भारत एक ऐसा देश है, जहाँ त्योहारों का विशेष महत्व है और हर त्योहार के पीछे एक पौराणिक कथा, धार्मिक मान्यता या सांस्कृतिक परंपरा छुपी होती है। इन्हीं महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है ‘दिवाली‘। दिवाली को पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है और इस पर्व का प्रमुख उद्देश्य मां लक्ष्मी का आह्वान कर, उनकी कृपा प्राप्त करना है। लक्ष्मी जी को धन, वैभव और समृद्धि की देवी माना जाता है, और इसलिए दिवाली के दिन उनकी विशेष पूजा की जाती है।
दिवाली पर मां लक्ष्मी की पूजा विधि और आरती का भी विशेष महत्व है। लेकिन अक्सर यह सवाल उठता है कि दिवाली के दिन लक्ष्मी जी की आरती करनी चाहिए या नहीं? इस लेख में हम इस सवाल का उत्तर ढूंढेंगे और जानेंगे कि दिवाली पर लक्ष्मी पूजन की सही विधि क्या होनी चाहिए।
लक्ष्मी जी की आरती करनी चाहिए या नहीं? (Should Lakshmi ji’s aarti be performed or not?)
कुछ मान्यताओं के अनुसार, दिवाली के दिन लक्ष्मी जी की आरती करना आवश्यक है, क्योंकि यह देवी की कृपा प्राप्त करने का एक प्रमुख माध्यम है। परंतु कुछ परंपराओं और घरों में ऐसा माना जाता है कि लक्ष्मी जी की आरती नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यह उन्हें ‘विदाई’ देने का संकेत हो सकता है। यह विचार कई स्थानों पर प्रचलित है कि आरती के दौरान ‘जय’ या ‘विदाई’ के शब्दों का उपयोग लक्ष्मी जी को घर से बाहर जाने का संकेत दे सकते हैं। इसलिए कई लोग लक्ष्मी जी की आरती करने से बचते हैं।
पूजा करते समय दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए (Special attention should be paid to the direction while worshiping)
पूजा करते वक्त आपका मुख उत्तर या पूर्व की ओर होना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर का उत्तर-पूर्व दिशा का कोना पूजा के लिए सबसे शुभ माना जाता है। पूजा का स्थान साफ-सुथरा, व्यवस्थित और पर्याप्त रोशनी वाला होना चाहिए। दीपक को पूर्व दिशा की ओर रखना चाहिए। पूजा सामग्री जैसे पूजा कलश, खील-पताशा, सिंदूर, गंगाजल, अक्षत-रोली, मोली, फल-मिठाई, पान-सुपारी, इलायची आदि उत्तर-पूर्व दिशा में रखना शुभ होता है। पूजा कक्ष के दरवाजे पर रोली या सिंदूर से दोनों ओर स्वास्तिक बनाने से नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं करती। वास्तु शास्त्र के अनुसार, शंख और घंटी की आवाज़ से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं।
लक्ष्मी पूजन की सही विधि (Laxmi Puja Vidhi)
अब आइए, जानते हैं कि दिवाली के दिन लक्ष्मी जी की पूजा और आरती करने की सही विधि क्या होनी चाहिए, ताकि मां लक्ष्मी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त हो सके।
दिवाली की पूजा के लिए सबसे पहले घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि मां लक्ष्मी स्वच्छ और पवित्र स्थानों पर ही वास करती हैं। घर के मुख्य द्वार को अच्छे से सजाएँ और रंगोली बनाएं। मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए दीप जलाएं और घर को दीपों से सजाएं।
दिवाली की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त का विशेष महत्व होता है। पंचांग या ज्योतिषी से उचित समय की जानकारी लें और उसी समय के अनुसार लक्ष्मी पूजन करें। लक्ष्मी पूजन आमतौर पर प्रदोष काल में किया जाता है, जो सूर्यास्त के बाद का समय होता है।
लक्ष्मी पूजन के लिए आवश्यक सामग्री में शामिल हैं: देवी लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र, चावल, कुमकुम, हल्दी, फूल, पान, सुपारी, मिठाई, जल, गंगाजल, दीपक, धूप, नारियल, मुद्रा (सिक्के या नोट) और घी। इसके अलावा, नवधान्य (अनाज के नौ प्रकार) और श्रीयंत्र का भी विशेष महत्व होता है।
