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Mahabharat: जानिए महाभारत के योद्धा अश्वत्थामा कौन थे, क्या थी उनकी कहानी, कौन थी उनकी पत्नी, पुत्र….

महाभारत के एक महान योद्धा को आज भी जीवित माना जाता है, और उनसे जुड़े अनेक रहस्य प्रचलित हैं। उस योद्धा का नाम अश्वत्थामा था। महाभारत के युद्ध में उनकी मृत्यु नहीं हुई थी, बल्कि वे जंगलों में लुप्त हो गए थे। कहा जाता है कि भगवान शंकर से उन्हें अमरता का वरदान प्राप्त था, जिसके कारण लोगों का विश्वास है कि अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं। ऐसा माना जाता है कि वे हिमालय की ऊंचाइयों में कहीं निवास कर रहे हैं या फिर देश के घने जंगलों में छिपे हुए हैं।

अश्वत्थामा कौन थे?

महाभारत युद्ध से पहले गुरु द्रोणाचार्य कई स्थानों का भ्रमण करते हुए हिमालय के ऋषिकेश क्षेत्र में पहुंचे। वहां उन्होंने तमसा नदी के किनारे स्थित एक दिव्य गुफा में तपेश्वर नामक स्वयंभू शिवलिंग के समीप अपनी पत्नी माता कृपि के साथ भगवान शिव की तपस्या की। उनकी घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। कुछ समय बाद माता कृपि ने एक तेजस्वी और सुंदर बालक को जन्म दिया। अश्वत्थामा के मस्तक में जन्म से ही एक अद्भुत और अमूल्य मणि स्थित थी, जो उसे दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता और नाग आदि से सुरक्षित रखती थी।

अश्वत्थामा की कहानी

अश्वत्थामा को महाभारत के एक महान और पराक्रमी ऋषिकुमार के रूप में जाना जाता है, जिन्हें कई दिव्यास्त्रों का ज्ञान था। उनके मस्तक पर जन्म से एक अद्भुत मणि विद्यमान थी, जो उन्हें देवों, दानवों, दैत्य, शस्त्रों, व्याधियों और नागों से भी सुरक्षित रखती थी। अश्वत्थामा ने महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से भाग लिया था। युद्ध के अंतिम दिन रात को, उसने छल से पांडवों के शिविर में घुसकर द्रौपदी के पांच सोते हुए पुत्रों की हत्या कर दी और पांडवों की बाकी सेना को भी नष्ट कर दिया। इसके बाद, वह गंगा तट पर स्थित महर्षि वेदव्यास के आश्रम में चले गए।

जब पांडवों को इस हत्याकांड का पता चला, तो उन्होंने अश्वत्थामा को दंड देने के लिए उसे ढूंढना शुरू किया। अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करके पांडवों के वंश को नष्ट करने का प्रयास किया। इसके बाद पांडवों ने उसे पकड़ लिया और उसकी मणि को निकाल लिया, जिसके कारण अश्वत्थामा के मस्तक पर घाव हो गया। ब्रह्महत्याकांड करने पर श्रीकृष्ण ने उसे शापित कर दिया, जिससे उसका घाव कभी नहीं भर सका। तब से अश्वत्थामा भटकते हुए कहीं दिखाई नहीं देते, और वह किसी को भी नहीं मिलते।

अश्वत्थामा के नाम का अर्थ क्या है, उनका यह नाम कैसे पड़ा?

अश्वत्थामा नाम को बहुत ही असामान्य माना जाता है और इसे प्राचीन काल से विशेष महत्व प्राप्त है। उनके नामकरण के पीछे एक अनोखी कहानी है। कहा जाता है कि जब गुरु द्रोण के घर बालक का जन्म हुआ, तब उसने अश्व यानी घोड़े की सी आवाज निकाली। इस अद्भुत घटना के बाद आकाशवाणी हुई कि इस बालक का नाम “अश्वत्थामा” रखा जाएगा।

अश्वत्थामा किसके अवतार थे?

हिंदू धर्म के अनुसार, अश्वत्थामा को भगवान शिव का उन्नीसवां अवतार माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि गुरु द्रोणाचार्य ने भगवान शिव की कठोर तपस्या के फलस्वरूप अश्वत्थामा के रूप में पुत्र प्राप्त किया।

अश्वत्थामा कहाँ है?

मध्य प्रदेश के महू से लगभग 12 किलोमीटर दूर विंध्याचल की पहाड़ियों में स्थित खोदरा महादेव मंदिर अश्वत्थामा की तपस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। मान्यता है कि अश्वत्थामा आज भी यहां आते हैं, और इसे उनकी उपस्थिति का स्थान माना जाता है। मध्य प्रदेश के अलावा, ओडिशा और उत्तराखंड में भी अश्वत्थामा को देखे जाने की कहानियां प्रचलित हैं।

महाभारत युद्ध के समापन के बाद कौरव पक्ष से केवल तीन योद्धा ही जीवित बचे थे—कृप, कृतवर्मा और अश्वत्थामा। अश्वत्थामा चुपचाप जंगलों की ओर चले गए। पांडवों ने उन्हें ढूंढने का प्रयास किया, लेकिन वे कभी सफल नहीं हो सके।

अश्वत्थामा की पत्नी और पुत्र का नाम?

अश्वत्थामा का विवाह नहीं हुआ था। उनकी कोई संतान नहीं थी।

अश्वत्थामा की ऊंचाई कितनी थी?

महाभारत के महान योद्धा अश्वत्थामा की ऊंचाई लगभग 9 फीट बताई जाती है। द्वापर युग में, आमतौर पर व्यक्तियों की औसत ऊंचाई लगभग 8 फीट मानी जाती थी।

अश्वत्थामा की मणि का रहस्य

अश्वत्थामा के मस्तक में जन्म से ही एक अद्भुत और अमूल्य मणि स्थित थी, जो उसे दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता और नाग आदि से सुरक्षित रखती थी।

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