कार्तिक पूर्णिमा, जिसे त्रिपुरी पूर्णिमा और देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के पवित्र और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। 2024 में कार्तिक पूर्णिमा शुक्रवार, 15 नवंबर को पड़ रही है। इस खास दिन को मनाने के पीछे कई धार्मिक कथाएं और मान्यताएं जुड़ी हुई हैं, जो इसे आध्यात्मिक जागरण और मोक्ष प्राप्ति का अवसर बनाती हैं। आइए, इस लेख में कार्तिक पूर्णिमा के तिथि, महत्व, पूजा विधि और विशेष आयोजनों के बारे में विस्तार से जानें।
कार्तिक पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त (Kartik Purnima 2024 Date & Tithi)
कार्तिक पूर्णिमा कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। वर्ष 2024 में कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है:
- ** तिथि:** शुक्रवार, 15 नवंबर 2024
- पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 04:18 AM (IST)
- पूर्णिमा तिथि समाप्त: 02:41 AM (IST), 16 नवंबर 2024
कार्तिक पूर्णिमा का धार्मिक महत्व (Kartik Purnima Significance)
कार्तिक पूर्णिमा का हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व है। इस दिन से जुड़ी कई कथाएं और मान्यताएं इस त्योहार को शुभता और पवित्रता से भर देती हैं। आइए, इन कथाओं और मान्यताओं पर एक नजर डालते हैं:
- भगवान विष्णु का जन्म (Birth of Lord Vishnu): पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु का जन्म कार्तिक पूर्णिमा के पवित्र दिन हुआ था। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में सौभाग्य का वास होता है।
- त्रिपुरासुर वध (Slaying of Tripurasura): पौराणिक कथाओं के अनुसार, दैत्यराज त्रिपुरासुर तीन लोकों में आतंक मचा रहा था। देवताओं के बार-बार पराजित होने के बाद भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर का वध किया था। इस विजय के उपलक्ष्य में देवताओं ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं।
- गंगा अवतरण (Descent of the Ganges): हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि गंगा नदी कार्तिक पूर्णिमा के पवित्र दिन पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। इस दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- देव दीपावली (Dev Deepawali): कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन देवलोक में दीपावली मनाई जाती है और पृथ्वी पर भी दीप जलाकर इस उत्सव में शामिल होने की परंपरा है। कार्तिक पूर्णिमा को दीप जलाने से वातावरण शुद्ध होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- मोक्ष प्राप्ति का मार्ग (Path to Moksha): कार्तिक पूर्णिमा के दिन किए गए स्नान, दान, पूजा-पाठ और जप से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। यह आध्यात्मिक जागरण और मोक्ष की कामना करने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है।
कार्तिक पूर्णिमा की विधि और परंपराएं (Kartik Purnima Vidhi)
कार्तिक पूर्णिमा को मनाने के लिए कई परंपराएं हैं, जिनका पालन करके आप इस पवित्र दिन का सार प्राप्त कर सकते हैं। आइए, इन विधियों और परंपराओं के बारे में विस्तार से जानते हैं:
- स्नान (Snana): कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान का विशेष महत्व है। आदर्श रूप से, सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी, जैसे गंगा, यमुना या किसी अन्य पवित्र जल स्रोत में स्नान करना चाहिए। यदि नदी या पवित्र जल स्रोत तक पहुंचना संभव नहीं है, तो घर पर ही गंगाजल मिलाकर स्नान किया जा सकता है। स्नान के समय “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करना शुभ माना जाता है।
- पूजा-अर्चना (Puja and Aarti): स्नान के बाद साफ और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा स्थल की साफ-सफाई करें और दीप जलाएं। भगवान विष्णु, शिव और माता गंगा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। इन्हें पुष्प, फल, मिठाई और तुलसी दल अर्पित करें। इसके बाद विधिवत पूजा करें और आरती उतारें। “ॐ नमः शिवाय” और “ॐ जय जगदीश्वरी मां गंगे” जैसे मंत्रों का जाप करना भी इस पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- दान-पुण्य (Daan-Punya): कार्तिक पूर्णिमा दान-पुण्य करने का भी उत्तम दिन माना जाता है। इस दिन गरीबों, असहायों और जरूरतमंदों को दान करने से पुण्य फल प्राप्त होता है। अन्न, वस्त्र, धन आदि का दान किया जा सकता है। गाय को भी भोजन कराना इस दिन शुभ माना जाता है। दान करते समय सच्चे मन से दान करना चाहिए, तभी उसका पूर्ण फल प्राप्त होता है।
