Makar Sankranti 2026 Date: मकर संक्रांति हिंदू धर्म में मनाए जाने वाले सबसे पावन और आनंदमय पर्वों में से एक है। इसे नए वर्ष का पहला बड़ा त्योहार कहा जाता है, जो धार्मिक, सामाजिक और कृषि—तीनों दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस पर्व की खासियत यह है कि इसे पूरे भारत में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। कहीं यह मकर संक्रांति, खिचड़ी पर्व और उत्तरायण कहलाती है, तो कहीं लोहड़ी, पोंगल, माघ बिहू या भोगाली बिहू के रूप में लोकआनंद का उत्सव होती है। इस दिन सूर्य देव अपनी दक्षिणायण यात्रा को छोड़कर उत्तरायण की ओर बढ़ते हैं, जिससे पृथ्वी पर लंबे दिन और शुभ ऊर्जाओं का आरंभ माना जाता है।
2026 में मकर संक्रांति विशेष संयोग में मनाई जाएगी। आइए इस पर्व की तिथि, शुभ मुहूर्त, स्नान-दान का महत्व, सूर्य पूजा से लेकर देशभर की परंपराओं तक सब कुछ विस्तार से जानें।
मकर संक्रांति 2026: तिथि और शुभ मुहूर्त
- तिथि: बुधवार, 14 जनवरी 2026
- पुण्यकाल: दोपहर 02:49 बजे से 05:45 बजे तक
- महापुण्यकाल: दोपहर 02:49 बजे से 03:42 बजे तक
मकर संक्रांति के समय सूर्य देव धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। यही संक्रांति का क्षण अत्यंत पवित्र माना जाता है। इसी काल में स्नान, दान और सूर्य पूजा करने से अनेक गुना अधिक फल प्राप्त होता है। महापुण्यकाल को संक्रांति का सर्वाधिक शुभ समय माना जाता है, जिसमें किए गए धार्मिक कर्म विशेष फलदायी माने जाते हैं।
मकर संक्रांति का महत्व
मकर संक्रांति वह दुर्लभ पर्व है जो सौर गणना पर आधारित है। यह सूर्य के संक्रमण का उत्सव है, जब सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण की ओर यात्रा आरंभ करते हैं। पुराणों में उत्तरायण के छह महीनों को देवताओं का दिन कहा गया है। इस कारण इस दिन आध्यात्मिक कर्मों, जप-तप, पूजा-पाठ और दान को अनंत फलदायी बताया गया है।
ज्योतिष के अनुसार मकर राशि शनि देव की मानी जाती है। सूर्य और शनि का संबंध पिता-पुत्र का होते हुए भी विरोध का रहा है, फिर भी इसी दिन सूर्य शनि के घर में प्रवेश करते हैं। यह घटना कर्म सिद्धांत और परिवार में सद्भाव का एक सुंदर संदेश देती है कि विपरीत संबंध भी कर्तव्य और धर्म द्वारा पवित्र हो सकते हैं।
इस पर्व का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। भीष्म पितामह ने अपने प्राण छोड़ने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने का ही इंतजार किया था। यह भी मान्यता है कि इसी दिन गंगा जी कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए भगीरथ के नेतृत्व में धरती पर अवतरित होकर सागर में मिली थीं। इसीलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष पुण्य माना जाता है।
स्नान-दान का महत्व और पुण्य फल
मकर संक्रांति पर स्नान और दान की परंपरा सबसे मुख्य है। कहा गया है—
“दानं सूर्यस्य संविदं, तु स्नानं स्निग्ध फलप्रदं।”
अर्थात इस दिन किया गया दान और स्नान सौ गुना अधिक फल देता है।
लोग प्रातःकाल पवित्र नदियों—गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी और नर्मदा—में स्नान करते हैं और सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं। सूर्य की किरणों का इस समय शरीर और मन पर विशेष सकारात्मक प्रभाव माना जाता है। स्नान और अर्घ्य देने से न केवल मनुष्यों के पाप नष्ट होते हैं, बल्कि ग्रहदोष भी शांत होते हैं।
दान के रूप में आमतौर पर यह वस्तुएं दी जाती हैं—
- तिल
- गुड़
- खिचड़ी
- अन्न
- कंबल
- गर्म कपड़े
- फल, सब्जियां
- जरूरतमंदों के लिए भोजन
मान्यता है कि तिल और गुड़ का दान करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
तिल-गुड़ और खिचड़ी का विशेष महत्व
मकर संक्रांति का नाम आते ही तिल-गुड़ की मिठाइयों और खिचड़ी का स्मरण तुरंत हो जाता है। तिल और गुड़ का उपयोग केवल स्वाद के लिए नहीं, बल्कि इसके पीछे कई आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण हैं।
- तिल को पवित्रता, शक्ति और शनि दोष निवारण का प्रतीक माना गया है।
- गुड़ मिठास और सौहार्द का प्रतीक है।
इस दिन तिल-गुड़ खाने और बांटने के पीछे संदेश है—
“तिल-गुड़ घ्या आणि गोड गोड बोला”
अर्थात मीठा खाओ और मीठा बोलो, यानी रिश्तों में मधुरता बढ़ाओ।
देश के कई हिस्सों—विशेषकर बिहार और उत्तर प्रदेश—में इस दिन खिचड़ी बनाकर सूर्य देव को अर्पित की जाती है, इसलिए इसे खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है।
पतंगबाजी: आसमान में रंगों की उड़ान
मकर संक्रांति का एक सबसे आकर्षक पहलू है पतंगबाजी। गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र और उत्तर भारत में यह पर्व पतंग महोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।
आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भर उठता है और “वो काटा!” की आवाज़ पूरे वातावरण को उत्साह से भर देती है। पतंग उड़ाना सूर्य की किरणों के संपर्क में रहने का एक मनोरंजक तरीका भी है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है। कई जगह अंतरराष्ट्रीय पतंग उत्सव भी आयोजित किए जाते हैं।
क्यों मनाई जाती है मकर संक्रांति?
यह त्योहार फसल कटाई का स्वागत करता है और नए कृषि चक्र की शुरुआत का प्रतीक है। किसान अपने खेतों में समृद्धि और भरपूर फसल की कामना करते हैं। सूर्य के उत्तरायण होने से मौसम में बदलाव आता है, जिससे सर्दी कम होने लगती है और दिन बड़े हो जाते हैं।लोकमान्यताओं, पुराणों, सामाजिक परंपराओं और कृषि से जुड़े विज्ञान का ऐसा सुंदर संगम किसी भी अन्य पर्व में कम ही देखने को मिलता है।
मकर संक्रांति केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि संस्कृति, कृषि, विज्ञान और मानवीय मूल्यों का सुंदर संगम है। 14 जनवरी 2026 को जब सूर्य उत्तरायण होंगे, तब पूरे भारत में नए उत्साह, नई ऊर्जा और नई शुरुआत का वातावरण बनेगा। स्नान-दान, सूर्य पूजा, तिल-गुड़, पोंगल, बिहू, लोहड़ी, पतंगबाजी और पारिवारिक मेलजोल—ये सभी इस पवित्र पर्व को एक अनोखी पहचान देते हैं।
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