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Gaur Purnima 2025: गौर पूर्णिमा कब है? जाने क्यों लिया था भगवान श्री कृष्ण ने चैतन्य महाप्रभु के रूप में जन्म

गौर पूर्णिमा का उत्सव चैतन्य महाप्रभु के प्रकट होने की स्मृति में मनाया जाता है। हर वर्ष (फरवरी-मार्च) में कृष्ण भक्त इस पर्व को बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं, विशेष रूप से भारत के मायापुर क्षेत्र में, जहां वर्ष 1486 में चैतन्य महाप्रभु प्रकट हुए थे। चैतन्य महाप्रभु स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के अवतार माने जाते हैं, जो भक्त रूप में प्रकट होकर यह उपदेश देते हैं कि भगवान के पवित्र नामों का जप करने से ही पूर्ण ज्ञान एवं आध्यात्मिक उन्नति संभव है।

गौर पूर्णिमा
Gaur Purnima 2025

महाप्रभु की दिव्य लीलाओं के दर्शन करने वालों ने उन्हें अत्यंत प्रेमपूर्वक नृत्य एवं संकीर्तन करते हुए देखा, जो पहले कभी नहीं देखा गया था। उन्होंने सभी को इस पद्धति को अपनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने यह सिखाया कि किसी की भी सामाजिक या आध्यात्मिक पृष्ठभूमि चाहे जो भी हो, यदि वह हरे कृष्ण महामंत्र का जप करता है, तो वह भगवान के प्रति अपने सहज प्रेम को जागृत कर सकता है और असीम आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति कर सकता है।

यहाँ आपके लिए एक अद्वितीय और बिना किसी साहित्यिक चोरी के पुनर्लिखित संस्करण है:

गौर पूर्णिमा 2025 कब है?

इस वर्ष गौर पूर्णिमा का उत्सव 14 मार्च को मनाया जाएगा।

गौर पूर्णिमा का शाब्दिक अर्थ “स्वर्णिम पूर्ण चंद्रमा” होता है। यह पर्व इसलिए विशेष माना जाता है क्योंकि—

  1. भगवान चैतन्य का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था।
  2. उन्होंने अपनी दिव्य शिक्षाओं और ज्ञान की प्रकाशमयी किरणों से सभी को आशीर्वाद प्रदान किया।

इस पावन अवसर पर उनके भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं और भगवान के पवित्र नामों का जाप करते हैं। जब चंद्रमा उदित होता है, तब भगवान को शाकाहारी प्रसाद अर्पित किया जाता है, जिसके बाद सभी भक्त इसे प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं।

भगवान चैतन्य के अवतरण का रहस्य (Shri Chaitanya Mahaprabhu Kaun The)

भगवान कृष्ण ने गोलोक में विचार किया— “मैं स्वयं युग धर्म की स्थापना करूंगा और नाम-संकीर्तन (भगवान के नामों का सामूहिक उच्चारण) का प्रचार करूंगा। मैं एक भक्त का रूप धारण कर पूरी दुनिया को प्रेम और भक्ति के आनंद में मग्न कर दूंगा। अपने उदाहरण से भक्ति मार्ग को सिखाऊंगा, क्योंकि जैसा आचरण एक महान व्यक्ति करता है, समाज उसी का अनुसरण करता है। मेरे अंशावतार हर युग में धर्म की स्थापना कर सकते हैं, किंतु केवल मैं ही वह दिव्य प्रेम प्रदान कर सकता हूं, जो वृंदावन के निवासियों को प्राप्त है।”

भगवान कृष्ण के इस अवतरण के पीछे एक और गूढ़ रहस्य छिपा था। यद्यपि उन्होंने गोपियों के संग लीलाओं का आनंद लिया, लेकिन वे तीन विशिष्ट इच्छाओं को पूर्ण करने में असमर्थ रहे।