- व्रत (Vrat): कार्तिक पूर्णिमा का व्रत रखना भी एक महत्वपूर्ण परंपरा है। आप चाहें तो पूरे दिन उपवास रख सकते हैं या फिर सात्विक भोजन ग्रहण कर सकते हैं। व्रत रखने से मन और शरीर शुद्ध होता है और आध्यात्मिक चेतना का विकास होता है।
- दीपदान (Deepdaan): कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन शाम के समय दीप जलाना एक महत्वपूर्ण परंपरा है। आप घर के मंदिर में, मुख्य द्वार पर, नदी के किनारे या किसी ऊंचे स्थान पर दीप जला सकते हैं। दीप जलाते समय आप “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” या “या देवी सर्वभूतेषु दीप रूपेण संस्थिता। नमस्ते स्तुते माहेश्वरी।।” मंत्र का जाप कर सकते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा के विभिन्न क्षेत्रीय आयोजन (Regional Celebrations of Kartik Purnima)
कार्तिक पूर्णिमा पूरे भारत में मनाई जाती है, लेकिन अलग-अलग क्षेत्रों में इसकी कुछ खास परंपराएं हैं। आइए, भारत के कुछ प्रमुख क्षेत्रों में कार्तिक पूर्णिमा के आयोजनों पर एक नजर डालते हैं:
- वाराणसी (Varanasi): वाराणसी में कार्तिक पूर्णिमा को खास धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन गंगा घाटों पर दीपों की जगमगाहट अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करती है। हजारों श्रद्धालु गंगा में स्नान करते हैं और दीप जलाकर इस पर्व को मनाते हैं।
- पुष्कर (Pushkar): राजस्थान के पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को पुष्कर मेले के रूप में मनाया जाता है। इस मेले में देशभर से श्रद्धालु आते हैं और पुष्कर सरोवर में स्नान करते हैं।
- राजस्थान (Rajasthan): राजस्थान के अन्य क्षेत्रों में भी कार्तिक पूर्णिमा को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। जयपुर में अचल सरोवर में दीप जलाने की परंपरा है। मेवाड़ में इस दिन को ‘हिंगोट उत्सव’ के नाम से जाना जाता है, जिसमें भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है।
- गुजरात (Gujarat): गुजरात में कार्तिक पूर्णिमा को ‘त्रिपदी पूर्णिमा’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन दंडी नामक तीर्थस्थल पर भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। साथ ही, कई जगहों पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन रंगोली प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं।
- केरल (Kerala): केरल में कार्तिक पूर्णिमा को ‘कर्तिका नक्षत्रम’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन अय्यप्पा मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही, कई घरों में शाम के समय ‘अविली निवेद्यम’ या ‘पत्तयम’ नामक विशेष भोजन तैयार किया जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा कथा (Kartik Purnima Katha)
कार्तिक पूर्णिमा से जुड़ी कई मान्यताएं और लोक कथाएं हैं, जो इस त्योहार के महत्व को और बढ़ा देती हैं। आइए, इनमें से कुछ रोचक कथाओं पर एक नजर डालते हैं:
- सम्राट हर्षवर्धन की कथा (Story of King Harshavardhana): मान्यता है कि सम्राट हर्षवर्धन कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव की आराधना करते थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपार धन-संपत्ति का आशीर्वाद दिया था।
- कार्तिकेय की उत्पत्ति (Origin of Kartikeya): कुछ कथाओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था। कार्तिकेय भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं और उन्हें युद्ध का देवता माना जाता है।
- दीपदान की महिमा (Significance of Deepdaan): कार्तिक पूर्णिमा पर दीप जलाने की परंपरा के पीछे भी एक रोचक कथा है। माना जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों के बीच युद्ध हुआ था। युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद देवताओं ने खुशी मनाने के लिए दीप जलाए थे। तभी से कार्तिक पूर्णिमा पर दीप जलाने की परंपरा चली आ रही है।
कार्तिक पूर्णिमा, अपने दिव्य प्रकाश और पवित्र स्नान की परंपरा के साथ, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह हमें अपने जीवन में आध्यात्मिक जागरण, सद्कर्म और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाता है। इस दिन भगवान विष्णु, शिव और माता गंगा की पूजा करके उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। दान-पुण्य करके दूसरों का जीवन खुशहाल बनाया जा सकता है और व्रत रखकर मन और शरीर को शुद्ध किया जा सकता है। कार्तिक पूर्णिमा को मनाने से न केवल आध्यात्मिक लाभ मिलता है, बल्कि पर्यावरण को भी शुद्ध करने का संदेश मिलता है। आइए, इस पवित्र दिन को हर्षोल्लास के साथ मनाएं और अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएं।
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