Mahabharat : महाभारत भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और दर्शन का ऐसा महाग्रंथ है जिसने न केवल भारत बल्कि पूरी मानव सभ्यता के विचारों, नैतिक शिक्षाओं और जीवन मूल्यों को गहराई से प्रभावित किया है। इसे “पंचम वेद” भी कहा जाता है क्योंकि इसमें जीवन के सभी आयामों—धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—का गहन विश्लेषण मिलता है। महाभारत केवल एक युद्ध का वृत्तांत नहीं है, बल्कि यह मनुष्य के स्वभाव, कर्तव्यों, संबंधों, कर्म, पुनर्जन्म, न्याय और धर्म की सूक्ष्मतम परिभाषाओं को समझाने वाला अद्वितीय ग्रंथ है। इस ग्रंथ की लोकप्रियता और प्रभाव इतने गहरे हैं कि हजारों वर्षों बाद भी इसके पात्र, घटनाएँ और शिक्षाएँ मानवता के लिए मार्गदर्शक बनी हुई हैं।
महाभारत का परिचय
महाभारत विश्व का सबसे लंबा महाकाव्य माना जाता है। यह केवल राजवंशों के संघर्ष की कहानी नहीं है, बल्कि जीवन के महान सिद्धांतों का दार्शनिक भंडार है। इस ग्रंथ का मुख्य केंद्र बिंदु है—कुरु वंश के दो परिवारों, कौरवों और पांडवों के बीच सत्ता संघर्ष, जो अंत में विनाशकारी युद्ध में बदल जाता है।
इस महाकाव्य की कथा का प्रारंभ हस्तिनापुर राज्य से होता है, जहाँ राजा शांतनु, भीष्म, पांडु, धृतराष्ट्र, कौरव और पांडव अपनी-अपनी परिस्थितियों, कर्मों और निर्णयों के कारण एक दूसरे के विरोधी बन जाते हैं। महाभारत इस बात का प्रतीक है कि जब अहंकार, अन्याय और लालच धर्म से ऊपर हो जाएँ, तब विनाश अवश्यंभावी हो जाता है।
महाभारत का एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा भगवद्गीता है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म, कर्तव्य, आत्मा, ब्रह्म और जीवन-मृत्यु के रहस्यों पर उपदेश दिया। यह उपदेश इतना गहन है कि यह आज पूरी दुनिया के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शन का आधार है।
महाभारत किसने लिखी थी?
महाभारत की रचना महर्षि वेदव्यास द्वारा की गई थी। वेदव्यास को कृष्णद्वैपायन के नाम से भी जाना जाता है। वेदव्यास महर्षि पाराशर और देवी सत्यवती के पुत्र थे तथा कुरु वंश के ही सदस्य थे। उन्हें वेदों के संपादन और अनेक पुराणों की रचना का श्रेय भी दिया जाता है।
महाभारत की रचना के बारे में एक अद्भुत कथा भी मिलती है। कहा जाता है कि वेदव्यास ने जब इस महाग्रंथ को लिखने का निश्चय किया, तो उन्होंने भगवान गणेश से इसे लिखने का निवेदन किया। गणेश जी ने शर्त रखी कि वे लेखन को बिना रुके लिखेंगे, इसलिए वेदव्यास को निरंतर बोलते रहना होगा। वेदव्यास ने भी एक शर्त रखी कि गणेश जी किसी भी श्लोक को लिखने से पहले उसका अर्थ समझ लें।
इस प्रकार, वेदव्यास ने जटिल और गूढ़ श्लोकों का सहारा लिया जिससे उन्हें समय मिलता रहा और यह महाकाव्य निरंतर आगे बढ़ता गया। यह कथा इस ग्रंथ की दिव्यता और गहराई को और अधिक सुदृढ़ बनाती है।
महाभारत की रचना किस भाषा में हुई थी?
