हिंदू धर्म में महानंदा नवमी का व्रत अत्यंत शुभ माना जाता है। यह व्रत माघ, भाद्रपद और मार्गशीर्ष के महीनों में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को रखा जाता है। पंचांग के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महानंदा नवमी का व्रत किया जाता है। गुप्त नवरात्रि की नवमी तिथि के कारण इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन स्नान और दान करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं। महानंदा नवमी को ‘ताल नवमी’ भी कहा जाता है।
महानंदा नवमी महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महानंदा नवमी के दिन मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा और व्रत करने से व्यक्ति के जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और धन संबंधी समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है, साथ ही व्यक्ति को वर्तमान और पिछले जन्मों के सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति आती है, जो व्यक्ति के जीवन को सफल और संपूर्ण बनाती है।
महानंदा नवमी 2025 तिथि
साल 2025 में महानंदा नवमी 6 फरवरी को मनाई जाएगी। इस तिथि की शुरुआत रात 12:36 बजे होगी और 10:54 बजे समाप्त होगी।
महानंदा नवमी कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, बहुत समय पहले एक साहुकार की पुत्री नियमित रूप से पीपल के पेड़ की पूजा करती थी, जहां माता लक्ष्मी का वास था। माता लक्ष्मी की साहुकार की बेटी से मित्रता हो गई और एक दिन उन्होंने उसे अपने घर आमंत्रित किया और उसकी अच्छी खातिरदारी की। जब साहुकार की बेटी लौटने लगी, तो लक्ष्मी जी ने पूछा कि वह उन्हें अपने घर कब बुला रही है। बेटी ने अनमने भाव से उन्हें आमंत्रित किया।
उदास बेटी को देखकर साहुकार ने पूछा, तो उसने बताया कि उनके घर की तुलना में माता लक्ष्मी के घर कुछ भी नहीं है और वे कैसे उनका सत्कार करेंगे। साहुकार ने समझाया कि जो भी उनके पास है, उसी से वे लक्ष्मी जी की सेवा करेंगे।
इसके बाद, बेटी ने चौकी लगाई, उस पर चौमुख दीपक जलाया और लक्ष्मी माता का स्मरण करने लगी। तभी आकाश में उड़ती एक चील ने बेटी के गले में नौलखा हार गिरा दिया। हार बेचकर उसने सोने की थाली, शाल दुशाला और अनेक व्यंजनों की तैयारी कर ली। मां लक्ष्मी और भगवान गणेश साहुकार के घर आए और सेवा से प्रसन्न होकर उन्होंने साहुकार और उसकी बेटी को समृद्धि का आशीर्वाद दिया। इसलिए मान्यता है कि जो भी श्रद्धा से नंदा नवमी का व्रत रखकर माता लक्ष्मी की पूजा करता है, उसे गरीबी से मुक्ति मिलती है।
माँ लक्ष्मी के साथ इस दिन माँ दुर्गा की भी पूजा का विधान
किंवदंतियों के अनुसार, देवी दुर्गा शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक हैं। माना जाता है कि देवी दुर्गा की पूजा करने से सभी बुरी आत्माओं पर विजय प्राप्त होती है। इसी कारण उन्हें ‘दुर्गतिनाशिनी’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है वह जो सभी कष्टों को दूर करती हैं। जो लोग देवी दुर्गा की भक्ति पूर्वक पूजा करते हैं, वे अपने सभी दुखों और शोकों से मुक्ति पाते हैं। महानंदा नवमी तिथि पर मां दुर्गा के नौ स्वरूपों—चंद्रघंटा, शैलपुत्री, कालरात्रि, स्कंदमाता, ब्रह्मचारिणी, सिद्धिदात्री, कुष्मांडा, कात्यायनी और महागौरी की पूजा करने का विधान है।
महानंदा नवमी पूजा विधि
महानंदा नवमी के दिन देवी लक्ष्मी की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की सफाई करें और कूड़ा-कचरा सूप में भरकर बाहर निकाल दें। इसे अलक्ष्मी का विसर्जन माना जाता है। इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें।
पूजन स्थल पर देवी महालक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें और उनका आवाहन करें। मां को अक्षत, पुष्प, धूप, गंध आदि अर्पित करें और बीच में अखंड दीपक जलाएं। विधि-विधान से पूजा करते समय महालक्ष्मी के मंत्र “ॐ ह्रीं महालक्ष्म्यै नम:” का जाप करें। मां को बताशे और मखाने का भोग लगाएं और श्री यंत्र की पूजा अवश्य करें।
पूरे दिन व्रत रखें और रात में जागरण करें। रात्रि में पूजा के बाद व्रत का पारण करें। यह विधि देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने और घर में सुख-समृद्धि का वास लाने के लिए अति शुभ मानी जाती है।
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