Paush Putrada Ekadashi Vrat 2025: पौष माह का आरंभ होते ही सनातन संस्कृति में एक पवित्र और पुण्यदायी अवधि प्रारंभ हो जाती है। यह समय धार्मिक साधना, उपवास, पूजा और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। इस पावन समय में आने वाली पुत्रदा एकादशी का महत्व विशेष रूप से संतान लाभ और वंश वृद्धि से जुड़ा हुआ है। पौष पुत्रदा एकादशी को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ अवसर माना जाता है।

यह व्रत उन दंपतियों के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है जो संतान सुख की कामना रखते हैं। शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि इस दिन श्रद्धा और भक्ति के साथ उपवास रखने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं, परिवार में खुशहाली आती है और जीवन में नई ऊर्जा का संचार होता है।
पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व
सनातन धर्म में एकादशी को अत्यंत पवित्र माना गया है, क्योंकि यह तिथि स्वयं भगवान विष्णु को प्रिय है। वर्ष में चौबीस एकादशियाँ आती हैं, किन्तु इनमें से कुछ विशेष फलदायी और अत्यंत शुभ मानी जाती हैं। पौष पुत्रदा एकादशी उनमें एक अत्यंत महत्वपूर्ण एकादशी है। इसका वर्णन कई पुराणों में मिलता है, जहाँ इसे वंश वृद्धि, संतान रक्षा और पारिवारिक समृद्धि के लिए प्रभावी उपाय बताया गया है। इस एकादशी का नाम ही इसके फल का प्रत्यक्ष संकेत देता है—यह “पुत्र देने वाली एकादशी” के नाम से प्रसिद्ध है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार, इस दिन उपवास रखने वाले साधक के पाप नष्ट होते हैं, मानसिक शांति मिलती है और जीवन के सभी कष्ट दूर होने लगते हैं।
यह एकादशी हर वर्ष दो बार आती है—पहली सावन मास में और दूसरी पौष माह में। सावन पुत्रदा एकादशी वर्षा ऋतु के मध्य में आती है जब प्रकृति पूर्ण रूप से हरी-भरी होती है, जबकि पौष पुत्रदा एकादशी शीत ऋतु में आती है जब वातावरण शांत, पवित्र और साधना के लिए अनुकूल माना जाता है। दोनों ही एकादशियों में भगवान विष्णु का व्रत रखा जाता है, लेकिन पौष पुत्रदा एकादशी का फल विशेष रूप से संतान प्राप्ति और संतान संबंधी बाधाओं के निवारण से जुड़ा हुआ है।
पौष माह में इस एकादशी का विशेष महत्व क्यों?
पौष मास हिंदू पंचांग का दसवां महीना है, जिसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस माह को देवताओं का विशेष प्रिय समय माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि इस समय साधना, जप, ध्यान और उपवास के फल कई गुना बढ़ जाते हैं। पौष मास में पड़ने वाली पुत्रदा एकादशी का प्रभाव इसलिए और भी अधिक माना जाता है क्योंकि यह काल विष्णु उपासना के लिए श्रेष्ठ होता है। इस समय भगवान विष्णु के कई प्रमुख व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं, जिनमें यह एकादशी प्रमुख है।
इस एकादशी पर रखे गए व्रत का फल शास्त्रों के अनुसार अश्वमेध यज्ञ के समान बताया गया है। यही कारण है कि सदियों से दंपति संतान इच्छा के लिए इस महान व्रत का नियमपूर्वक पालन करते आए हैं। इसके अतिरिक्त यह एकादशी परिवार के लिए स्वास्थ्य, शांति और समृद्धि का भी वरदान देती है। कहा जाता है कि इस दिन विष्णु-लक्ष्मी की पूजा से घर में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
पुत्रदा एकादशी 2025 कब है? पूर्ण शुभ मुहूर्त और तिथि विवरण
पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ 30 दिसंबर की सुबह 07 बजकर 50 मिनट पर होगा। यह तिथि अगले दिन 31 दिसंबर की सुबह 05 बजे समाप्त होगी। परंपरा के अनुसार, एकादशी की तिथि सूर्योदय के आधार पर मानी जाती है, इसलिए सामान्य श्रद्धालु 30 दिसंबर 2025 को व्रत और पूजा करेंगे। वहीं वैष्णवों की परंपरा के अनुसार यह व्रत 31 दिसंबर को माना जाएगा, क्योंकि वे पारंपरिक नियमों के अनुसार हर तिथि सूर्योदय से ही ग्रहण करते हैं।
इस बार की पौष पुत्रदा एकादशी अत्यंत विशेष है क्योंकि इस दिन कई शुभ योग भी बन रहे हैं, जो व्रत और पूजा के फल को और अधिक शक्तिशाली बनाते हैं। वर्ष के अंतिम दिनों में आने वाली यह एकादशी भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक अवसर प्रदान करती है, जिससे वे नए वर्ष के प्रारंभ से पहले दिव्य आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।
2025 में पुत्रदा एकादशी पर बन रहे शुभ और दुर्लभ योग
ज्योतिषीय दृष्टि से 2025 की पौष पुत्रदा एकादशी अत्यंत शुभ संयोगों से युक्त है। इस दिन सिद्ध योग, रवि योग, शुभ योग और भद्रावास जैसे कई मंगलकारी योग बन रहे हैं। इन योगों का प्रभाव अत्यंत सकारात्मक माना जाता है। सिद्ध योग कार्यों की सिद्धि का सूचक होता है, अर्थात इस दिन किया गया हर कार्य फलीभूत होता है। शुभ योग जीवन में सौभाग्य और प्रसन्नता लाता है। वहीं रवि योग सूर्य देव की अत्यंत शुभ दृष्टि का प्रतीक है, जो सभी बाधाओं को नष्ट करने वाला माना गया है। भद्रावास योग भी एक शुभ योग माना जाता है, जिसका प्रभाव पूजा और साधना के लिए अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है।
