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Ganesh Chaturthi Vrat Katha: गणेश चतुर्थी व्रत की कथा

गणेश चतुर्थी
गणेश चतुर्थी व्रत की कथा

भाद्र शुक्ल गणेश चतुर्थी व्रत की कथा : एक बार नैमिषारण्य तीर्थ में शौनक और अन्य अट्ठासी हजार ऋषियों ने सूतजी महाराज से प्रश्न किया। उन्होंने पूछा, “हे सूतजी महाराज! कृपया यह बताएं कि सभी कार्यों की निर्विघ्न समाप्ति कैसे हो सकती है? धन की प्राप्ति में सफलता का मार्ग क्या है? मनुष्य के पुत्र, सौभाग्य और संपत्ति में वृद्धि कैसे हो सकती है? पति-पत्नी के बीच कलह को रोकने और भाई-भाई के बीच वैमनस्य को समाप्त करने का उपाय क्या है? साथ ही, उदासीनता को अनुकूलता में बदलने का रहस्य बताएं।

विद्याध्ययन, व्यापार, कृषि कार्य और शासकों द्वारा शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सफलता कैसे प्राप्त हो सकती है? किस देवता की पूजा और अर्चना से मनुष्य अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है? कृपया इन सभी प्रश्नों पर विस्तार से प्रकाश डालें।”

सूतजी ने ऋषियों से कहा, “प्राचीनकाल में जब कौरव और पाण्डवों की सेनाएँ युद्ध के लिए तैयार हो रही थीं, उस समय कुन्ती के पुत्र युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा, ‘हे कृष्ण! कृपया बतलाइये, हमारी निर्विघ्न विजय कैसे होगी? किस देवता की आराधना से हम अपने उद्देश्यों को सिद्ध कर सकेंगे?'” श्रीकृष्ण जी ने कहा, “हे वीर! पार्वती जी के मैल से उत्पन्न गणेश जी की पूजा करें। उनकी पूजा से आप निश्चित रूप से अपने राज्य को प्राप्त करेंगे।”

युधिष्ठिर ने पूछा, “हे देव! गणेश पूजन का क्या विधान है? किस तिथि को पूजा करने से वे सिद्धि प्रदान करते हैं?” श्रीकृष्ण जी ने उत्तर दिया, “हे महाराज! भादों महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा, श्रवण, अगहन और माघ मास की चतुर्थी को भी उनकी पूजा की जा सकती है।”

हे राजन युधिष्ठिर, यदि आप में श्रद्धा भाव हो तो भादों शुक्ल चतुर्थी से गणेश जी की पूजा प्रारंभ करें। व्रती को प्रातःकाल सफेद तिल से स्नान करना चाहिए। दोपहर में सोने की मूर्ति चार तोले, दो तोले, एक तोले या आधा तोले की अपनी सामर्थ्य के अनुसार बनवाएं। यदि संभव न हो तो चांदी की प्रतिमा बनवाएं। यदि यह भी न हो सके तो मिट्टी की मूर्ति बनवाएं, परन्तु अर्थ सम्पन्न होते हुए कृपणता न करें। गणेश जी ही ‘विघ्नहर्ता’ और ‘सिद्धिविनायक’ हैं।

मनोवांछा की सिद्धि के लिए भादों शुक्ल चौथ को गणेश जी की पूजा करें। उनकी पूजा से सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं, इसलिए उन्हें ‘सिद्धिविनायक’ कहा जाता है। ध्यान विधि: एक दांत, सूप जैसे विस्तृत कान, हाथी जैसे मुख, चार भुजाएं और हाथ में पाश एवं अंकुश धारण किए हुए ‘सिद्धिविनायक’ गणेश जी का ध्यान करें। एकाग्रचित्त होकर पूजन करें। पंचामृत से स्नान कराने के बाद शुद्ध जल से स्नान कराएं। भक्ति पूर्वक गणेश जी को गंध चढ़ाएं, आवाहन करके पाद्य और अर्घ्य देने के बाद, दो लाल वस्त्र चढ़ाएं। तत्पश्चात पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।

