Last Updated: 24 July 2025
भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर धर्म की रक्षा और पाप के विनाश हेतु प्रत्येक युग में अवतार लिया। इन्हीं अवतारों में से एक हैं भगवान श्री कृष्ण, जिनका जन्म मथुरा में राजकुमारी देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में हुआ था। श्रीकृष्ण का बाल्यकाल गोकुल में बीता, जहाँ उनका पालन-पोषण माता यशोदा और नंद बाबा ने किया। जन्म के तुरंत बाद, कंस के भय से वासुदेव ने उन्हें गोकुल पहुंचा दिया था। श्रीकृष्ण का जीवन चमत्कारों से भरा रहा और उनके हर चरण में लोगों को धर्म की राह दिखाई दी। उनके जीवन की अनेक घटनाएं आज भी समाज को सही दिशा देने का कार्य करती हैं।

श्रीकृष्ण के जन्मदिवस को ‘कृष्ण जन्माष्टमी’ के रूप में हर वर्ष भक्तगण बड़े श्रद्धा और उल्लास से मनाते हैं। आइए जानें इस पावन पर्व का इतिहास और इसका आध्यात्मिक महत्व।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व (Shri Krishna Janmashtami Mahatva)
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण को भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है। उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए भक्त हर वर्ष जन्माष्टमी के दिन उपवास रखते हैं और रात को मध्यरात्रि के समय विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन भजन-कीर्तन, झांकियां और श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। मंदिरों को आकर्षक रूप से सजाया जाता है और कई जगहों पर दही-हांडी प्रतियोगिताएं भी आयोजित होती हैं।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2025 तिथि और शुभ मुहूर्त (Shri Krishna Janmashtami 2025 Date)
Krishna Janmashtami 2025 Date:हिंदू पंचांग के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था। इसी कारण हर साल इस शुभ दिन को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह पावन पर्व 16 अगस्त को पूरे देशभर में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाएगा।
कैसे मनाई जाती है श्री कृष्ण जन्माष्टमी?
इस पर्व पर श्रद्धालु अपनी आस्था के अनुसार उपवास रखते हैं और भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा करते हैं। चूंकि बाल गोपाल का जन्म रात्रि के समय हुआ था, इसलिए मध्यरात्रि को घरों में लड्डू गोपाल की मूर्ति का प्रतीकात्मक जन्म कराया जाता है। इसके बाद उन्हें स्नान कराकर सुंदर वस्त्र पहनाए जाते हैं और फूलों, धूप, दीप से आराधना की जाती है। भगवान श्री कृष्ण को उनका प्रिय भोग—मक्खन, दूध, दही—अर्पित किया जाता है, जिसे बाद में प्रसाद स्वरूप सभी भक्तों में वितरित किया जाता है।
कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि (Shri Krishna Janmashtami Puja Vidhi)
श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल के जन्म का विशेष महत्व होता है, और इसी कारण उनकी पूजा विधि भी बेहद खास मानी जाती है। इस पावन अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण की विधिवत पूजा कर उनके आशीर्वाद की प्राप्ति की जाती है। आइए जानते हैं पूजा की सम्पूर्ण प्रक्रिया:
- सबसे पहले सुबह स्नान करके साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें।
- रात्रिकालीन पूजा के लिए भगवान श्री कृष्ण के झूले को सजाएं और मंदिर को गंगाजल से पवित्र करें।
- पूजा की शुरुआत ध्यान लगाकर करें। भगवान की मूर्ति को श्रद्धा से झूले या लकड़ी की चौकी पर विराजमान करें।
- उनके चरणों में जल अर्पित करें, जिसे पाद्य कहा जाता है, और फिर अर्घ्य दें।
- आचमन की क्रिया करें, जिसमें भगवान को जल अर्पित करके स्वयं भी थोड़ा जल ग्रहण किया जाता है।
- श्री कृष्ण की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएं – जिसमें दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल शामिल होता है।
- स्नान के बाद भगवान को नये वस्त्र पहनाएं और श्रृंगार करें, जिसमें मुकुट, मोरपंख, बांसुरी, आभूषण और जनेऊ शामिल हो।
- चंदन का तिलक लगाएं और फूल व तुलसी पत्र अर्पित करें।
- धूपबत्ती और दीपक जलाएं तथा भगवान को माखन-मिश्री और तांबूल (पान, सुपारी, नारियल, हल्दी, कुमकुम) अर्पित करें।
- अंत में ‘जय कन्हैया लाल की’ जैसे भजनों के साथ आरती करें और परिक्रमा लगाएं।
- प्रभु से प्रार्थना करें कि वे आपके जीवन को सुख-शांति और समृद्धि से भर दें।
श्री कृष्ण जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा (Shri Krishna Janmashtami Katha)
कथा अनुसार, जब देवकी ने अपने आठवें पुत्र को जन्म दिया, तो समस्त मथुरा नगरी एक रहस्यमय शांति में डूब गई। उस समय वासुदेव ने बालक श्री कृष्ण को टोकरी में रखकर यमुना नदी पार करने का निर्णय लिया। रास्ते में भारी वर्षा हो रही थी, तब शेषनाग ने अपने फन फैलाकर वासुदेव और बालक की रक्षा की।
दैवीय शक्ति की मदद से वासुदेव सुरक्षित गोकुल पहुंचे और बालक को यशोदा व नंद बाबा को सौंप दिया। उसी समय यशोदा ने एक कन्या को जन्म दिया था, जिसे देवी दुर्गा का स्वरूप माना गया। वासुदेव ने उस कन्या को मथुरा वापस लाकर कंस को सौंप दिया। यह देख कंस को लगा कि भविष्यवाणी झूठी थी, और वह कुछ समय के लिए निश्चिंत हो गया।
इसी चमत्कारी रात्रि को भक्तजन हर वर्ष बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ श्री कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं।
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