Kundalini Shakti: कुंडलिनी शक्ति मानव शरीर में निहित एक सूक्ष्म और दिव्य ऊर्जा है, जो हमारे मेरुदंड के मूलाधार चक्र में सुप्त अवस्था में स्थित रहती है। योग और तंत्र शास्त्रों के अनुसार, जब यह जाग्रत होती है तो साधक की चेतना ऊर्ध्वगामी होकर आध्यात्मिक विकास की ओर बढ़ती है। इसका जागरण जीवन में गहरा परिवर्तन लाता है, जिससे साधक उच्च मानसिक, शारीरिक और आत्मिक क्षमताओं को प्राप्त करता है। यह ऊर्जा आत्मबोध और ब्रह्मज्ञान की ओर ले जाने वाली रहस्यमयी चेतना है।

कुंडलिनी शक्ति क्या है?
कुंडलिनी शक्ति एक दिव्य चेतना है जो प्रत्येक व्यक्ति के अंदर सुप्त अवस्था में स्थित होती है। यह शक्ति मानवीय चेतना की वह अवस्था है जो हमें सामान्य जीवन से ऊपर उठाकर आत्मबोध और ब्रह्मबोध की ओर ले जाती है। इसे “सर्पिणी शक्ति” भी कहा जाता है क्योंकि यह हमारे मेरुदंड के मूलाधार चक्र में सर्प के समान कुण्डली मारकर स्थित रहती है। योगशास्त्र के अनुसार, यह शक्ति जब जाग्रत होती है तो व्यक्ति अपने भीतर छुपी हुई दिव्यता को अनुभव करता है और अध्यात्म की गहराइयों में प्रवेश करता है।
कुंडलिनी चक्र क्या है?
कुंडलिनी चक्र का तात्पर्य शरीर में स्थित सात ऊर्जा केंद्रों (चक्रों) से है। ये चक्र हमारे शरीर और मन की ऊर्जा को नियंत्रित करते हैं। ये सात चक्र हैं — मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्रार। कुंडलिनी शक्ति जब जाग्रत होकर ऊपर की ओर बढ़ती है, तो वह इन चक्रों को एक-एक करके पार करती है। प्रत्येक चक्र के जागरण से व्यक्ति में विशेष आध्यात्मिक अनुभव उत्पन्न होते हैं और उसका चेतन स्तर ऊँचा होता जाता है। सहस्रार चक्र तक पहुँचने पर आत्मा ब्रह्म से एकाकार हो जाती है।
कुंडलिनी शक्ति कैसे जाग्रत करें?
कुंडलिनी शक्ति का जागरण कोई साधारण प्रक्रिया नहीं है। यह एक अत्यंत गूढ़ और गंभीर साधना है जिसे योग्य गुरु के मार्गदर्शन में किया जाना चाहिए। कुंडलिनी जागरण के लिए मुख्यतः ध्यान, प्राणायाम, मंत्रजाप, भक्ति, संयमित आहार-विहार, ब्रह्मचर्य और योगासनों की सहायता ली जाती है।
विशेष प्रकार के प्राणायाम जैसे नाड़ी शुद्धि, भ्रामरी और कपालभाति, कुंडलिनी जागरण में सहायक होते हैं। ध्यान की प्रक्रिया में साधक अपना ध्यान मूलाधार चक्र पर केंद्रित करता है और कल्पना करता है कि ऊर्जा वहाँ से उठकर ऊपर की ओर जा रही है। यह साधना एकाग्रता, संयम और समर्पण की माँग करती है।
कुंडलिनी जागरण से प्राप्त सिद्धियां
जब कुंडलिनी शक्ति जाग्रत होती है और ऊपर की ओर बढ़ती है, तो साधक में अनेक सिद्धियाँ उत्पन्न होती हैं। इन्हें “अष्ट सिद्धियाँ” और “नव निधियाँ” भी कहा जाता है।
इनमें से कुछ प्रमुख सिद्धियाँ हैं:
- मन की इच्छाओं पर नियंत्रण
- दूरदर्शिता और भविष्यवाणी की क्षमता
- शरीर को दीर्घायु और रोगमुक्त बनाना
- दूसरों के विचार पढ़ने की शक्ति (टेलीपैथी)
- त्रिकालदर्शिता (तीनों कालों को देखने की क्षमता)
- गूढ़ रहस्यों को समझने की क्षमता
हालाँकि योगशास्त्र यह भी कहता है कि इन सिद्धियों में अटक जाना कुंडलिनी साधना की प्रगति में बाधक बन सकता है, इसलिए इनसे ऊपर उठकर ब्रह्मबोध की ओर बढ़ना चाहिए।
कुंडलिनी जागरण के फायदे
कुंडलिनी जागरण जीवन में गहरे परिवर्तन लाता है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि व्यक्ति आत्मा के वास्तविक स्वरूप को जानने लगता है। इसके अलावा अन्य लाभ हैं:
- मानसिक शांति और स्थिरता
- क्रोध, लोभ, मोह जैसे विकारों से मुक्ति
- रचनात्मकता और आध्यात्मिक बुद्धि में वृद्धि
- भय, तनाव और चिंता से मुक्ति
- चेतना में विस्तार और ब्रह्मांडीय ऊर्जा से संबंध
- प्रेम, करुणा और सेवा भाव की उत्पत्ति
कुल मिलाकर, यह साधना साधक को आत्मा से जोड़कर उसे ब्रह्मांड की एकता का अनुभव कराती है।
कुंडलिनी जागरण के नुकसान
यदि कुंडलिनी शक्ति को बिना उचित मार्गदर्शन के जाग्रत किया जाए, तो इसके दुष्परिणाम भी हो सकते हैं। योगशास्त्र में बताया गया है कि अधूरी या असमय जागृत कुंडलिनी साधक को मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से असंतुलित कर सकती है।
संभावित नुकसान:
- मानसिक भ्रम या पागलपन
- नींद में विकृति और भय
- अज्ञात ऊर्जा का दबाव या कंपन
- अहंकार में वृद्धि
- सामाजिक और पारिवारिक जीवन में दूरी
इसलिए इसे हमेशा किसी अनुभवी गुरु के निर्देशन में ही किया जाना चाहिए।
कुंडलिनी जागरण के लक्षण
कुंडलिनी के जागरण के समय शरीर और मन में विशेष परिवर्तन दिखाई देते हैं। ये लक्षण साधक को यह संकेत देते हैं कि उसका आत्मिक स्तर बदल रहा है। कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं:
- शरीर में ऊष्मा या कंपन का अनुभव
- रीढ़ की हड्डी में ऊर्जा का प्रवाह महसूस होना
- सपनों में दिव्य दर्शन या संकेत मिलना
- एकांत प्रियता और ध्यान में रुचि बढ़ना
- सात्विकता और संयम की प्रवृत्ति
- स्वतः भावनाओं और विचारों में शुद्धता का आना
- कभी-कभी आँखों से आँसू बहना या शरीर में रोमहर्ष
कुंडलिनी शक्ति जागृत करने का मंत्र
मंत्रों के माध्यम से कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत करना अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। कुछ प्रमुख मंत्र निम्नलिखित हैं:
- ॐ ह्रीं क्लीं कुंडलिन्यै नमः
- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
- ॐ नमः शिवाय
- सोऽहम (श्वास के साथ जाप हेतु)
इन मंत्रों का जाप शांत वातावरण में, शुद्ध मन और शुद्ध उच्चारण के साथ किया जाना चाहिए। ध्यान रहे कि मंत्र शक्ति का प्रयोग अत्यंत संयम और श्रद्धा से करना चाहिए।
कुंडलिनी शक्ति की देवी कौन है?
कुंडलिनी शक्ति को आदि शक्ति या महाकुंडलिनी देवी कहा जाता है। यह शक्ति माँ पार्वती या माँ दुर्गा के रूप में पूजनीय है। तंत्र और योगशास्त्र में इसे “त्रिपुरा सुंदरी” और “योगमाया” के नाम से भी जाना जाता है।
शिव और शक्ति के संयोग से सृष्टि की उत्पत्ति हुई है। शिव निर्विकार हैं और शक्ति क्रियाशील ऊर्जा हैं। कुंडलिनी देवी उसी ऊर्जा का स्वरूप है जो साधक को शिव तत्व से जोड़ती है।
कुंडलिनी शक्ति का उपयोग
कुंडलिनी शक्ति का उपयोग केवल आध्यात्मिक उन्नति तक सीमित नहीं है। यह शक्ति जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सक्षम होती है। यदि इस शक्ति का उचित उपयोग किया जाए तो:
- साधक जीवन के उद्देश्य को स्पष्ट रूप से समझ पाता है
- स्वास्थ्य, मनोबल और विवेक में अपार वृद्धि होती है
- दूसरों को ऊर्जा देने और हीलिंग का सामर्थ्य प्राप्त होता है
- समाज के कल्याण हेतु प्रेरणा और सामर्थ्य का विकास होता है
- वैज्ञानिक, रचनात्मक और साहित्यिक क्षेत्रों में चमत्कारी प्रदर्शन संभव होता है
कुंडलिनी शक्ति का उपयोग आत्मिक कल्याण के साथ-साथ जगत के कल्याण के लिए भी किया जाना चाहिए।
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