श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 3 श्लोक 21 (Bhagavad Geeta Adhyay 3 Shloka 21 in Hindi): श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 3 का यह श्लोक 21 कर्मयोग के सिद्धांत को सामाजिक दृष्टिकोण से स्पष्ट करता है। इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को यह बताते हैं कि समाज जिनका अनुसरण करता है, वे श्रेष्ठजन यदि शुद्ध और आदर्श आचरण करें, तो संपूर्ण समाज उनके पदचिन्हों पर चलेगा।
भगवद गीता अध्याय 3 श्लोक 21 का मूल पाठ और अर्थ
श्लोक 3.21
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः |
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ||
शब्दार्थ:
- यत् यत् – जो-जो
- आचरति – करता है
- श्रेष्ठः – आदरणीय, नेता
- तत् एव – वही
- इतरो जनः – अन्य लोग
- प्रमाणम् – उदाहरण
- कुरुते – करता है
- लोकः – संसार
- अनुवर्तते – अनुसरण करता है
गीता अध्याय 3 श्लोक 21 भावार्थ:
“महापुरुष जो-जो आचरण करते हैं, सामान्य लोग उसी का अनुसरण करते हैं। वे जिन कार्यों को आदर्श रूप में प्रस्तुत करते हैं, समस्त समाज उनका अनुसरण करता है।”
मुख्य भाव और शिक्षाएं
1. समाज को दिशा देने वाला होता है नेता
सामान्य व्यक्ति हमेशा एक ऐसे मार्गदर्शक की खोज में रहता है जो केवल उपदेश न दे, बल्कि उसे आचरण द्वारा दिशा भी दिखाए। इसलिए जो भी व्यक्ति समाज में श्रेष्ठ पद पर है — चाहे वह पिता हो, शिक्षक हो, नेता हो, या गुरु — उसका हर कार्य समाज के लिए उदाहरण बनता है।
2. आचरण की शक्ति शब्दों से अधिक होती है
यदि कोई शिक्षक या नेता स्वयं अनुशासित नहीं है, तो वह दूसरों को अनुशासन नहीं सिखा सकता। जैसे यदि कोई नेता स्वयं धूम्रपान करता है, तो वह जनता को तंबाकू से दूर रहने का संदेश नहीं दे सकता। इसलिए सदाचरण ही सबसे बड़ा संदेश होता है।
3. आदर्श शिक्षकों का अनुसरण अनिवार्य है
श्रीमद्भागवत में भी यही बताया गया है कि आध्यात्मिक प्रगति उन्हीं को मिलती है जो महान भक्तों के पदचिन्हों का अनुसरण करते हैं। चैतन्य महाप्रभु ने भी कहा है कि “शिक्षा देने से पहले शिक्षक को स्वयं उसका आचरण करना चाहिए।”
तात्पर्य (विश्लेषण)
शास्त्रों के अनुसार आचरण ही है नेतृत्व का मापदंड
- श्रीकृष्ण इस श्लोक में समाज में नेतृत्व और अनुकरण के रिश्ते को समझा रहे हैं।
- मनु-संहिता जैसे ग्रंथों में जीवन जीने के आदर्श नियम दिए गए हैं, जिनका पालन नेता को करना चाहिए।
- कोई भी शिक्षक या राजा शास्त्रों से हटकर नए नियम नहीं बना सकता जो समाज के लिए अनुकरणीय हों।
नेताओं का दायित्व – नैतिक और आध्यात्मिक रूप से सुदृढ़ होना
- एक शिक्षक, राजा, पिता या गुरु — ये सब समाज के नैतिक स्तंभ हैं।
- इनके आचरण का प्रभाव केवल वर्तमान पीढ़ी पर नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों पर भी पड़ता है।
- अतः इन्हें चाहिए कि वे स्वयं को शास्त्रीय ज्ञान, नैतिकता और अध्यात्म में कुशल बनाएं।
चैतन्य महाप्रभु का दृष्टिकोण
चैतन्य महाप्रभु ने कहा था —
“आचरन पूर्वक शिक्षा देना ही श्रेष्ठता है।”
उनका मानना था कि एक आदर्श शिक्षक वही है जो पहले स्वयं उस पथ पर चले जिस पर वह दूसरों को चलाना चाहता है। यही शिक्षण की सबसे प्रभावी और स्थायी विधि है।
श्रीमद्भागवत का समर्थन
श्रीमद्भागवत में कहा गया है:
“महाजनो येन गतः स पन्थाः”
(अर्थात, जिस मार्ग पर महापुरुष चले हैं, वही अनुसरणीय पथ है)।
यह श्लोक गीता के श्लोक 3.21 को और दृढ़ता से स्थापित करता है कि श्रेष्ठ पुरुषों का आचरण ही समाज का मार्गदर्शन करता है।
निष्कर्ष
श्रीमद्भगवद्गीता का यह श्लोक कर्मयोग का सामाजिक आयाम प्रकट करता है।
यदि समाज के श्रेष्ठजन केवल उपदेश न देकर उसे स्वयं जीवन में उतारें, तो जनता स्वतः उन्हें अपनाती है। यही कारण है कि श्रीकृष्ण स्वयं यद्यपि परमेश्वर हैं, फिर भी उन्होंने अर्जुन से कहा कि वे कर्म किए बिना नहीं रह सकते, क्योंकि उनके कर्म को देखकर ही लोग प्रेरणा लेंगे।
इसलिए यदि हम समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाना चाहते हैं, तो हमें स्वयं वह बनना होगा जो हम दूसरों में देखना चाहते हैं।
Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद
FAQs
1. श्लोक 3.21 का मुख्य संदेश क्या है?
इस श्लोक का मुख्य संदेश यह है कि समाज के श्रेष्ठ लोग (नेता, गुरु, पिता) जैसा आचरण करते हैं, सामान्य लोग भी उसी का अनुसरण करते हैं। यह हमें नेतृत्व और उत्तरदायित्व का महत्व समझाता है।
2. आधुनिक समय में यह श्लोक कैसे प्रासंगिक है?
आज भी राजनीति, शिक्षा, व्यापार और परिवार में नेतृत्व करने वाले लोगों का आचरण समाज को प्रभावित करता है। यदि नेता ईमानदार और अनुशासित हैं, तो जनता भी उनका अनुसरण करेगी।
3. चैतन्य महाप्रभु ने शिक्षकों के बारे में क्या कहा है?
चैतन्य महाप्रभु के अनुसार, “शिक्षक को पहले स्वयं आचरण करना चाहिए, फिर दूसरों को सिखाना चाहिए।” यही एक आदर्श गुरु का लक्षण है।
4. मनु-संहिता और गीता का इस श्लोक से क्या संबंध है?
मनु-संहिता और गीता जैसे ग्रंथ मानवता के लिए नैतिक मार्गदर्शक हैं। नेताओं को इनके सिद्धांतों पर चलकर ही समाज को सही दिशा देनी चाहिए।
5. एक अच्छा नेता कैसे बन सकता है?
एक अच्छा नेता बनने के लिए:
स्वयं अनुशासित रहें
शास्त्रों और नैतिक मूल्यों का पालन करें
जिम्मेदारी का भाव रखें