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Matsya Dwadashi 2024 Tithi,Puja Vidhi,Katha:वेदो की रक्षा के लिए श्री हरि विष्णु ने लिया था मत्स्य अवतार, जाने पूजा की शुभ तिथि और तारीख

भगवान विष्णु को समर्पित मत्स्य द्वादशी का पर्व इस बार 12 दिसंबर 2024 को मनाया जाएगा। मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से पहला अवतार है। इस अवतार में भगवान विष्णु जी ने मछली का रूप धारण कर पृथ्वी की रक्षा की थी। यही वजह है कि हिंदू धर्म में मत्स्य द्वादशी का विशेष महत्व है। मान्यताओं के अनुसार, मत्स्य रूप में अवतरित होकर भगवान श्री हरि विष्णु ने वेदों की रक्षा की थी। मत्स्य द्वादशी पर जो भी भक्त भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करता है, उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उसके जीवन के सभी कार्य सफल होते हैं। मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष की द्वादशी को भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में दैत्य हयग्रीव का संहार कर वेदों की रक्षा की थी।

मत्स्य अवतार

आइए जानते हैं दिसंबर 2024 में किस दिन मत्स्य द्वादशी का व्रत रखा जाएगा। साथ ही, आपको भगवान की पूजा के शुभ मुहूर्त और विधि के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।

मत्स्य द्वादशी तिथि 2024 (Matsya Dwadashi 2024 Date and Time)

वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार मार्गशीर्ष माह में आने वाली शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि का आरंभ 12 दिसंबर 2024 को प्रात:काल 1 बजकर 09 मिनट से होगा और इसका समापन अगले दिन 12 दिसंबर 2024 को सुबह 10 बजकर 26 मिनट पर होगा। उदयातिथि के अनुसार, वर्ष 2024 में 12 दिसंबर को मत्स्य द्वादशी का व्रत रखा जाएगा।

12 दिसंबर 2024 के शुभ मुहूर्त:

  • सूर्योदय: सुबह 07:03 मिनट पर
  • ब्रह्म मुहूर्त: प्रात:काल 05:27 से लेकर सुबह 06:15 मिनट तक
  • अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:59 से लेकर दोपहर 12:41 मिनट तक

मत्स्य द्वादशी के दिन पूजा करने का तरीका:

  • सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि कर साफ वस्त्र धारण करें।
  • उसके बाद पूजा स्थल में चार भरे हुए कलश में पुष्प डालकर स्थापित करें।
  • इसके बाद चारों कलशों को तिल की खली से ढक कर इनके सामने भगवान विष्णु की पीली धातु की प्रतिमा स्थापित करें।
  • यह चार कलश समुद्र का प्रतीक हैं। इसके बाद भगवान विष्णु के समक्ष घी का दीपक जलाएं। फिर केसर और गेंदे के फूल, तुलसी के पत्ते चढ़ाएं। भोग स्वरूप मिठाई चढ़ाकर इस मंत्र का जाप करें- ॐ मत्स्य रूपाय नमः

मत्स्य द्वादशी महत्व (Matsya Dwadashi Mahtava)

मान्यता है कि मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था, इसलिए इस तिथि को मत्स्य द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, जो भी व्यक्ति मत्स्य द्वादशी का व्रत करता है, उसे स्वास्थ्य, समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है।

मत्स्य द्वादशी के दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु के मत्स्य रूप की पूजा करने से साधक और उसके परिवार को सुख-शांति की प्राप्ति हो सकती है।

मत्स्य अवतार की कहानी (Matsya Awtar ki Kahani)

मत्स्य अवतार श्री हरि ने सृष्टि के अंत के समय लिया था। जब सृष्टि के विनाश का समय निकट था, तब भगवान ने सृष्टि के उद्धार के लिए मत्स्य रूप में अवतार धारण किया। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सत्यव्रत नामक एक धर्मपरायण और प्रतापी राजा हुआ करते थे। एक दिन वे कृतमाला नदी में स्नान कर रहे थे। स्नान के बाद उन्होंने भगवान सूर्य को अर्पित करने के लिए अंजुली में जल लिया। उसी जल के साथ उनकी अंजुली में एक छोटी मछली भी आ गई।