महाभारत की मूल रचना संस्कृत भाषा में की गई थी। संस्कृत उस समय की प्रमुख और विद्वानों द्वारा उपयोग की जाने वाली भाषा थी। महाभारत की भाषा को “संस्कृत का सरल रूप” कहा जाता है, जिसे “लोकभाषा-आधारित संस्कृत” भी कहा जाता है।
इसका कारण यह था कि वेदव्यास चाहते थे कि यह महाग्रंथ सभी वर्गों और समुदायों तक पहुँचे। इसी वजह से इसकी भाषा पूरी तरह वैदिक संस्कृत की तरह कठिन नहीं है, बल्कि अपेक्षाकृत सरल और सहज है।
समय के साथ महाभारत का अनुवाद अनेक भाषाओं में हुआ—हिन्दी, तमिल, तेलुगु, बंगाली, गुजराती, अंग्रेजी और कई अन्य विश्व भाषाओं में। इसकी लोकप्रियता और व्यापकता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह दुनिया के सबसे अधिक अनूदित ग्रंथों में से एक है।
महाभारत में कितने श्लोक हैं?
महाभारत में कुल एक लाख (1,00,000) से अधिक श्लोक बताए जाते हैं। यह संख्या इसे दुनिया का सबसे लंबा महाकाव्य बनाती है।
विभिन्न संस्करणों के अनुसार श्लोकों की संख्या में कुछ अंतर देखने को मिलता है, परंतु सामान्यतः इसे “एक लाख श्लोकों का महाग्रंथ” कहा जाता है।
महाभारत में 18 पर्व (अध्याय) हैं, और इसके मध्यभाग में उपस्थित भगवद्गीता में कुल 700 श्लोक हैं। इस सम्पूर्ण ग्रंथ को सुनने-बताने की परंपरा हजारों वर्षों से चलती आ रही है।
महाभारत युद्ध का सबसे बड़ा योद्धा किसे माना गया?
महाभारत में अनेक महान योद्धा थे—अर्जुन, भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, भीम, अभिमन्यु, घटोत्कच, शकुनी, दुर्योधन आदि। परंतु यदि सबसे महान और प्रभावशाली योद्धा की बात की जाए, तो अधिकांश विद्वान कर्ण को महाभारत का सबसे बड़ा योद्धा मानते हैं।
कर्ण को महानतम योद्धा क्यों माना जाता है?
- अद्वितीय धनुर्धर – कर्ण को सूर्यपुत्र कहा गया है और उन्हें भगवान परशुराम जैसा गुरु मिला। परशुराम स्वयं अत्यंत शक्तिशाली योद्धा थे।
- तीन लोकों में अद्वितीय दानवीर – दुश्मन को भी माँगने पर कवच-कुंडल दान कर देना कोई सामान्य गुण नहीं था।
- निरंतर संघर्ष – कर्ण जन्म से संघर्ष करता रहा—कुंती का पुत्र होकर भी समाज द्वारा अस्वीकार किया गया।
- अर्जुन का प्रमुख प्रतिद्वंद्वी – वह अकेला योद्धा था जो अर्जुन को युद्ध में चुनौती दे सकता था।
- अंतिम दिन अर्जुन को पराजित करने के बिल्कुल निकट था – यदि उसका रथ चक्र कीचड़ में न फँसता और यदि वह श्राप से प्रभावित न होता, तो युद्ध का परिणाम बदल सकता था।
हालाँकि कुछ लोग भीष्म को सबसे बड़ा योद्धा मानते हैं क्योंकि वे अजेय थे, और कुछ अभिमन्यु को उनकी वीरगति और प्रतिभा के कारण श्रेष्ठ योद्धा मानते हैं। किंतु महाभारत के कई प्रसंगों के अनुसार कर्ण को सर्वश्रेष्ठ योद्धा की उपाधि दी गई है।
श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध क्यों होने दिया?
