Bhagwan Shri Krishna aur 8 Ank: सनातन धर्म के विशाल ग्रंथों में भगवान श्री कृष्ण का जीवन अद्वितीय और रहस्यमय लीलाओं से भरा हुआ है। उनके जीवन के प्रत्येक पहलू में गहरा आध्यात्मिक और सांकेतिक महत्व निहित है। इनमें से एक अत्यंत रोचक और रहस्यमयी तथ्य यह है कि उनके जीवन में “8 अंक” बार-बार प्रकट होता है। चाहे वह जन्म से संबंधित घटनाएँ हों, उनकी लीलाएँ हों या उनके अवतरण के उद्देश्यों की पूर्ति, 8 अंक का उनसे गहरा संबंध है। 8 अंक केवल एक संख्या नहीं, बल्कि एक दैवीय प्रतीक है जो अनंतता, संतुलन और पूर्णता का द्योतक है।
जन्म की आठवीं संतान
श्रीमद्भागवत महापुराण में वर्णन मिलता है कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म देवकी और वसुदेव की आठवीं संतान के रूप में हुआ था। कंस को यह भविष्यवाणी मिली थी कि उसकी बहन देवकी की आठवीं संतान ही उसका वध करेगी। इसी भविष्यवाणी के भय से कंस ने देवकी और वसुदेव की सात संतानें जन्म लेते ही मार दीं। लेकिन जब आठवीं संतान के रूप में श्री कृष्ण का जन्म हुआ, तो योगमाया के प्रभाव से वे सुरक्षित गोकुल पहुँच गए।
यह केवल एक संयोग नहीं था, बल्कि दिव्य योजना का हिस्सा था। 8 अंक यहाँ पूर्णता और अवतरण के उद्देश्य की पूर्ति का प्रतीक है — जैसे 8वें चरण पर पहुंचकर यात्रा पूरी होती है, वैसे ही श्री कृष्ण के रूप में धर्म की पुनर्स्थापना की दिव्य यात्रा प्रारंभ हुई।
अष्टमी तिथि का रहस्य
भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ। अष्टमी का अंक भी 8 है, जो उनके जीवन में इस संख्या के महत्व को और स्पष्ट करता है। अष्टमी तिथि को चंद्रमा अपनी घटती अवस्था में होता है, जो विनम्रता, त्याग और आत्मनियंत्रण का प्रतीक है।
यह भी माना जाता है कि अष्टमी तिथि देवत्व और मानवता के बीच संतुलन का प्रतीक है। श्री कृष्ण ने स्वयं मानव रूप में आकर दिव्य कर्तव्य निभाया और संसार को धर्म के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी।
अष्ट योगिनी और देवी योगमाया का संरक्षण
श्री कृष्ण के जन्म के समय, योगमाया ने उनकी रक्षा में विशेष भूमिका निभाई। योगमाया का संबंध भी अष्ट योगिनियों से जोड़ा जाता है। यह अष्ट योगिनियाँ देवी शक्ति के आठ स्वरूप हैं, जो ब्रह्मांड की आठ दिशाओं में ईश्वर की रक्षा शक्ति के रूप में स्थित हैं। इस प्रकार, श्री कृष्ण का जन्म और उनकी रक्षा, दोनों 8 अंक के आध्यात्मिक महत्व से गहराई से जुड़ी हैं।
गोपी और अष्टभव भावनाएँ
श्री कृष्ण और वृंदावन की गोपियों की रासलीला भक्ति का चरम उदाहरण है। भक्तियोग के आचार्यों के अनुसार, गोपी भाव के आठ प्रमुख रूप होते हैं, जिन्हें “अष्ट भाव” कहा जाता है — ये भाव भगवान के प्रति विभिन्न प्रकार की प्रेममयी सेवा और समर्पण का प्रतीक हैं।
इन आठ भावनाओं के माध्यम से भक्त अपने ईष्ट देव से एकाकार होता है। श्री कृष्ण की लीला में इन अष्ट भावनाओं का गहरा आध्यात्मिक महत्व है, क्योंकि यह बताती हैं कि ईश्वर को पाने के लिए भक्ति के सभी रूप आवश्यक हैं।
अष्टसिद्धियाँ और श्रीकृष्ण
योगशास्त्र में आठ प्रमुख सिद्धियाँ बताई गई हैं — अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशत्व और वशित्व। कहा जाता है कि श्री कृष्ण इन सभी सिद्धियों के स्वामी थे। उन्होंने जीवन में इन सिद्धियों का उपयोग केवल धर्म की रक्षा और भक्तों के कल्याण के लिए किया।
8 अंक का यहां संबंध योग और तप की चरम अवस्था से है, जो केवल दिव्य आत्माओं को ही प्राप्त होती है। श्रीकृष्ण का जीवन इस बात का प्रमाण है कि वे इन सभी सिद्धियों के साथ जन्म से ही संपन्न थे।
अष्टांग योग और श्री कृष्ण की शिक्षा
भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन को जीवन का वास्तविक उद्देश्य और आत्मा के स्वरूप के बारे में उपदेश दिया। इस ज्ञान का मूल आधार अष्टांग योग में निहित है — यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि।