राजा सत्यव्रत ने मछली को नदी में वापस छोड़ दिया, लेकिन तभी मछली ने बोलना शुरू किया। मछली ने कहा, “हे राजन, इस नदी में बड़े-बड़े जीव रहते हैं, जो छोटे जीवों को मारकर खा जाते हैं। कृपया आप मेरी रक्षा करें।” मछली की यह बात सुनकर राजा सत्यव्रत को उस पर दया आ गई। उन्होंने मछली को अपने कमंडल में रखा और उसे अपने महल में ले आए।

अगली सुबह जब राजा जागे, तो उन्होंने जो देखा, उससे वे आश्चर्यचकित रह गए।

राजा सत्यव्रत ने देखा कि जिस कमंडल में उन्होंने मछली को रखा था, वह अब उसके लिए छोटा पड़ने लगा क्योंकि मछली तेजी से बड़ी हो रही थी। मछली ने राजा से कहा, “हे राजन, मैं अब यहां नहीं रह सकती। कृपया मेरे लिए किसी और स्थान की व्यवस्था करें।” तब राजा ने मछली को कमंडल से निकालकर एक पानी से भरे मटके में डाल दिया। लेकिन रात भर में मछली का आकार इतना बढ़ गया कि वह मटका भी उसके लिए छोटा हो गया।

राजा ने मछली को एक सरोवर में डलवाया, लेकिन कुछ समय बाद उसका आकार इतना विशाल हो गया कि सरोवर भी छोटा पड़ गया। अंत में, राजा ने मछली को समुद्र में छोड़ने का निर्णय लिया। परंतु मछली का आकार इतना बड़ा हो गया कि समुद्र भी उसके लिए अपर्याप्त हो गया।

तब राजा सत्यव्रत ने विनम्रता से पूछा, “हे दिव्य मछली, आप कौन हैं, जिसके आगे यह विशाल सागर भी छोटा पड़ गया है?” तब भगवान श्री हरि ने प्रकट होकर कहा कि वे दैत्य हयग्रीव के वध और सृष्टि की रक्षा के लिए इस मत्स्य रूप में अवतरित हुए हैं।

भगवान श्री हरि ने राजा सत्यव्रत से कहा कि दैत्य हयग्रीव ने वेदों की चोरी कर ली है, जिससे संसार में अज्ञान और अधर्म का विस्तार हो गया है। भगवान विष्णु ने राजा को बताया कि सात दिन बाद धरती पर प्रलय आएगी, जिसमें संपूर्ण भूमि जलमग्न हो जाएगी और चारों ओर केवल पानी ही पानी होगा।

उन्होंने राजा से कहा, “प्रलय के समय तुम्हारे पास एक नाव आएगी। उस नाव में अनाज, औषधियां और अन्य आवश्यक वस्तुओं के साथ सप्त ऋषियों को भी लेकर सवार हो जाना। उसी समय मैं तुम्हें पुनः दर्शन दूंगा और मार्गदर्शन करूंगा।”

इसके बाद राजा सत्यव्रत ने भगवान के आदेश का पालन किया। सातवें दिन, जब धरती पर प्रलय आया और पूरा संसार जलमग्न होने लगा, तब राजा को एक नाव दिखाई दी। भगवान के निर्देशानुसार, राजा ने सप्त ऋषियों को नाव पर बैठाया और साथ में अनाज, औषधि तथा अन्य आवश्यक वस्तुएं भी रख लीं। जल के प्रबल वेग से नाव आगे बढ़ने लगी और चारों ओर केवल पानी ही पानी था।

इसी दौरान भगवान श्री हरि ने मत्स्य रूप में प्रकट होकर सत्यव्रत और सप्त ऋषियों को दर्शन दिए। प्रलय शांत होने के बाद, भगवान ने दैत्य हयग्रीव का वध किया और वेदों को पुनः प्राप्त कर ब्रह्मा जी को सौंप दिया। इस प्रकार, भगवान विष्णु ने अपने मत्स्य अवतार के माध्यम से वेदों की रक्षा की और जीवों का कल्याण किया।

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