Margashirsha Amavasya 2025| मार्गशीर्ष अमावस्या 2025 कब| धन और समृद्धि के लिए करें दीपक के ये उपाय

Margashirsha Amavasya 2025 Date: सनातन धर्म की परंपराओं में मार्गशीर्ष मास को अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा और पवित्रता का प्रतीक माना गया है। यह महीना केवल मौसम परिवर्तन का संकेत नहीं देता, बल्कि मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करने वाला कालखंड माना जाता है। इस महीने में आने वाली अमावस्या विशेष रूप से शुभ होती है, जिसे मार्गशीर्ष अमावस्या कहा जाता है। वर्ष 2025 में यह तिथि 20 नवंबर, गुरुवार के दिन पड़ रही है। इस विशेष अवसर पर पितरों का तर्पण, भगवान विष्णु की पूजा और दीपक से जुड़े कई धार्मिक उपाय अत्यंत फलदायी माने जाते हैं। इस लेख में मार्गशीर्ष अमावस्या का अर्थ, धार्मिक महत्व और दीपक जलाने से जुड़े उपयों का विस्तृत वर्णन दिया गया है।

November Amavasya 2025 Date

मार्गशीर्ष अमावस्या का आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व

मार्गशीर्ष मास स्वयं भगवान श्रीकृष्ण द्वारा महिमा सम्पन्न बताया गया है। श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय में भगवान कृष्ण कहते हैं— “मासानां मार्गशीर्षोऽहम्”, जिसका अर्थ है कि सभी महीनों में वे मार्गशीर्ष हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह महीना दिव्य ऊर्जा से परिपूर्ण है। इस माह की अमावस्या का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इस दिन पितरों को स्मरण करने का विशिष्ट विधान है।

अमावस्या को सामान्यतः पितृ-तर्पण और पितृ कृतज्ञता का दिन माना जाता है, परन्तु जब यह तिथि मार्गशीर्ष मास में आती है, तब इसके फल अनेक गुना बढ़ जाते हैं। इस दिन किया गया श्राद्ध और तर्पण पितरों को तृप्त करने के साथ परिवार में सुख, शांति और समृद्धि लाता है। इसके अलावा यह दिन भगवान विष्णु की आराधना के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है। मार्गशीर्ष मास विष्णु उपासना के लिए शुभ माना जाता है और अमावस्या पर उनका पूजन जीवन के सभी दुखों और बाधाओं को दूर करता है।

पितरों की कृपा प्राप्त करने में मार्गशीर्ष अमावस्या की भूमिका

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार पितरों की संतुष्टि से ही परिवार में समृद्धि और संतुलन बना रहता है। यदि किसी व्यक्ति के जीवन में बार-बार बाधाएँ, मानसिक अशांति, धन की रुकावट, या अनावश्यक विवाद होते रहते हैं तो इसका कारण पितृ दोष भी हो सकता है। मार्गशीर्ष अमावस्या वह उत्तम काल है जब पितरों के लिए दीपदान, तर्पण और जल अर्पण विशेष फल देने वाला माना जाता है।

यह भी माना जाता है कि इस दिन पितरों का प्रभाव पृथ्वी पर अत्यधिक होता है। अतः किसी भी प्रकार का दान, सेवा, दीपदान या तर्पण करने से पितरों का आशीर्वाद सहज रूप में प्राप्त होता है। इससे वंश की रुकावटें दूर होती हैं और परिवार में नई ऊर्जा तथा समृद्धि का प्रवाह शुरू होता है।

भगवान विष्णु और मार्गशीर्ष मास का संबंध

विष्णु पुराण सहित कई ग्रंथों में विष्णु उपासना का गहन महत्व बताया गया है। मार्गशीर्ष मास को भगवान विष्णु का प्रिय महीना कहा गया है। इस समय में की गई पूजा, व्रत और दीपदान व्रती को अनेक गुणा अधिक फल देता है। भगवान विष्णु जीवन के संरक्षक माने जाते हैं और उनका आशीर्वाद व्यक्ति के जीवन में स्थिरता, धन-प्राप्ति, स्वास्थ्य और सौभाग्य को बढ़ाता है।

मार्गशीर्ष अमावस्या पर विष्णु भगवान के समक्ष दीपक जलाना, तुलसी दल अर्पित करना और मंत्र जप करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। तुलसी देवी स्वयं लक्ष्मी का स्वरूप हैं, इसलिए इस दिन विष्णु-तुलसी की संयुक्त पूजा अत्यंत शुभ मानी जाती है।

मार्गशीर्ष अमावस्या और दीपक का पौराणिक महत्व

दीपक जलाने का कार्य केवल प्रकाश का साधन नहीं बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार माना गया है। दीपक का प्रकाश तमस और अज्ञान को दूर करने का प्रतीक है। अमावस्या की रात जब चांद नहीं होता, तब दीपक की लौ सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती है और नकारात्मक शक्तियों को दूर करने में सक्षम होती है।

दीपक में प्रयुक्त तेल, दिशा, समय और स्थान का विशेष महत्व होता है। हर दीपक का उद्देश्य अलग होता है—कभी पितरों की शांति, कभी धन-प्राप्ति, कभी रोगों से मुक्ति, तो कभी मनोकामना पूर्ति।

पितरों की शांति के लिए पीपल के नीचे दीपक का महत्व

मार्गशीर्ष अमावस्या की संध्या बेला पितरों को दीप अर्पित करने के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है। परंपरा के अनुसार पीपल के वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना पितृ शांति का विशेष उपाय माना गया है। पीपल को सभी देवताओं और पितरों का वासस्थान कहा गया है। इस वृक्ष की छाया में दिया गया दीपक पितरों तक सीधे पहुंचता है, ऐसा विश्वास है।

