Kaal Bhairav Ashtami 2025| कालभैरव अष्टमी कब 11 नवंबर 12 | इस दिन पूजा करने से दूर होती है बीमारियाँ

Last Updated: 10 November 2025

मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान शिव के उग्र स्वरूप, भगवान कालभैरव की पूजा की जाती है। इस वर्ष कालभैरव अष्टमी 12 नवंबर 2025 (शनिवार) को मनाई जाएगी। इस दिन को “कालाष्टमी” के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने अपने रौद्र रूप में कालभैरव का अवतार लिया था, इसलिए यह दिन भय और नकारात्मकता से मुक्ति पाने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

Kaal Bhairav Ashtami 2025

कालभैरव कौन हैं?

भगवान कालभैरव को शिव के तीसरे रौद्र रूप के रूप में पूजा जाता है। ‘भैरव’ शब्द का अर्थ है भय को हरने वाला, अर्थात जो व्यक्ति के जीवन से हर प्रकार के डर और बंधनों को समाप्त कर दे।
शिवपुराण के अनुसार, जब अंधकासुर नामक राक्षस ने देवताओं और मनुष्यों को आतंकित किया, तब भगवान शिव ने अपने ही रक्त से एक भयंकर रूप धारण किया। इसी रूप से कालभैरव का जन्म हुआ। उनका स्वरूप इतना विकराल था कि स्वयं काल (मृत्यु) भी उनसे भयभीत हो उठा। तभी उन्हें “काल से भी श्रेष्ठ – कालभैरव” कहा गया।

कालभैरव अष्टमी का धार्मिक महत्व

कालभैरव अष्टमी का अत्यधिक महत्व इसलिए है क्योंकि इस दिन भगवान शिव के इस रूप की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में विद्यमान भय, मानसिक तनाव, रोग और शत्रु बाधाएं समाप्त होती हैं।
इस पर्व की सबसे विशेष बात यह है कि पूजा रात्रि काल या प्रदोष समय में की जाती है। इस समय भगवान शिव, माता पार्वती और कालभैरव की संयुक्त रूप से आराधना की जाती है।

इस दिन कालभैरव के वाहन काले कुत्ते की भी पूजा का विधान है। भक्त उसे भोजन अर्पित करते हैं, क्योंकि यह माना जाता है कि काले कुत्ते को प्रसन्न करने से स्वयं कालभैरव प्रसन्न होते हैं। पूजा में आमतौर पर जलेबी, इमरती, उड़द दाल, पान, नारियल और पुष्प अर्पित किए जाते हैं।

कालभैरव जयंती 2025 कब है – 11 या 12 नवंबर?

इस वर्ष कालभैरव जयंती की तिथि को लेकर कई लोगों में भ्रम की स्थिति बनी हुई है कि यह पर्व 11 नवंबर को मनाया जाए या 12 नवंबर को। ज्योतिषीय गणना और पंचांग के अनुसार, इस वर्ष अष्टमी तिथि का आरंभ 11 नवंबर 2025, मंगलवार को सुबह 11 बजकर 08 मिनट पर होगा और इसका समापन 12 नवंबर 2025, बुधवार को सुबह 10 बजकर 58 मिनट पर होगा।

चूंकि उदया तिथि 12 नवंबर को पड़ रही है, इसलिए कालभैरव जयंती 2025 का पर्व 12 नवंबर, बुधवार के दिन ही श्रद्धा और विधि-विधान से मनाया जाएगा।

पूजा से प्राप्त होने वाले लाभ

कालभैरव की आराधना से व्यक्ति के सभी भय और अवरोध दूर होते हैं। यह पूजा मानसिक शांति, आत्मविश्वास और धन-संपन्नता प्रदान करती है।
जिन लोगों पर राहु, केतु या शनि के अशुभ प्रभाव होते हैं, उनके लिए यह दिन विशेष फलदायी माना जाता है।
पुराणों के अनुसार, इस दिन भगवान भैरव की पूजा करने से दीर्घकालिक बीमारियाँ, मानसिक कष्ट और शत्रु बाधाएं समाप्त होती हैं। साथ ही मनोकामनाओं की पूर्ति और सौभाग्य की वृद्धि होती है।

कालभैरव अष्टमी के उपाय और दान

इस पवित्र दिन दान का विशेष महत्व है। अगहन मास में ऊनी वस्त्रों का दान करने से भगवान भैरव और शनिदेव दोनों प्रसन्न होते हैं, जिससे राहु-केतु के अशुभ प्रभाव समाप्त होते हैं।
काले कुत्तों को जलेबी या इमरती खिलाने से कालभैरव प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति को शारीरिक तथा मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
गाय को जौ और गुड़ खिलाना भी शुभ माना गया है, इससे राहु के कष्ट दूर होते हैं।
इसके अलावा, इस दिन काले वस्त्र, तले हुए खाद्य पदार्थ, कांसे के बर्तन, घी या अन्य जरूरतमंद वस्तुओं का दान करने से अनजाने में हुए पापों का क्षय होता है।

कालभैरव अष्टमी के मंत्र

इस दिन भगवान भैरव को प्रसन्न करने के लिए निम्न मंत्रों का 108 बार जाप अत्यंत शुभ माना गया है। इन मंत्रों से भय, संकट और मानसिक अशांति का नाश होता है –

ॐ कालभैरवाय नमः।
ॐ भयहरणं च भैरव।
ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्।
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं।
ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नमः।

पूजा विधि

कालभैरव अष्टमी के दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर व्रत का संकल्प लें। पूजा स्थल को शुद्ध कर दीपक जलाएं और भगवान शिव, माता पार्वती तथा कालभैरव की आराधना करें।
चौमुखा दीपक के सामने फूल, इमरती, जलेबी, उड़द दाल, पान और नारियल अर्पित करें।
इसके बाद कालभैरव चालीसा का पाठ करें और आरती करें। पूजा समाप्ति पर जरूरतमंदों को दो रंग का कंबल या ऊनी वस्त्र दान करना अत्यंत शुभ माना गया है।
पूजन के पश्चात जलेबी या इमरती का भोग काले कुत्तों को अर्पित करें

कालभैरव अष्टमी 2025 न केवल भगवान शिव के रौद्र रूप की उपासना का अवसर है, बल्कि यह दिन जीवन में उपस्थित भय, रोग, नकारात्मकता और अशुभ प्रभावों को समाप्त करने का एक दिव्य माध्यम भी है।
इस दिन की श्रद्धापूर्ण पूजा, दान और मंत्र-जाप से व्यक्ति के जीवन में साहस, शांति और समृद्धि का प्रवेश होता है। जो भी भक्त सच्चे मन से इस दिन भगवान कालभैरव की आराधना करता है, वह जीवन के हर भय से मुक्त होकर आत्मबल और सुख की प्राप्ति करता है।

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