिष्ठा और सदाचार का पालन करें।
- पूरे दिन भगवान विष्णु का ध्यान करते रहें।
- अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार ही व्रत रखें। यदि आप अस्वस्थ महसूस करते हैं, तो व्रत को तोड़ सकते हैं।
वरुथिनी एकादशी: उपसंहार
- वरुथिनी एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित एक महत्वपूर्ण हिंदू व्रत है। इस व्रत को रखने से व्यक्ति को अपार पुण्य फल प्राप्त होते हैं। यह व्रत न केवल पापों का नाश करता है, बल्कि मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त करता है। वरुथिनी एकादशी का व्रत रखने से शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों ही प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। यदि आप अपनी आत्मा को शुद्ध करना चाहते हैं और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, तो आपको निश्चित रूप से वरुथिनी एकादशी का व्रत रखना चाहिए। इस लेख में दी गई जानकारी के माध्यम से आप विधि-विधान से वरुथिनी एकादशी का व्रत रख सकते हैं और इसके पुण्य फल प्राप्त कर सकते हैं।