Jaya Ekadashi 2026 Date:हिंदू धर्म में एकादशी व्रतों का विशेष स्थान है और इन्हीं पवित्र तिथियों में जया एकादशी का नाम श्रद्धा और भक्ति के साथ लिया जाता है। यह व्रत माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है, जब चंद्रमा अपनी पूर्णता की ओर अग्रसर होता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह पर्व प्रायः जनवरी या फरवरी के महीने में पड़ता है। शास्त्रों में वर्णित है कि जब जया एकादशी गुरुवार के दिन आती है, तब इसका पुण्यफल कई गुना बढ़ जाता है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है, जो सृष्टि के पालनकर्ता और करुणा के प्रतीक माने जाते हैं।
जया एकादशी 2026 की तिथि और दिन
वर्ष 2026 में जया एकादशी का व्रत 29 जनवरी, गुरुवार के दिन रखा जाएगा। इस दिन देशभर में भगवान विष्णु के भक्त श्रद्धा भाव से उपवास रखते हैं और उनकी आराधना करते हैं। विशेष रूप से विष्णु उपासकों के लिए यह तिथि अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में संचित पापों का नाश होता है और अंततः मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों, जैसे कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में, जया एकादशी को भूमि एकादशी और भीष्म एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
जया एकादशी का आध्यात्मिक महत्व
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जया एकादशी केवल उपवास का दिन नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का अवसर है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के पूर्व जन्मों के दोष भी शांत हो जाते हैं। इसी कारण कई श्रद्धालु इस दिन अपने कर्मफल और ग्रहों की स्थिति को समझने के लिए कुंडली का अध्ययन भी कराते हैं, ताकि वे अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकें। जया एकादशी का महत्व इस बात में भी निहित है कि यह मन, वचन और कर्म—तीनों को शुद्ध करने की प्रेरणा देती है।
जया एकादशी 2026: तिथि और शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष 2026 में जया एकादशी की तिथि 28 जनवरी की शाम 04:35 बजे प्रारंभ होकर 29 जनवरी की दोपहर 01:55 बजे तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार व्रत 29 जनवरी को रखा जाएगा। इस दिन सूर्योदय प्रातः लगभग 07:12 बजे होगा, जबकि सूर्यास्त सायंकाल लगभग 06:05 बजे माना गया है, हालांकि यह समय स्थान के अनुसार थोड़ा भिन्न हो सकता है। व्रत का पारण द्वादशी तिथि को 30 जनवरी की सुबह 07:10 बजे से 09:20 बजे के बीच करना शुभ माना जाता है।
जया एकादशी व्रत की परंपरा और विधि
जया एकादशी का व्रत दशमी तिथि से ही प्रारंभ हो जाता है, जब साधक मन और शरीर को संयम में रखने का संकल्प लेता है। एकादशी के दिन भक्त निर्जल या फलाहार व्रत रखते हैं और दिनभर भगवान विष्णु का स्मरण करते हैं। इस व्रत का उद्देश्य केवल भोजन त्यागना नहीं, बल्कि इंद्रियों पर नियंत्रण और मन की शुद्धता प्राप्त करना होता है। व्रती को चाहिए कि वह क्रोध, ईर्ष्या, लालच और नकारात्मक विचारों से स्वयं को दूर रखे।
जया एकादशी की रात्रि जागरण को अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। इस दौरान भक्त भगवान विष्णु के भजन, कीर्तन और मंत्रों का जाप करते हैं। कहा जाता है कि पूरी रात जागरण कर नारायण का स्मरण करने से जीवन की बाधाएँ दूर होती हैं। द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान देना इस व्रत की पूर्णता मानी जाती है, जिसके पश्चात ही व्रत का पारण किया जाता है।
व्रत में छूट और सामान्य नियम
जो लोग स्वास्थ्य कारणों से कठोर उपवास नहीं रख सकते, वे दूध और फलों का सेवन कर सकते हैं। बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएँ और गंभीर रोग से पीड़ित व्यक्तियों को शास्त्रों में विशेष छूट दी गई है। जो लोग व्रत नहीं भी रखते हैं, उन्हें इस दिन चावल और अनाज से बने भोजन से परहेज करने की सलाह दी जाती है। साथ ही शरीर पर तेल लगाने से भी बचना चाहिए, ताकि व्रत की पवित्रता बनी रहे।
जया एकादशी पर विष्णु और कृष्ण पूजा
इस पावन तिथि पर प्रातःकाल स्नान के बाद भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। पूजा स्थल पर भगवान विष्णु या भगवान कृष्ण की प्रतिमा स्थापित कर चंदन, तिल, पुष्प, दीपक और धूप अर्पित किए जाते हैं। पंचामृत से अभिषेक कर विष्णु सहस्त्रनाम और नारायण स्तोत्र का पाठ करना विशेष फलदायी माना गया है। भक्त इस दिन “हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे” महामंत्र का जाप कर अपने जीवन से दुर्भाग्य को दूर करने की कामना करते हैं।
जया एकादशी की तरह माघ मास में आने वाले अन्य पर्व भी आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। उदाहरणस्वरूप, मौनी अमावस्या 2026 में मौन व्रत और गंगा स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। ये सभी पर्व व्यक्ति को आत्मचिंतन, संयम और ईश्वर से जुड़ने का अवसर प्रदान करते हैं।
जया एकादशी 2026 का व्रत 29 जनवरी को श्रद्धा और नियमों के साथ रखने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करता है, बल्कि व्यक्ति को आत्मिक शांति, पुण्य और मोक्ष के मार्ग की ओर अग्रसर करता है। भगवान विष्णु की कृपा से जीवन की कठिनाइयाँ दूर होती हैं और भक्त के हृदय में भक्ति भाव सुदृढ़ होता है।
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