गणगौर व्रत चैत्र शुक्ल तृतीया को रखा जाता है, जिसे तृतीया तीज के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखद दांपत्य जीवन की कामना के लिए इस व्रत का पालन करती हैं, वहीं अविवाहित कन्याएं मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त करने के लिए इस व्रत को करती हैं।

गणगौर शब्द “गण” यानी भगवान शिव और “गौर” यानी माता पार्वती को दर्शाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। मान्यता यह भी है कि इस दिन माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी, इसलिए यह व्रत अत्यंत शुभ माना जाता है।
गणगौर व्रत न केवल वैवाहिक जीवन में सुख-शांति लाने वाला माना जाता है बल्कि यह सच्चे प्रेम और समर्पण का प्रतीक भी है। यह व्रत विशेष रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
गणगौर व्रत 2025 तिथि (Gangaur Vrat 2025 Date and Time)
गणगौर व्रत हर साल चैत्र नवरात्रि की तृतीया तिथि के दिन मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह व्रत 31 मार्च, सोमवार को रखा जाएगा। पंचांग के अनुसार, तृतीया तिथि का आरंभ 31 मार्च को सुबह 9:11 बजे होगा और यह 1 अप्रैल को सुबह 5:42 बजे तक जारी रहेगी। इसे तृतीया तीज के नाम से भी जाना जाता है।
गणगौर व्रत महत्व (Gangaur Vrat Mahatva)
इस व्रत का पालन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन की कामना के लिए करती हैं, जबकि अविवाहित कन्याएं मनचाहा जीवनसाथी पाने के लिए यह व्रत रखती हैं। गणगौर व्रत 16 दिनों तक चलता है, जिसमें व्रती महिलाएं सिर्फ एक समय भोजन ग्रहण करती हैं। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा-अर्चना कर उनके आशीर्वाद की प्रार्थना करती हैं।
गणगौर व्रत विशेष रूप से राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान से सटे अन्य राज्यों में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
गणगौर पूजन विधि (Gangaur Vrat Puja Vidhi)
गणगौर व्रत की पूजा के लिए मिट्टी से भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियों का निर्माण किया जाता है। इस दिन माता पार्वती को विशेष श्रृंगार सामग्री अर्पित की जाती है। पूजा की शुरुआत में माता पार्वती को रोली और कुमकुम का तिलक करें तथा भगवान शिव को चंदन से तिलक लगाएं। इसके बाद घी का दीपक प्रज्वलित करें, फल-मिठाई का भोग अर्पित करें और दूर्वा चढ़ाएं।
इसके बाद एक थाली में चांदी का सिक्का, सुपारी, पान, दूध, दही, गंगाजल, कुमकुम, हल्दी और दूर्वा डालकर सुहाग जल तैयार करें। इस जल को दूर्वा की सहायता से भगवान शिव और माता गौरी पर छिड़कें। फिर चूरमे का भोग अर्पित करें और गणगौर व्रत कथा का पाठ करें। अंत में भगवान शिव और माता पार्वती की आरती कर व्रत को पूर्ण करें।
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