देव दिवाली, जिसे कार्तिक पूर्णिमा या त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के पवित्र और प्रकाशमय त्योहारों में से एक है। यह त्योहार आमतौर पर दिवाली के पंद्रह दिन बाद मनाया जाता है और आध्यात्मिकता, विजय और रोशनी से जुड़ा हुआ है। इस लेख में, हम देव दिवाली 2024 की तिथि, पूजा विधि, महत्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथाओं का विस्तृत वर्णन करेंगे।
देव दिवाली 2024 कब है? (Dev Diwali 2024 Date)
वर्ष 2024 में देव दिवाली शुक्रवार, 15 नवंबर को मनाई जाएगी। पूर्णिमा तिथि 15 नवंबर की सुबह 6:19 बजे से प्रारंभ होगी और 16 नवंबर की सुबह 2:58 बजे समाप्त होगी। कई लोग शुभ मुहूर्त के अनुसार शाम के समय पूजा-अर्चना करते हैं।
देव दिवाली का महत्व (Dev Diwali Significance)
देव दिवाली का बहुआयामी महत्व है, जो आध्यात्मिकता, विजय और पर्यावरण जागरूकता से जुड़ा हुआ है। आइए, इन विभिन्न पहलुओं को गहराई से समझें:
- आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतीक: देव दिवाली को अंधकार पर प्रकाश की विजय के रूप में देखा जाता है। यह दिन आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने और आंतरिक अंधकार को दूर करने का अवसर प्रदान करता है। घरों और मंदिरों में जलाए जाने वाले दीप अज्ञानता को दूर करने और आत्मज्ञान प्राप्त करने का प्रतीक हैं।
- विवाह उत्सव: देव दिवाली भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का प्रतीक है। इस दिन भक्त इन दिव्य जोड़े की पूजा करते हैं और उनके वैवाहिक जीवन के आदर्श को अपनाते हैं।
- विजय का उत्सव: पौराणिक कथाओं के अनुसार, देव दिवाली के दिन भगवान विष्णु ने वामन रूप धारकर राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था। साथ ही, भगवान शिव ने भी इसी दिन शुम्भ-निशुम्भ नामक राक्षसों का संहार किया था। इसलिए, देव दिवाली बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
- पर्यावरण जागरूकता का संदेश: देव दिवाली के समय दीप जलाने की परंपरा पर्यावरण जागरूकता का संदेश भी देती है। दीपों की रोशनी से वातावरण शुद्ध होता है और कीड़े-मकोड़े दूर होते हैं। साथ ही, यह त्योहार हमें प्रकृति के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है।
देव दिवाली की पूजा विधि (Dev Diwali Puja Vidhi)
देव दिवाली की पूजा विधि सरल है, लेकिन इसमें गहरी आस्था और भक्ति निहित होती है। शुभ मुहूर्त में आप निम्न विधि से पूजा कर सकते हैं:
- स्नान और शुद्धि: देव दिवाली के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। घर की साफ-सफाई करके पूजा स्थल को भी साफ करें।
- पूजा सामग्री तैयार करना: पूजा के लिए गंगाजल, धूप, दीपक, तेल, रोली, मौली, फल, मिठाई, पान आदि सामग्री इकट्ठा कर लें। भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान विष्णु और गणेश जी की प्रतिमाएं या तस्वीरें स्थापित करें।
- दीप प्रज्वलित करना: शुभ मुहूर्त में दीप जलाएं और धूप−बत्ती लगाएं। घर के बाहर मुख्य द्वार पर भी दीप जलाना शुभ माना जाता है।
- आवाहन और पूजन: भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान विष्णु और गणेश जी का आवाहन करें और उन्हें पुष्प अर्पित करें। इसके बाद “ॐ नमः शिवाय” और “ॐ नमो नारायणाय” मंत्र का जाप करें। भगवान को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर का मिश्रण) और पंचामृत से स्नान कराएं।
- नैवेद्य अर्पित करना: अपने पसंदीदा भोजन या मिठाई का भोग लगाएं। आप फलों का भी भोग लगा सकते हैं।
- आरती: भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान विष्णु और गणेश जी की आरती उतारें। आप सामूहिक रूप से या व्यक्तिगत रूप से आरती कर सकते हैं। आरती के बाद भगवान की प्रार्थना करें और उनका आशीर्वाद लें।
- दान-पुण्य: देव दिवाली पर दान-पुण्य का विशेष महत्व माना जाता है। आप गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र या धन का दान कर सकते हैं। दान-पुण्य से पुण्य लाभ प्राप्त होता है और समाज में समरसता का भाव बढ़ता है।
- दीपदान: देव दिवाली को दीपदान का विशेष महत्व है। आप अपने घर के आसपास, नदी के किनारे या मंदिरों में दीप जला सकते हैं। आप दीपों को नदी में भी प्रवाहित कर सकते हैं, जिसे दीपावली कहा जाता है। यह दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करता है।
देव दिवाली से जुड़ी पौराणिक कथाएं (Dev Diwali Katha)
देव दिवाली के साथ दो प्रमुख पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं, आइए इन कथाओं को विस्तार से जानें:
1. त्रिपुरासुर वध:
पौराणिक कथा के अनुसार, त्रिपुरासुर नामक एक राक्षस था जिसने देवताओं को पराजित कर स्वर्गलोक पर अपना अधिकार कर लिया था। त्रिपुरासुर को भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु केवल उसी व्यक्ति के हाथों से हो सकती है जो तीन पग में पूरी पृथ्वी को नाप ले।
देवताओं की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किया। वामन रूप में भगवान विष्णु राजा बलि के पास पहुंचे और उनसे दान में तीन पग भूमि मांगी। राजा बलि दानी स्वभाव के थे, उन्होंने सहर्ष भगवान विष्णु को दान देने का वचन दिया।
भगवान विष्णु ने अपने पहले पग से आकाश को ढक लिया, दूसरे पग से पाताल लोक को ढक लिया और तीसरा पग रखने के लिए स्थान न होने पर राजा बलि ने अपना सिर आगे कर दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने वामन रूप में त्रिपुरासुर का वध कर देवताओं को स्वर्गलोक वापस दिलाया।
पौराणिक मान्यता है कि देव दिवाली के दिन ही भगवान विष्णु ने त्रिपुरासुर का वध किया था। इसलिए, इस दिन विष्णु भगवान की विशेष पूजा की जाती है।
2. भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह:
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, देव दिवाली के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। माता पार्वती भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनसे विवाह करने का वचन दिया था।
देवताओं और ऋषि-मुनियों की उपस्थिति में भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हिमालय पर्वत पर हुआ था। देव दिवाली के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
देव दिवाली: एक पर्यावरण अनुकूल त्योहार (Dev Diwali: An eco-friendly festival)
देव दिवाली का त्योहार पर्यावरण के प्रति जागरूकता का भी संदेश देता है। दीपों की रोशनी से वातावरण शुद्ध होता है और कीड़े-मकोड़े दूर होते हैं।
हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि दीप जलाते समय प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों का उपयोग न करें। हम मिट्टी के दीपों का उपयोग करके पर्यावरण को स्वच्छ रखने में योगदान दे सकते हैं।
उपसंहार
देव दिवाली का त्योहार आध्यात्मिकता, विजय और पर्यावरण जागरूकता का प्रतीक है। यह त्योहार हमें अंधकार पर प्रकाश की विजय और बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश देता है।