इन सभी शुभ योगों के प्रभाव से इस एकादशी की महत्ता और अधिक बढ़ जाती है। ज्योतिष शास्त्र के विद्वानों का मानना है कि ऐसे दिव्य योग बहुत कम बार बनते हैं, इसलिए इस बार की एकादशी का फल साधक को सामान्य से कई गुना अधिक प्राप्त होगा। इस दिन लक्ष्मी-नारायण की आराधना परिवार में धन, वैभव और संतान-सुख प्रदान करती है।
पौष पुत्रदा एकादशी की कथा: पौराणिक प्रसंग और महत्व
पुत्रदा एकादशी से जुड़ी कथा पद्म पुराण में वर्णित है। प्राचीन समय में भद्रावती नाम का नगर था जिसका राजा सुकर्मा था। राजा अत्यंत धर्मपरायण था, परंतु उसके जीवन की सबसे बड़ी पीड़ा यह थी कि उसे संतान सुख प्राप्त नहीं था। पूर्ण समृद्धि और वैभव होने के बाद भी संतान के अभाव में वह निराश और दुखी रहता था। एक दिन अपनी व्यथा से विचलित होकर राजा जंगल में चला गया। वहाँ उसकी भेंट ऋषियों से हुई। जब ऋषियों ने उसकी समस्या जानी, तो उन्होंने उसे पौष शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी व्रत रखने का परामर्श दिया।
राजा ने श्रद्धापूर्वक व्रत रखा और भक्तिभाव से भगवान विष्णु की उपासना की। कुछ समय बाद उसकी पत्नी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। इस प्रकार राजा के जीवन की सबसे बड़ी इच्छा पूर्ण हुई। राजा ने इसे ईश्वर का आशीर्वाद माना और इस व्रत को जीवन भर किया। इसी कथा के कारण इस एकादशी को पुत्र प्रदान करने वाली एकादशी कहा जाता है।
मंदिरों में होने वाली पूजा और भक्तों की भीड़
पौष पुत्रदा एकादशी के अवसर पर देश भर के विष्णु मंदिरों में विशेष दर्शन और आरती का आयोजन किया जाता है। भक्त प्रातःकाल से ही मंदिरों में पहुंचकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के दर्शन करते हैं। विशेष रूप से लक्ष्मी-नारायण, जगन्नाथ, श्री हरि और श्री विष्णु के मंदिरों में इस दिन भक्तों की संख्या बहुत अधिक बढ़ जाती है। मंदिरों में फूलों से विशेष सजावट की जाती है और कई स्थानों पर भजन-कीर्तन, विष्णु सहस्रनाम पाठ और गीता पाठ का आयोजन भी होता है।
साधक उपवास रखते हुए पूरे दिन भक्ति-संगीत, पाठ और ध्यान में समय बिताते हैं। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपति भगवान के समक्ष विशेष प्रार्थना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन की गई पूजा विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है क्योंकि इसे स्वयं भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पौष पुत्रदा एकादशी की पारण विधि 2025
एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि के दिन किया जाता है। 2025 में पुत्रदा एकादशी का पारण समय 31 दिसंबर को दोपहर 01:29 बजे से 03:33 बजे के बीच निर्धारित है। पारण का समय शास्त्रों में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, इसलिए व्रतधारी को इसी अवधि में व्रत का समापन करना चाहिए। पारण में सबसे पहले भगवान विष्णु को भोग लगाया जाता है, उसके बाद जल ग्रहण कर व्रत खोला जाता है।
पुत्रदा एकादशी का मनोवैज्ञानिक और पारिवारिक प्रभाव
पुत्रदा एकादशी का व्रत केवल धार्मिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह मानसिक और पारिवारिक रूप से भी अत्यंत सकारात्मक प्रभाव डालता है। उपवास से शरीर शुद्ध होता है, मन शांत होता है और विचारों में स्पष्टता आती है। परिवार के लोग साथ मिलकर पूजा करते हैं, जिससे घर में सामंजस्य बढ़ता है। संतान की कामना करने वाले दंपतियों के लिए यह व्रत मानसिक शक्ति, आशा और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। धैर्य, अनुशासन और श्रद्धा का यह अभ्यास जीवन को स्थिर और संतुलित बनाता है।
पौष पुत्रदा एकादशी धार्मिक, आध्यात्मिक और पारिवारिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण तिथि है। यह व्रत जीवन में संतान सुख, समृद्धि और शांति लाने वाला माना गया है। 2025 की यह एकादशी कई शुभ योगों से युक्त है, इसलिए इसका प्रभाव विशेष रूप से शक्तिशाली रहेगा। श्रद्धा, भक्ति और पूर्ण विश्वास के साथ इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की दिव्य कृपा अवश्य प्राप्त करता है। यह दिन न केवल संतान सुख का वरदान देता है, बल्कि जीवन में सकारात्मकता और पवित्रता भी भर देता है। इस पावन एकादशी के माध्यम से भक्त अपने जीवन को नए संकल्प, नई आशा और दिव्य ऊर्जा से भर सकते हैं।
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