पान के ऊपर थोड़ी मात्रा में सोना (या रुपया, अठन्नी) चढ़ाएं। गणेश जी को इक्कीस दूब अर्पित करें। निम्नलिखित नामों द्वारा गणेश जी की पूजा दूर्वा से करें: गणाधिप, उमापुत्र, पाप के नाशक, विनायक, ईशनंदन, सर्वसिद्धिदाता, एकदंत, गजमुख, मूषकवाहन, स्कन्दकुमार के ज्येष्ठ भ्राता, और गजानन महाराज। रोली, पुष्प, और अक्षत के साथ दो-दो दूब लेकर हर नाम का उच्चारण करते हुए गणेश जी को अर्पित करें।

हे देवाधिदेव, कृपया मेरी दूब को स्वीकार करें। इसी प्रकार, गणेश जी को भुना हुआ गेहूं और गुड़ (गुड़ धनिया) चढ़ाएं। शुद्ध घी से बने इक्कीस लड्डू हाथ में लेकर “हे कुरुकुल प्रदीप!” कहें और गणेश जी के सामने रखें। इनमें से दस लड्डू ब्राह्मण को दान करें और दस लड्डू अपने भोजन के लिए रख लें। बाकी एक लड्डू गणेश जी के नैवेद्य के रूप में चढ़ाएं।

सुवर्ण प्रतिमा को ब्राह्मण को दान दें। सभी कर्म करने के बाद अपने इष्ट देव की पूजा करें। तत्पश्चात, ब्राह्मण को भोजन कराकर स्वयं भोजन ग्रहण करें। स्मरण रहे कि उस दिन मूंगफली, वनस्पति, बरें आदि के तेल का उपयोग न करें। गणेश जी की मूर्ति को सम्पूर्ण विघ्न निवारण के लिए विद्वान ब्राह्मण को अधोवस्त्र और उत्तरीय वस्त्र के साथ दान कर दें। हे धर्मराज युधिष्ठिर! इस प्रकार गणेश जी की पूजा करने से आप सभी पाण्डवों की विजय होगी।इसमें कोई सन्देह नहीं है, यह मैं पूर्ण सत्य कह रहा हूँ। गुरु से दीक्षा लेते समय वैष्णव आदि प्रारंभ में गणेश पूजन करते हैं।

गणेश जी की पूजा करने से विष्णु, शिव, सूर्य, पार्वती (दुर्गा), अग्नि आदि विशिष्ट देवताओं की भी पूजा हो जाती है। इसमें कोई संदेह नहीं है। इनके पूजन से चण्डिका आदि मातृगण भी प्रसन्न होते हैं। हे ऋषियों! भक्तिपूर्वक सिद्धिविनायक गणेश जी की पूजा करने से, उनकी कृपा से मनुष्यों के सभी कार्य सफल होते हैं।

भाद्र शुक्ल गणेश चतुर्थी की पूजा शिवलोक में होती है। इस दिन स्नान, दान, उपवास और पूजन करने से गणेश जी की कृपा से अत्यधिक फल मिलता है। हे युधिष्ठिर, इस दिन चंद्र दर्शन वर्जित है। इसलिए अपने कल्याण की कामना से दोपहर में ही पूजा कर लेनी चाहिए। सिंह राशि की संक्रांति और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर चंद्र दर्शन करने से मिथ्या कलंक लग सकता है, जैसे चोरी, व्यभिचार, हत्या आदि का।

इसलिए आज के दिन चंद्र दर्शन वर्जित है। यदि भूल से चंद्र दर्शन हो जाए तो कहें, ‘सिंह ने प्रसेनजित को मार डाला और जाम्बवान ने सिंह को यमालय भेज दिया। हे बेटा, रोओ मत, तुम्हारी स्यमन्तक मणि यह है।’ ऐसा कहने से कलंक दोष से मुक्ति मिल जाएगी। श्री गणेशाय नमः।

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