सोम प्रदोष व्रत को सभी प्रदोष व्रतों में सबसे शुभ माना जाता है। यह व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है, और जब यह व्रत सोमवार को पड़ता है तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। सोमवार का दिन विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित होता है। इस दिन प्रदोष व्रत रखकर पूजा करना अत्यंत शुभफलदायी होता है और इससे भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
सोम प्रदोष व्रत महत्व (Som Pradosh Vrat 2025)
सोम प्रदोष व्रत रखने से व्यक्ति की मनचाही इच्छाएं पूरी होती हैं और चंद्रमा से जुड़ी समस्याओं का निवारण होता है। यह व्रत भगवान शिव के प्रति समर्पण का प्रतीक है, और इसे करने से आर्थिक तंगी और रोग दूर होते हैं। भगवान शिव की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति आती है, जिससे व्यक्ति का जीवन सफल और संपन्न होता है। सोम प्रदोष व्रत से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
सोम प्रदोष व्रत तिथि 2025 (February Pradosh Vrat 2025 Tithi)
फरवरी में सोम प्रदोष व्रत 10 फरवरी को रखा जाएगा।
सोम प्रदोष व्रत लाभ (Som Pradosh Vrat Labh)
सोम प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिलती है और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस व्रत से गृहस्थ जीवन में सुख-शांति और आर्थिक समृद्धि बनी रहती है। साथ ही, रोग और शत्रुओं से भी छुटकारा मिलता है। यह व्रत आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी सहायक होता है, जिससे व्यक्ति का जीवन संतुलित और सफल बनता है। भगवान शिव की कृपा से जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और हर कष्ट का निवारण होता है।
सोम प्रदोष व्रत पूजा विधि (Som Pradosh Vrat Puja Vidhi)
सोम प्रदोष व्रत के दिन व्रती को प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके बाद भगवान शिव का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें, इस दौरान ध्यान रखें कि पूरे दिन निराहार या फलाहार करना है। प्रदोष काल (संध्या के समय) में शिवलिंग पर जल, गंगाजल, दूध, दही, शहद और घी से अभिषेक करें। इसके साथ ही बेलपत्र, धतूरा और आक के फूल अर्पित करें। शिव पुराण के अनुसार, बेलपत्र भगवान शिव को विशेष रूप से प्रिय होते हैं, और इससे मनोकामनाएं शीघ्र पूरी होती हैं।
भगवान शिव की आरती करने के बाद “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का 108 बार जाप करें, जिससे विशेष लाभ मिलता है। अंत में, प्रदोष व्रत की कथा का श्रवण अवश्य करें, जिससे व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
सोम प्रदोष व्रत कथा (Som Pradosh Vrat Katha)
स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार, एक नगर में एक गरीब ब्राह्मणी अपने पुत्र के साथ रहती थी, क्योंकि उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसके पास कोई सहारा न था, इसलिए वह और उसका पुत्र भिक्षाटन करके अपना पेट पालते थे। एक दिन ब्राह्मणी भिक्षाटन से लौटते समय एक घायल लड़के से मिली। दयावश, वह उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था, जिसका राज्य शत्रु सैनिकों ने हड़प लिया था और उसके पिता को बंदी बना लिया था।
राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा। एक बार वे सभी ऋषि शांडिल्य के आश्रम गए, जहां ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत की विधि और कथा सुनी। घर लौटकर उसने व्रत रखना शुरू कर दिया।
एक दिन की बात है, जब दोनों बालक वन में घूम रहे थे। पुजारी का पुत्र घर लौट आया, लेकिन राजा का बेटा वन में अंशुमति नामक गंधर्व कन्या से मिला। अंशुमति उस पर मोहित हो गई और उसके साथ समय बिताने लगी। एक दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई, और वे भी राजकुमार को पसंद करने लगे।
कुछ समय बाद अंशुमति के माता-पिता को भगवान शंकर ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दें, और उन्होंने वैसा ही किया। ब्राह्मणी द्वारा प्रदोष व्रत रखने और गंधर्वराज की विशाल सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और अपने पिता के राज्य को पुनः प्राप्त कर लिया। युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद राजकुमार विदर्भ का राजा बन गया।
राजकुमार ने पुजारी की पत्नी और उनके बेटे को भी राजमहल में बुला लिया, और वे सभी आनंदपूर्वक रहने लगे। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया। अंशुमति के पूछने पर राजकुमार ने उसे प्रदोष व्रत के महत्व के बारे में बताया, जिसके बाद अंशुमति ने भी नियमित रूप से प्रदोष व्रत रखना शुरू कर दिया। इस व्रत से उनके जीवन में सुखद बदलाव आए। जैसे ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के प्रभाव से राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने अन्य भक्तों के जीवन में भी बदलाव लाते हैं। सोम प्रदोष व्रत करने वाले सभी भक्तों को यह कथा अवश्य पढ़नी या सुननी चाहिए।
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