ईशान कोण या उत्तर दिशा को साफ करके वहां स्वास्तिक का चिह्न बनाएं। स्वास्तिक के ऊपर चावल की ढेरी रखें और उसके ऊपर लकड़ी का पाट रखें। पाट के ऊपर लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर मां लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। इस तस्वीर में भगवान गणेश और कुबेर की तस्वीर भी होनी चाहिए, साथ ही माता लक्ष्मी के दोनों ओर सफेद हाथियों के चित्र भी होने चाहिए। पूजा के दौरान पंचदेव की स्थापना अवश्य करें। पंचदेव में सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु आते हैं। इसके बाद धूप और दीप जलाएं, और सभी मूर्तियों और तस्वीरों पर जल छिड़ककर उन्हें पवित्र करें।
अब आप कुश (घास) के आसन पर बैठकर मां लक्ष्मी की षोडशोपचार पूजा करें, जो 16 विधियों से की जाती है। इन विधियों में पाद्य (पैर धोना), अर्घ्य (पानी अर्पित करना), आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग), आचमन, ताम्बूल (पान), स्तोत्र पाठ, तर्पण और नमस्कार शामिल हैं। पूजा के अंत में, सफल समापन के लिए दक्षिणा अर्पित करें।
मां लक्ष्मी और अन्य देवताओं के मस्तक पर हल्दी, कुमकुम, चंदन और चावल लगाएं। इसके बाद उन्हें हार और फूल अर्पित करें। पूजा में अनामिका अंगुली (रिंग फिंगर) से गंध, जैसे कि चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी आदि, लगाना चाहिए। यदि आप संक्षिप्त पूजा करना चाहते हैं, तो पंचोपचार विधि का पालन कर सकते हैं। लेकिन यदि आप विस्तृत पूजा करना चाहते हैं, तो षोडशोपचार विधि का अनुसरण करें।
दिवाली पर मां लक्ष्मी की पंचोपचार पूजा विधि (Laxmi Puja Panchopchaar Vidhi)
- देवता को गंध (चंदन) और हल्दी-कुमकुम अर्पित करना:
सबसे पहले अनामिका उंगली (रिंग फिंगर) से अपने आराध्य को चंदन लगाएं। इसके बाद, दाएं हाथ की अनामिका और अंगूठे से हल्दी और कुमकुम को क्रमशः उठाकर देवता के चरणों में चढ़ाएं। - देवता को पुष्प और पत्ते अर्पित करना:
भगवान को कृत्रिम फूलों की बजाय ताजे और प्राकृतिक पुष्प चढ़ाएं। देवता को अर्पित करने से पहले फूलों को न सूंघें। पुष्प चढ़ाने से पहले पत्ते चढ़ाएं। विशेष देवताओं के लिए विशिष्ट पत्र-पुष्प अर्पित करें, जैसे शिवजी को बिल्वपत्र और गणेशजी को दूर्वा तथा लाल पुष्प। फूलों को भगवान के चरणों में रखें, न कि सिर पर, और उनकी पंखुड़ियों को अपनी ओर तथा डंठल को देवता की ओर रखें। - देवता को धूप अर्पित करना:
धूप दिखाते समय उसे हाथ से न फैलाएं। इसके बाद विशेष सुगंध वाली अगरबत्ती से देवता की आरती उतारें। जैसे, शिवजी को हीना की और लक्ष्मीजी को गुलाब की सुगंध वाली अगरबत्ती से आरती उतारें। आरती के दौरान, बाएं हाथ से घंटी बजाते रहें। - दीप-आरती करना:
दीपक से तीन बार धीमी गति में आरती उतारें और इस समय बाएं हाथ से घंटी बजाते रहें। - प्रसाद या नैवेद्य अर्पित करना:
पूजा के बाद प्रसाद अर्पित करें, लेकिन ध्यान दें कि नैवेद्य में नमक, मिर्च या तेल का उपयोग नहीं होना चाहिए। प्रत्येक व्यंजन में तुलसी का पत्ता रखा जाता है। इस दिन लक्ष्मीजी को मखाना, सिंघाड़ा, बताशे, ईख, हलवा, खीर, अनार, पान, सफेद और पीले रंग की मिठाइयां, केसर-भात आदि अर्पित किए जाते हैं। पूजन में 16 प्रकार के पकवान जैसे गुजिया, पपड़ी, अनरसा, लड्डू, पुलहरा आदि चढ़ाए जाते हैं। इसके बाद, चावल, बादाम, पिस्ता, छुआरा, हल्दी, सुपारी, गेहूं, नारियल, धनिया आदि अर्पित करते हैं। अंत में केवड़े के फूल और आम्रबेल का भोग चढ़ाते हैं।
माता लक्ष्मी का मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:
ॐ महालक्ष्म्यै नमो नम: धनप्रदायै नमो नम: विश्वजनन्यै नमो नम:
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