यह आठ अंगों वाला योगमार्ग मनुष्य को आत्मज्ञान और मोक्ष की ओर ले जाता है। श्री कृष्ण ने इस मार्ग को युद्धभूमि के मध्य अर्जुन को सिखाकर यह स्पष्ट किया कि आध्यात्मिक साधना केवल जंगल में बैठकर नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में संभव है।
अष्टमहिषियाँ और अष्टपत्नी परंपरा
श्री कृष्ण के जीवन में अष्टमहिषियों का भी उल्लेख मिलता है — रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, कालिंदी, मित्रविंदा, नाग्नजिति, भद्रा और लक्ष्मणा। ये आठों रानियाँ केवल सांसारिक पत्नियाँ नहीं, बल्कि धर्म, नीति, शक्ति और भक्ति के विभिन्न रूपों की प्रतीक थीं।
इन आठ महिषियों के माध्यम से श्रीकृष्ण ने जीवन में संतुलन और विविधता का संदेश दिया — कि धर्मपालन केवल एक रूप में नहीं, बल्कि विभिन्न रूपों में संभव है।
अष्टचक्र और द्वारका का निर्माण
द्वारका, जो श्रीकृष्ण की राजधानी थी, वास्तुशास्त्र के अनुसार अष्टचक्र योजना पर आधारित थी। इसका अर्थ है कि नगर का विन्यास आठ दिशाओं में संतुलित रूप से फैला था, जिससे ऊर्जा और सुरक्षा दोनों का सामंजस्य बना रहता था।
यह दर्शाता है कि श्रीकृष्ण केवल योद्धा और दार्शनिक ही नहीं, बल्कि एक उत्कृष्ट योजनाकार और प्रशासनिक कुशलता के धनी भी थे।
आध्यात्मिक दृष्टि से 8 अंक का महत्व
अंकज्योतिष में 8 अंक का संबंध शनि ग्रह से है, जो कर्म, न्याय और संतुलन का स्वामी माना जाता है। श्री कृष्ण का जीवन भी न्याय और संतुलन का आदर्श उदाहरण है। उन्होंने हमेशा अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना की — चाहे वह कंस का वध हो, शिशुपाल का दंड, या महाभारत में धर्म की विजय।
8 अंक अनंत का प्रतीक भी है (∞), जो ईश्वर की अनंत लीला और अनंत शक्ति को दर्शाता है। श्री कृष्ण के जीवन में बार-बार इस अंक का आना यह संकेत देता है कि वे स्वयं अनंत के अवतार हैं।
निष्कर्ष
भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में 8 अंक का महत्व केवल संयोग नहीं है, बल्कि एक गहरा आध्यात्मिक रहस्य है। जन्म की आठवीं संतान, अष्टमी तिथि, अष्ट योगिनी, अष्ट भाव, अष्ट सिद्धियाँ, अष्टांग योग, अष्टमहिषियाँ और अष्टचक्र योजना — ये सभी उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं में 8 अंक की दिव्य उपस्थिति को दर्शाते हैं।
यह संख्या अनंतता, संतुलन, पूर्णता और न्याय का प्रतीक है। श्रीकृष्ण के जीवन के माध्यम से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में संतुलन बनाए रखना, धर्म के मार्ग पर चलना और अपने कर्मों के प्रति सजग रहना ही सच्चा धर्म है। 8 अंक का यह रहस्य हमें याद दिलाता है कि ईश्वर की लीला अनंत है और उनके संदेश कालातीत हैं।
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FAQs
भगवान श्री कृष्ण का जन्म आठवीं संतान के रूप में क्यों हुआ?
कंस को भविष्यवाणी हुई थी कि देवकी की आठवीं संतान ही उसका वध करेगी। इसी कारण सात संतानों को मार दिया गया, लेकिन आठवीं संतान के रूप में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ और योगमाया की कृपा से वे सुरक्षित गोकुल पहुँचे।
श्रीकृष्ण के जन्म की अष्टमी तिथि का क्या महत्व है?
अष्टमी तिथि संतुलन, विनम्रता और पूर्णता का प्रतीक है। भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ, जो दिव्य अवतरण और धर्म पुनर्स्थापना का संकेत देता है।
अंकज्योतिष में 8 अंक का क्या अर्थ है और इसका कृष्ण से क्या संबंध है?
अंकज्योतिष में 8 अंक शनि ग्रह का अंक है, जो कर्म, न्याय और संतुलन का प्रतीक है। श्रीकृष्ण का जीवन न्याय, धर्म और संतुलन का आदर्श उदाहरण है, इसलिए यह अंक उनसे गहराई से जुड़ा है।
श्रीकृष्ण के जीवन में ‘अष्ट’ शब्द किन-किन रूपों में दिखाई देता है?
श्रीकृष्ण के जीवन में अष्टमी तिथि, आठवीं संतान, अष्ट योगिनी, अष्ट सिद्धियाँ, अष्टांग योग, अष्टमहिषियाँ और अष्टचक्र योजना जैसे कई रूपों में ‘अष्ट’ की उपस्थिति मिलती है।