  1. वे श्रीराधा के प्रेम की शक्ति को समझना चाहते थे, जिससे वे सदैव कृष्ण को आकर्षित करती थीं।
  2. वे यह अनुभव करना चाहते थे कि राधारानी को उनसे मिलकर कितना आनंद प्राप्त होता है।
  3. वे राधारानी की दृष्टि से अपने स्वयं के सौंदर्य का आनंद लेना चाहते थे।

इस गहन अनुभूति की इच्छा ने भगवान कृष्ण को प्रेरित किया कि वे स्वयं श्रीराधा की प्रेमभावना और सौंदर्य को धारण करें। यही कारण था कि उन्होंने श्री चैतन्य महाप्रभु के रूप में अवतार लिया।

भगवान चैतन्य महाप्रभु का प्राकट्य (Shri Chaitanya Mahaprabhu ka Janm Kyun Hua Tha?)

भगवान के इस अवतरण से पूर्व, नवद्वीप के संतों और भक्तों की स्थिति चिंताजनक थी। अद्वैत आचार्य यह देखकर व्यथित थे कि संसार कृष्ण-चेतना से दूर जा रहा था और भौतिक सुखों में उलझा हुआ था। वे यह जानते थे कि जब तक भगवान स्वयं अवतरित होकर भक्ति मार्ग को प्रचारित नहीं करेंगे, तब तक इस संसार का उद्धार संभव नहीं होगा।

इसलिए उन्होंने गंगा के जल में तुलसी के पत्ते अर्पित कर अत्यंत श्रद्धा और करुणा से भगवान को पुकारा। उनकी गहरी प्रार्थना और हृदय से की गई पुकार ने भगवान को पृथ्वी पर अवतरित होने के लिए बाध्य कर दिया।

अंततः, फाल्गुन मास के गौर पूर्णिमा के शुभ दिन, वर्ष 1486 में, नवद्वीप में भगवान चैतन्य महाप्रभु प्रकट हुए। उनके जन्म के समय संपूर्ण वातावरण आनंद से भर उठा। सभी दिशाओं में हर्ष और उल्लास व्याप्त हो गया। उसी समय, राहु ग्रहण लगाकर चंद्रमा को ढक रहा था, जिससे सभी लोग गंगा स्नान करने गए और “हरे कृष्ण” तथा “हरि बोल” का जाप करने लगे। इस प्रकार, भगवान चैतन्य के जन्म के समय संपूर्ण वातावरण पवित्र नामों के उच्चारण से गूंज उठा।

गौर पूर्णिमा पर भक्तों में हर्ष और उल्लास

अद्वैत आचार्य और हरिदास ठाकुर उस समय अपने घरों में भक्तों के साथ भजन-कीर्तन कर रहे थे। अचानक वे एक अद्भुत आनंद का अनुभव करने लगे और बिना कारण अत्यधिक प्रसन्न हो उठे। उन्हें आभास हो गया कि कोई दिव्य घटना घटित हुई है।

इसी बीच, नवद्वीप में श्रीवास ठाकुर और चंद्रशेखर आचार्य गंगा स्नान करने गए और उन्होंने हर्षोल्लास से दान भी दिया। पूरे क्षेत्र में भक्तगण आनंद में मग्न हो गए, क्योंकि श्री चैतन्य महाप्रभु के प्रकट होने से संपूर्ण ब्रह्मांड हर्ष और भक्ति के सागर में डूब गया था।

गौर पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भगवान चैतन्य महाप्रभु के प्रेम और भक्ति से ओत-प्रोत संदेश का प्रतीक है। उन्होंने संसार को यह सिखाया कि संकीर्तन-यज्ञ (भगवान के नाम का सामूहिक कीर्तन) इस युग में मोक्ष प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन है। इस दिन को मनाना, उनके दिव्य अवतरण को याद करना और उनके द्वारा दिए गए प्रेम भक्ति के संदेश को आत्मसात करना, यही सच्चे अर्थों में गौर पूर्णिमा का महत्त्व है।

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