इस उपाय से पितृ दोष कम होता है और परिवार में रुके हुए कार्य गति पकड़ने लगते हैं। इसके साथ ही घर-परिवार में शांति, सौहार्द, स्वास्थ्य और सुख-संपन्नता बढ़ती है। ऐसा माना जाता है कि पीपल के नीचे जलाया गया दीपक न केवल पितरों को तृप्त करता है बल्कि जीवन से अंधकार, भय और अवरोधों को भी समाप्त करता है।

धन और स्थायी समृद्धि के लिए मुख्य द्वार पर दीपक अर्पित करना

मार्गशीर्ष अमावस्या आर्थिक जीवन को संतुलित करने का भी एक प्रभावी अवसर प्रदान करती है। इस दिन घर के मुख्य द्वार पर दोनों ओर घी के दीपक जलाने की परंपरा बहुत पुरानी है। घर का मुख्य द्वार ऊर्जा के प्रवेश का केंद्र होता है। यदि यहां प्रकाश जगमगाता है, तो मान्यता है कि देवी लक्ष्मी का आगमन सहज हो जाता है।

दीपक जलाते समय मन में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का ध्यान करना ऊर्जा को और भी सशक्त बनाता है। इससे न केवल आर्थिक तंगी दूर होती है बल्कि आय के नए स्रोत भी बनते हैं। यह उपाय विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जिनका धन बार-बार रुक जाता है या अच्छे अवसर हाथ से निकल जाते हैं।

रोग तथा दोषों से मुक्ति के लिए पूजा स्थल पर दीपक

यदि व्यक्ति निरंतर बीमारियों से घिरा रहता है, मानसिक तनाव रहित नहीं रह पाता, या बार-बार दुर्भाग्य का सामना करता है, तो इसे ग्रह-दोष या स्वास्थ्य-दोष माना जाता है। मार्गशीर्ष अमावस्या पर पूजा स्थल में भगवान विष्णु के सामने तुलसी की मंजरी रखकर दीपक जलाना इन सभी समस्याओं से मुक्ति दिलाने वाला उपाय माना गया है।

तुलसी और विष्णु का संयोग अत्यंत शुभ है। इस दिन जब दीपक तुलसी की सुगंध के साथ प्रज्वलित होता है, तब उससे निकलने वाली ऊर्जा पूरे घर में सकारात्मकता फैलाती है। यह मानसिक शांति बढ़ाती है और रोगों के कारण बने नकारात्मक प्रभावों को दूर करती है।

नकारात्मक ऊर्जा और शनि दोष को दूर करने हेतु तिल के तेल का दीपक

अमावस्या की रात नकारात्मक शक्तियों और ग्रह-दोषों का प्रभाव अधिक होता है। विशेषकर शनि दोष का समाधान इस दिन आसानी से किया जा सकता है। सूर्यास्त के बाद किसी शांत स्थान पर शनि देव का स्मरण करते हुए तिल के तेल का दीपक अर्पित करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं। यह उपाय शनि से संबंधित बाधाओं को कम करता है और जीवन में स्थिरता लाता है।

मान्यता है कि तिल के तेल का दीपक नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है और घर-परिवार को बुरी शक्तियों से बचाता है। यह उपासना व्यक्ति की मानसिक मजबूती बढ़ाती है और उसे भय, चिंता और असुरक्षा से मुक्त करती है।

मनोकामना पूर्ति के लिए पवित्र नदी में दीप प्रवाहित करना

यदि किसी व्यक्ति की कोई विशेष मनोकामना लंबे समय से अधूरी है या जीवन में अटका हुआ महसूस होता है, तो मार्गशीर्ष अमावस्या उसे पूर्ण करने का अवसर देती है। इस दिन पवित्र नदी के किनारे आटे का दीपक बनाकर उसमें घी या तेल डालकर जलाना और उसे प्रवाहित करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

दीपक जब जलते हुए जल में प्रवाहित होता है, तो उसे ब्रह्मांड में छोड़ी गई एक सकारात्मक ऊर्जा माना जाता है। यह ऊर्जा व्यक्ति के संकल्प को मजबूत करती है और उसकी इच्छाओं को पूरा करने में सहायक बनती है। यह उपाय जीवन में सौभाग्य, समृद्धि और शुभ घटनाओं का आह्वान करता है।

मार्गशीर्ष अमावस्या: आध्यात्मिक साधना का अद्वितीय अवसर

यह दिन केवल तिथि नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरण का पवित्र क्षण भी है। अमावस्या का अंधकार जब मार्गशीर्ष की ऊर्जा से मिलता है, तब साधना, जप, ध्यान और दान का फल कई गुना बढ़ जाता है। यह समय पितरों की कृपा पाने, भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने और जीवन से नकारात्मकता हटाने का सर्वोत्तम अवसर प्रदान करता है।

मार्गशीर्ष अमावस्या 2025 अपने साथ दिव्यता, शांति और आध्यात्मिक उन्नति का अपूर्व अवसर लेकर आ रही है। इस तिथि पर दीपक से जुड़े उपाय न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ऊर्जा विज्ञान के अनुसार भी प्रभावी माने जाते हैं। चाहे पितृ कृतज्ञता हो, आर्थिक समृद्धि की इच्छा, स्वास्थ्य और दोषों से मुक्ति, या मनोकामना पूर्ति—हर उद्देश्य के लिए इस दिन दीपदान अत्यंत शुभ है। इस पावन अवसर पर श्रद्धा और समर्पण के साथ किए गए कार्य व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाते हैं और उसे नए प्रकाश की ओर अग्रसर करते हैं।

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