साल भर में पड़ने वाली 24 एकादशियों में से विजया एकादशी का विशेष महत्व है। इसे बेहद शुभ और फलदायी व्रत माना जाता है। मान्यता है कि जितनी श्रद्धा और दृढ़ता के साथ कोई भक्त इस व्रत का पालन करता है, उतना ही अधिक उसे पुण्य और लाभ की प्राप्ति होती है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है, और इसे करने वाले व्यक्ति को सौभाग्य, मोक्ष, आंतरिक शक्ति और अच्छे स्वास्थ्य का वरदान मिलता है।
विजया एकादशी का महत्व (Vijaya Ekadashi Mahatva)
विजया एकादशी का नाम ही यह बताता है कि यह व्रत विजय प्रदान करने वाला है। इसे करने वाला व्यक्ति अपने जीवन की हर चुनौती और प्रतिस्पर्धा में सफल होता है। यह एकादशी भगवान विष्णु की कृपा पाने का श्रेष्ठ माध्यम है। 2025 में, यह एकादशी 24 फरवरी, 2025 को मनाई जाएगी। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में चंद्रमा के क्षीण होने के समय को विजया एकादशी कहते हैं। इसका अर्थ है विजय की प्राप्ति। यह व्रत पुराणों में वर्णित है और इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जहां इस व्रत के प्रभाव से राजाओं ने बड़े युद्धों में सफलता प्राप्त की। मान्यता यह भी है कि जो व्यक्ति इस व्रत को रखता है, वह अपने जीवन के दुखों और संकटों से मुक्ति पाता है।
विजया एकादशी 2025: तिथि और समय (Vijaya Ekadashi 2025 Date and Time)
विजया एकादशी के व्रत और पूजा से जुड़े समय विवरण इस प्रकार हैं:
- विजया एकादशी तिथि: 24 फरवरी, 2025
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 23 फरवरी, 2025 को दोपहर 1:54 बजे
- एकादशी तिथि समाप्त: 24 फरवरी, 2025 को दोपहर 1:44 बजे
- पारण का समय: 25 फरवरी, 2025 को सुबह 6:50 बजे से 9:08 बजे तक
विजया एकादशी की कथा (Vijaya Ekadashi Vrat Katha)
विजया एकादशी की कथा का संबंध भगवान श्री राम से है। इस कथा के माध्यम से जानें कि यह व्रत कितना प्रभावशाली है।
द्वापर युग में, पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण से फाल्गुन मास की एकादशी के महत्व के बारे में पूछा। श्रीकृष्ण ने बताया कि यह व्रत नारद मुनि के बाद उन्होंने स्वयं सीखा, जिन्हें यह ज्ञान ब्रह्मा जी से प्राप्त हुआ था।
यह कथा त्रेता युग की है। जब भगवान श्रीराम अपनी पत्नी माता सीता का रावण के चंगुल से उद्धार करने के लिए सुग्रीव की सेना के साथ लंका जा रहे थे। उनकी सेना को समुद्र पार करना था, लेकिन विशाल समुद्र और उसमें रहने वाले खतरनाक जीवों ने उनकी राह में बाधा खड़ी कर दी।
श्रीराम ने समाधान के लिए अपने अनुज लक्ष्मण से परामर्श किया। लक्ष्मण ने बताया कि पास ही स्थित वकदाल्भ्य मुनि से इस समस्या का समाधान पूछा जा सकता है। श्रीराम मुनि के पास पहुंचे और अपनी कठिनाई बताई। मुनि ने सुझाव दिया कि पूरी सेना के साथ फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करें।
मुनि की बात मानते हुए, भगवान श्रीराम ने अपनी सेना के साथ विजया एकादशी का व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से श्रीराम और उनकी सेना ने लंका पर विजय प्राप्त की और माता सीता को मुक्त कराया।
विजया एकादशी व्रत विधि (Vijaya Ekadashi Vrat Vidhi)
विजया एकादशी के दिन पूजा और व्रत निम्नलिखित विधि से करना चाहिए:
- प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु की पूजा की तैयारी करें।
- पूजा के लिए सप्तधान (सात प्रकार की दालें: उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल, बाजरा) वेदी पर रखें।
- मिट्टी, सोना या चांदी से बना हुआ कलश तैयार करें और उसके ऊपर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें।
- कलश में पंच पल्लव (पीपल, गूलर, आम, वट और अशोक के पत्ते) रखें।
- भगवान विष्णु की पूजा धूप, दीप, चंदन, फूल, फल और तुलसी से करें।
- व्रत के दौरान भगवान विष्णु की कथा सुनें और उनका ध्यान करें।
- रात को कलश के पास जागरण करें और भजन-कीर्तन करें।
- द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण को कलश दान करें।
- सात्विक भोजन के साथ व्रत का पारण करें।
विजया एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और जीवन में सफलता हासिल करने का अद्भुत उपाय है। इसे पूरी श्रद्धा और नियम से किया जाए, तो व्यक्ति को न केवल सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है, बल्कि वह आध्यात्मिक उन्नति भी करता है। यह व्रत दुखों और बाधाओं से मुक्ति दिलाकर जीवन में विजय का मार्ग प्रशस्त करता है।
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