Geet Govind Arth Sahit| गीत गोविंद अर्थ सहित|महाकवि जयदेव जी द्वार रचित गीत गोविंद अर्थ सहित हिंदी में

Geet Govind Arth Sahit in Hindi : गीत गोविंद संस्कृत साहित्य का अनुपम काव्य है, जिसे महाकवि जयदेव ने 12वीं शताब्दी में रचा था। यह ग्रंथ मुख्य रूप से भगवान श्रीकृष्ण और राधा जी के दिव्य प्रेम का अलौकिक चित्रण है, जिनमें श्रृंगार रस की मधुरता के साथ भक्ति का गहन भाव भी समाहित है। गीत गोविंद का प्रत्येक श्लोक न केवल काव्य की दृष्टि से विलक्षण है, बल्कि उसमें भक्ति, दर्शन और अध्यात्म का अद्भुत संगम भी मिलता है। यही कारण है कि यह कृति केवल साहित्यिक ग्रंथ नहीं, बल्कि भक्ति-रस से ओतप्रोत आध्यात्मिक मार्गदर्शक भी है।

गीत गोविंद
Geet Govind

गीत गोविंद अर्थ सहित (Geet Govind Lyrics in Hindi)

श्रितकमलाकुचमण्डल धृतकुण्डल ए।

कलितललितवनमाल जय जय देव हरे॥

जय हो भगवान हरि की, जिनका स्वरूप देवताओं में भी सर्वोच्च है। वे रत्नों से जड़े हुए झुमकों से अलंकृत हैं, वनमालाओं से सुशोभित हैं और उनके पावन चरणों पर कमल का चिन्ह विराजमान है।

दिनमणिमण्डलमण्डन भवखण्डन ए।

मुनिजनमानसहंस जय जय देव हरे ॥

भगवान का मुखमंडल सूर्य के तेजस्वी चक्र की भांति दमक रहा है। वे अपने भक्तों के समस्त कष्टों का निवारण करने वाले और हंस के समान निर्मल मुनियों के हृदय में शांति प्रदान करने वाले हैं। उनकी महिमा अपार है, जय हो श्रीहरि की।

कालियविषधरगंजन जनरंजन ए।

यदुकुलनलिनदिनेश जय जय देव हरे ॥

हे परम दिव्य स्वरूप वाले प्रभु, जिन्होंने कालिया नामक विषधर नाग का संहार किया। आप समस्त जीवों के रक्षक और यदुवंश रूपी गगन में सूर्य के समान आलोक फैलाने वाले हैं। आपकी महिमा अपरंपार है, जय हो भगवान श्रीहरि की।

राधे कृष्णा हरे गोविंद गोपाला
नन्द जू को लाला यशोदा दुलाला
जय जय देव हरे ॥

अमलकमलदललोचन भवमोचन ए।
त्रिभुवनभवननिधान जय जय देव हरे।।

हे प्रभु, आपकी नेत्र-युगल कमल की कोमल पंखुड़ियों के समान सुशोभित हैं। आप सांसारिक बंधनों का नाश करने वाले तथा समस्त तीनों लोकों का संरक्षण करने वाले पालनहार हैं। जय हो भगवान हरि की।

जनकसुताकृतभूषण जितदूषण ए।

समरशमितदशकण्ठ जय जय देव हरे।। 

हे प्रभु, आप जनकनंदिनी के रत्नस्वरूप पति हैं, जिन्होंने समस्त असुरों पर विजय प्राप्त की और दसशीर्ष राक्षसराज रावण का संहार किया। जय हो भगवान हरि की।

अभिनवजलधरसुन्दर धृतमन्दर ए।

श्रीमुखचन्द्रचकोर जय जय देव हरे।। 

हे गोवर्धनधारी परम दिव्य प्रभु! आपका श्यामल वर्ण नवसृजित वर्षा-मेघ के समान आभा लिए हुए है। आपकी मुखचंद्र की शीतल ज्योति से श्री राधारानी ऐसे तृप्त होती हैं जैसे चकोर पक्षी चंद्रमा की किरणों का पान करता है। महिमा अपार है, जय हो श्रीहरि की।

तव चरणे प्रणता वयमिति भावय ए।

कुरु कुशलंव प्रणतेषु जय जय देव हरे।। 

हे भगवान, मैं आपके पावन चरणों में अपना कोटि-कोटि प्रणाम अर्पित करता हूँ। कृपा करके अपनी असीम करुणा से मुझे आशीर्वाद प्रदान करें। आपकी महिमा निरंतर गाई जाए, जय हो श्रीहरि की।

श्रीजयदेवकवेरुदितमिदं कुरुते मृदम ।

मंगलमंजुलगीतं जय जय देव हरे ।। 

कवि श्री जयदेव आपको यह मधुर और उज्ज्वल सौभाग्य से पूर्ण स्तुति समर्पित करते हैं। आपकी महिमा अनंत है, जय हो भगवान श्रीहरि की।

राधे कृष्णा हरे गोविंद गोपाला

नन्द जू को लाला यशोदा दुलाला

जय जय देव हरे ॥ 

गीत गोविंद का महत्व

गीत गोविंद का महत्व इस बात में निहित है कि इसने संस्कृत साहित्य में श्रृंगार और भक्ति दोनों को अद्भुत संतुलन के साथ प्रस्तुत किया। जयदेव ने इस ग्रंथ के माध्यम से राधा-कृष्ण के प्रेम को केवल लौकिक दृष्टि से नहीं, बल्कि दिव्य और आध्यात्मिक रूप में दिखाया। इसमें विरह और मिलन की भावनाएँ जिस सौंदर्य और कोमलता के साथ व्यक्त की गई हैं, वे हृदय को गहराई से छू लेती हैं। इस ग्रंथ को कई मंदिरों और मठों में नित्य पाठ के रूप में अपनाया गया है। विशेषकर जगन्नाथ पुरी मंदिर में गीत गोविंद की अष्टपदियों का गायन भक्ति परंपरा का अभिन्न हिस्सा है।

गीत गोविंद के लाभ

गीत गोविंद का पाठ करने से भक्त के हृदय में गहन भक्ति और प्रेम का संचार होता है। यह मन की अशांति को दूर कर आत्मा को शांति और आनंद प्रदान करता है। इसके श्लोकों में छिपे अलंकार और रस जीवन को सकारात्मकता से भर देते हैं। यह ग्रंथ न केवल अध्यात्म की ओर प्रेरित करता है, बल्कि ईश्वर के प्रति समर्पण, विनम्रता और श्रद्धा का भाव भी दृढ़ करता है। जो साधक नियमित रूप से गीत गोविंद का अध्ययन या श्रवण करता है, उसके भीतर भक्ति का भाव प्रबल होता है और वह सांसारिक दुखों से ऊपर उठकर ईश्वर की शरण में शांति का अनुभव करता है।

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