मकर संक्रांति का पर्व भारतीय सनातन धर्म में एक विशेष स्थान रखता है। हर महीने एक संक्रांति तिथि होती है, जब सूर्य अपनी राशि बदलता है, लेकिन मकर संक्रांति को सभी में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अहम है। इस लेख में हम जानेंगे 2025 में मकर संक्रांति की तिथि, इसके शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और पर्व का महत्व।
मकर संक्रांति का परिचय और महत्व (Makar Sankranti Mahatva)
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश
मकर संक्रांति का पर्व उस समय मनाया जाता है जब सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं। यह परिवर्तन सालाना होता है और इसे एक नए वर्ष के शुभारंभ का प्रतीक भी माना जाता है। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और इसे विशेष रूप से शुभ कार्यों के लिए अनुकूल माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है, अर्थात उसके उत्तर दिशा की ओर गमन की शुरुआत होती है। इस समय को धर्म-कर्म, साधना और दान के लिए उत्तम माना गया है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व
मकर संक्रांति के अवसर पर देश भर में धार्मिक आस्था और उमंग के साथ कई आयोजन होते हैं। गंगा स्नान, पवित्र नदियों में डुबकी, और तिल-गुड़ का दान करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। इसे खिचड़ी पर्व के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर भारत में लोग इस दिन खिचड़ी का सेवन करते हैं और इसे भगवान को अर्पित भी करते हैं।
2025 में मकर संक्रांति की तिथि और शुभ मुहूर्त (Makar Sankranti 2025 Date and Tithi)
मकर संक्रांति 2025 की तिथि
2025 में मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा। इस दिन का विशेष महत्व होता है, खासकर स्नान, ध्यान और दान के लिए। इस दिन कई धार्मिक क्रियाएं और अनुष्ठान करने का रिवाज है।
मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त 2025
इस दिन शुभ कार्यों के लिए पुण्य काल सुबह 9:03 से शाम 5:46 तक रहेगा। इस समय में गंगा स्नान या किसी पवित्र नदी में स्नान करना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। इसके अलावा महा पुण्य काल सुबह 9:03 से लेकर 10:48 तक रहेगा। इस अवधि में की गई पूजा-अर्चना और दान का विशेष महत्व होता है और इसे विशेष फलदायक माना गया है।
मकर संक्रांति की पूजा विधि (Makar Sankranti Puja Vidhi)
मकर संक्रांति पर पूजा विधि सरल और फलदायी होती है। यहां कुछ आसान कदम बताए गए हैं जिनका पालन कर आप इस पर्व की संपूर्ण विधि संपन्न कर सकते हैं:
- स्नान और ध्यान
सुबह सूर्योदय से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। यह माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन स्नान करने से शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है। - सूर्य देव को जल अर्पण
स्नान के बाद सूर्य को जल अर्पित करें। इसमें काले तिल डालें और सूर्य देवता की पूजा करें। मान्यता है कि इस दिन तिल का प्रयोग करने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। - सूर्य देव के मंत्रों का जाप
“ॐ सूर्याय नमः” का जाप करें और सूर्य देव की चालीसा पढ़ें। यह मंत्र जाप और चालीसा पाठ करने से मानसिक शांति और स्वास्थ्य में सुधार होता है। - तिल और गुड़ का दान
तिल और गुड़ का दान करना बहुत शुभ माना गया है। यह दोनों चीजें मकर संक्रांति के विशेष प्रसाद माने जाते हैं और इनके दान से ग्रहदोष भी कम होते हैं। - गर्म वस्त्रों का दान
इस दिन ठंड से बचने के लिए जरूरतमंदों को गर्म वस्त्रों का दान करना भी अत्यंत पुण्य का कार्य माना जाता है।
भारत में मकर संक्रांति के विभिन्न रूप ((Makar Sankranti 2025)
मकर संक्रांति को भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। देशभर में इस पर्व का अलग नाम, अलग रूप और अनोखी परंपराएं हैं, लेकिन हर जगह इसे बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
- उत्तर भारत: यहां इसे खिचड़ी पर्व कहा जाता है। इस दिन लोग तिल-गुड़ के साथ खिचड़ी का सेवन करते हैं। पतंगबाजी भी एक मुख्य आकर्षण है, विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार में।
- दक्षिण भारत: दक्षिण भारत में इसे पोंगल के नाम से जाना जाता है। यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है और इसमें सूर्य देव, पृथ्वी और पशुओं की पूजा की जाती है। लोग पोंगल (विशेष पकवान) बनाकर भगवान को अर्पित करते हैं।
- पश्चिम भारत: महाराष्ट्र और गुजरात में तिलगुड़ बांटने और पतंग उड़ाने का रिवाज है। यहां लोग एक-दूसरे से “तिलगुड़ घ्या, गोड गोड बोला” कहते हैं, जिसका अर्थ है “तिल-गुड़ लें और मीठा बोलें।”
- पूर्वी भारत: असम में इसे माघ बिहू या भोगाली बिहू के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व फसल कटाई के बाद मनाया जाता है, जिसमें लोग सामूहिक भोज और उत्सव का आयोजन करते हैं।
मकर संक्रांति पर नए कार्यों की शुरुआत का महत्व
मकर संक्रांति का दिन नए कार्यों की शुरुआत के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। उत्तरायण के इस समय में किए गए कार्यों में विशेष फल प्राप्त होता है। लोग इस दिन नए घर में प्रवेश, व्यापार का आरंभ, या अन्य शुभ कार्य करते हैं। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से नई ऊर्जा का संचार होता है जो सभी कार्यों को सफल बनाता है।
मकर संक्रांति का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
मकर संक्रांति का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव भी गहरा है। यह पर्व भाईचारे और एकता का प्रतीक है। पतंग उड़ाना, मिठाइयों का आदान-प्रदान करना, और परिवार के साथ समय बिताना भारतीय समाज में सौहार्द्र और प्रेम को बढ़ाता है। तिल-गुड़ का सेवन और इसे बाँटना, प्रेम और मधुरता को दर्शाता है और लोग एक-दूसरे को मीठा बोलने की प्रेरणा देते हैं।
मकर संक्रांति न केवल धार्मिक पर्व है बल्कि समाज में आनंद, एकता और प्रेम का संदेश भी देता है। इस पर्व पर की जाने वाली पूजा, दान और भक्ति से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है। भारत की सांस्कृतिक विविधता इस पर्व में दिखाई देती है, जहाँ लोग अपनी-अपनी परंपराओं से इसे मनाते हैं। मकर संक्रांति पर सूर्य उपासना, स्नान और दान जैसे कार्यों का विशेष महत्व है जो हमें आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाते हैं।