यह प्रश्न महाभारत का सबसे दार्शनिक और महत्वपूर्ण प्रश्न है। भगवान श्रीकृष्ण सर्वशक्तिमान थे। वे चाहते तो युद्ध को रोक सकते थे, परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसके पीछे गहरी आध्यात्मिक और नैतिक वजहें थीं।
1. धर्म की स्थापना के लिए
कौरवों ने अधर्म, अहंकार और अन्याय की सीमा लांघ दी थी। दुर्योधन के अहंकार, शकुनी की कुटिलता और धृतराष्ट्र की अंधभक्ति ने पूरी समाज व्यवस्था को प्रभावित किया। पांच गांव मांगने पर भी दुर्योधन ने एक तिनके के बराबर भूमि देने से इंकार कर दिया। ऐसे में अधर्म का अंत करना आवश्यक था।
श्रीकृष्ण का मुख्य उद्देश्य था—
“धर्म की स्थापना और अधर्म का विनाश।”
2. न्याय दिलाने के लिए
पांडवों को बहिष्कृत किया गया, छल से जुआ खेलकर राज्य छीना गया, द्रौपदी का अपमान हुआ—इन सब अन्यायों का अंत आवश्यक था। बिना न्याय के समाज स्थिर नहीं रह सकता।
3. मनुष्य को कर्तव्य का संदेश देने के लिए
अर्जुन युद्ध में अपने ही रिश्तेदारों को देखकर विचलित हो गया था। उसे समझाने के लिए श्रीकृष्ण ने कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग का गहन संदेश दिया। वे यह दिखाना चाहते थे कि—
कर्तव्य सबसे ऊपर है, व्यक्तिगत संबंध या भावनाएँ नहीं।
4. कर्मफल के सिद्धांत को स्थापित करने के लिए
महाभारत बताता है कि किस प्रकार व्यक्ति के कर्म उसके भविष्य का निर्धारण करते हैं। श्रीकृष्ण ने किसी भी पक्ष का पक्षपात न करके केवल धर्म की रक्षा की। वे स्वयं हथियार नहीं उठाते, परंतु अर्जुन का मार्गदर्शन करते हैं क्योंकि धर्म का साथ देना जरूरी था।
5. नई सामाजिक व्यवस्था के निर्माण के लिए
महाभारत युद्ध के बाद एक नई व्यवस्था, नया राज्य और नए मूल्य स्थापित हुए। युद्ध मानवता के लिए एक सीख बन गया कि—
अहंकार और अन्याय का परिणाम विनाश होता है।
महाभारत की शिक्षाएँ – क्यों यह आज भी प्रासंगिक है?
महाभारत केवल अतीत का इतिहास नहीं है। यह आज भी जीवन की हर परिस्थिति में मार्गदर्शन देता है।
● यह सिखाता है कि धर्म का पालन कठिन हो सकता है, लेकिन आवश्यक है।
● यह बताता है कि कर्म ही मनुष्य का सच्चा धर्म है।
● यह संदेश देता है कि अहंकार का अंत निश्चित है।
● यह सीख देता है कि परिवार और समाज में संतुलन और न्याय अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
● यह दिखाता है कि मित्रता, प्रेम, बलिदान और सत्य हमेशा कालजयी मूल्य हैं।
महाभारत केवल एक महाकाव्य नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव जीवन का दर्पण है। इसकी रचना महर्षि वेदव्यास ने संस्कृत भाषा में की, जिसमें एक लाख से अधिक श्लोक हैं। यह ग्रंथ धर्म-अधर्म, सत्य-असत्य, न्याय-अन्याय और मनुष्य के कर्मों की गहन विवेचना करता है।
महाभारत का सबसे बड़ा योद्धा कर्ण को माना गया, जिसकी प्रतिभा, साहस और दानशीलता इसे असाधारण बना देती है। वहीं भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध को इसलिए होने दिया क्योंकि अधर्म का अंत और धर्म की स्थापना आवश्यक थी।
महाभारत की कथा आज भी हमें यह सिखाती है कि—
धर्म की रक्षा करो, कर्म पर विश्वास रखो और सत्य के मार्ग पर चलो।
इसी में जीवन की सार्थकता है।
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