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Diwali Totka:”दरिद्र बाहर हो और लक्ष्मी अंदर हो” जाने दिवाली के अगले दिन कैसे करे दरिद्र को घर से बाहर

भारत में दीपावली का पर्व हर साल बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। दीपों का यह त्योहार मां लक्ष्मी को समर्पित होता है, जो धन, सुख और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। इस दिन लोग अपने घरों को दीपों, रंगोली और रंग-बिरंगी रोशनी से सजाते हैं और मां लक्ष्मी के आगमन का स्वागत करते हैं। गणेश जी के साथ मां लक्ष्मी की आराधना की जाती है ताकि घर में खुशहाली और समृद्धि बनी रहे। हालांकि, बिहार में दीपावली के दौरान एक विशेष और अनोखी परंपरा का पालन किया जाता है, जो इस त्योहार को अन्य राज्यों से अलग बनाती है।

बिहार में, खासतौर से मिथिलांचल क्षेत्र में, दीपावली के अगले दिन एक अनोखी प्रथा निभाई जाती है। इसे दरिद्र भगाने और मां लक्ष्मी का आह्वान करने की परंपरा के नाम से जाना जाता है। इस प्रथा में घर की महिलाएं एक पुराने सूप को संठी नामक लकड़ी से पीटते हुए घर के हर कोने में घुमाती हैं और फिर इसे घर से बाहर निकाल देती हैं। इस प्रथा के दौरान दरिद्रता को घर से बाहर निकालने और मां लक्ष्मी को घर में आमंत्रित करने की कामना की जाती है। आइए, इस परंपरा के हर चरण को विस्तार से समझें।

दीपावली के दिन मां लक्ष्मी की पूजा और दरिद्र भगाने की तैयारियां (Kaise Bhagaye Daridra Ko)

बिहार में दीपावली का यह विशेष अनुष्ठान दिवाली की रात मां लक्ष्मी की पूजा के बाद अगली सुबह किया जाता है। माना जाता है कि रात को पूजा करने से मां लक्ष्मी घर में प्रवेश करती हैं, जबकि अगली सुबह इस विशेष विधि से दरिद्रता को घर से बाहर निकाला जाता है। महिलाएं इस परंपरा को निभाने में विशेष उत्साह दिखाती हैं, और बच्चों के लिए यह परंपरा रोमांचक होती है।

ब्रह्म मुहूर्त में परंपरा का पालन (Daridra Bhagne ka Samay)

दीपावली की रात मां लक्ष्मी की पूजा के उपरांत, अगली सुबह ब्रह्म मुहूर्त (लगभग 4:00 बजे) में घर की महिलाएं इस अनुष्ठान की शुरुआत करती हैं। परंपरा के अनुसार, एक पुराना सूप लिया जाता है, जिसे संठी नामक एक विशेष लकड़ी से पीटा जाता है। सूप को पहले घर के हर कोने में घुमाया जाता है ताकि घर में मौजूद सभी नकारात्मक ऊर्जा और दरिद्रता उससे चिपक जाए। इसके बाद इसे घर से बाहर ले जाया जाता है और गांव के चौराहे पर इसे जलाकर नष्ट कर दिया जाता है।

दरिद्र भगाने और मां लक्ष्मी के आह्वान का महत्व (Daridra Bhagne Aur Maa Laxmi ka Ahwahan)

इस परंपरा में घर से दरिद्रता को निकालना और मां लक्ष्मी का स्वागत करना प्रमुख उद्देश्य होता है। सूप को पीटते हुए महिलाएं “दरिद्र बाहर हो और लक्ष्मी अंदर हो” का मंत्र दोहराती हैं, जिससे नकारात्मक शक्तियां और दरिद्रता घर से निकल जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस अनुष्ठान से मां लक्ष्मी घर में स्थायी रूप से वास करती हैं और घर में सुख-समृद्धि का वातावरण बनता है।

गांव के चौराहे पर सूप जलाने की प्रक्रिया

जब सूप को पूरे घर में घुमाकर दरिद्रता को समेट लिया जाता है, तब इसे बाहर लाकर चौराहे पर ले जाते हैं। वहां सभी लोग एक साथ मिलकर सूप को जलाते हैं, जिससे नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। यह अनुष्ठान सामूहिकता का प्रतीक भी है, जहां गांव के सभी लोग एक साथ दरिद्रता के बहिष्कार में भाग लेते हैं और मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने की कामना करते हैं।

बच्चों और परिवार का उत्साह

इस परंपरा में बच्चों की भागीदारी काफी महत्वपूर्ण होती है। घर की महिलाएं और बच्चे मिलकर इस अनुष्ठान को अंजाम देते हैं। बच्चों को यह परंपरा बहुत रुचिकर लगती है, क्योंकि वे सड़कों पर सूप को पीटते हुए बाहर ले जाते हैं। इस पूरे कार्यक्रम में उनकी विशेष भूमिका होती है और यह उनके लिए एक प्रकार का उत्सव होता है। बच्चे सड़कों पर दरिद्रता को घर से दूर ले जाने के इस अनुष्ठान में उत्साह के साथ भाग लेते हैं, जो पूरे माहौल को और अधिक रंगीन बना देता है।

दरिद्र भगाने की प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाले सूप और संठी का महत्व (Santhi ka Mahatva)

सूप और संठी इस अनुष्ठान में विशेष महत्व रखते हैं। सूप एक प्रतीक के रूप में प्रयोग होता है, जिसमें नकारात्मक ऊर्जा और दरिद्रता को संग्रहित किया जाता है। संठी, जो एक प्रकार की लकड़ी होती है, का उपयोग सूप को पीटने के लिए किया जाता है, जिससे दरिद्रता को बाहर निकालने की प्रक्रिया पूरी होती है। मिथिलांचल के कुछ क्षेत्रों में संठी को जलाया नहीं जाता, बल्कि इसे संभालकर रखा जाता है ताकि अगले वर्ष इसे पुनः उपयोग किया जा सके।

क्यों नहीं जलाते संठी? (Kyu Nahi Jalate Santhi)

मिथिलांचल में कई स्थानों पर संठी को दरिद्र भगाने के इस अनुष्ठान के बाद जलाया नहीं जाता है, बल्कि इसे अगले वर्ष की पूजा के लिए संभाल कर रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि संठी को सुरक्षित रखने से मां लक्ष्मी की कृपा लगातार बनी रहती है और हर साल के दीपावली पर इसका पुनः प्रयोग करने से दरिद्रता दूर रहती है।

दरिद्र भगाने की परंपरा का सांस्कृतिक महत्व

बिहार में इस अनुष्ठान का एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक पहलू भी है। यह परंपरा समाज में समृद्धि और एकता का संदेश देती है। दीपावली का पर्व केवल व्यक्तिगत सुख-समृद्धि के लिए नहीं बल्कि समाज की समृद्धि के लिए भी मनाया जाता है। इस अनुष्ठान में सामूहिकता की भावना देखने को मिलती है, जहां पूरा गांव एकजुट होकर दरिद्रता को दूर करने के इस कार्य में भाग लेता है। यह परंपरा पुरातन काल से चली आ रही है और इसे निभाने में प्रत्येक परिवार अपना योगदान देता है।

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