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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 12 Shloka 12 | गीता अध्याय 3 श्लोक 12 अर्थ सहित | इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः…..

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 3 श्लोक 12 (Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 12 in Hindi): भगवद्गीता हिंदू धर्म का एक पवित्र ग्रंथ है जो मानव जीवन के हर पहलू पर प्रकाश डालता है। गीता के तीसरे अध्याय का 12वाँ श्लोक (BG 3.12) यज्ञ, दान और ईश्वर भक्ति के महत्व को समझाता है। इस श्लोक में श्रीकृष्ण कहते हैं कि देवता यज्ञ से प्रसन्न होकर मनुष्यों को सभी सुख-सुविधाएँ प्रदान करते हैं, लेकिन जो इन वस्तुओं को बिना यज्ञ किए भोगता है, वह चोर है।

आज के आधुनिक युग में जहाँ लोग भौतिकवाद में लिप्त हैं, वहाँ यज्ञ की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। इस लेख में हम भगवद्गीता 3.12 के गहन अर्थ, यज्ञ के प्रकार और आज के समय में इसके अनुप्रयोग पर चर्चा करेंगे।

Table of Contents

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 3 श्लोक 12 (Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 12)

गीता अध्याय 3 श्लोक 12 अर्थ सहित (Gita Chapter 3 Verse 12 in Hindi with meaning)

गीता अध्याय 3 श्लोक 12 अर्थ सहित (Gita Chapter 3 Verse 12 in Hindi with meaning)
Gita Chapter 3 Verse 12

गीता अध्याय 3 श्लोक 3.12: मूल संस्कृत पाठ और हिंदी अनुवाद

इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः।
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः॥ 12॥

शब्दार्थ विश्लेषण:

  • इष्टान् = वांछित
  • भोगान् = भौतिक सुख
  • देवाः = देवता
  • दास्यन्ते = देंगे
  • यज्ञभाविताः = यज्ञ से प्रसन्न होकर
  • स्तेनः = चोर

सरल हिंदी भावार्थ:

“देवता यज्ञ करने वाले व्यक्तियों को उनकी इच्छित वस्तुएँ प्रदान करते हैं। लेकिन जो व्यक्ति इन वस्तुओं को देवताओं को अर्पित किए बिना भोगता है, वह निश्चित रूप से चोर है।”

देवता हमें क्या देते हैं?

प्राकृतिक संसाधनों जैसे अन्न, जल, वायु, सूर्य, चंद्रमा आदि को वरदान के रूप में देवताओं द्वारा मानव को प्रदान किया जाता हुआ
प्राकृतिक संसाधनों जैसे अन्न, जल, वायु, सूर्य, चंद्रमा आदि को वरदान के रूप में देवताओं द्वारा मानव को प्रदान किया जाता हुआ

हमारी सारी आवश्यकताएँ — चाहे वो शाकाहारी हों या मांसाहारी, चाहे जल हो या वायु, प्रकाश हो या खनिज — ये सब हमें देवताओं द्वारा प्राप्त होती हैं। उदाहरण के लिए:

  • 🌾 अन्न, फल, दूध, शाक आदि
  • 💨 वायु और प्राणवायु
  • ☀️ सूर्य का प्रकाश और ऊर्जा
  • 🌧 वर्षा और जल का स्रोत
  • ⛰ खनिज, धातुएँ, गैस, कोयला आदि

इनमें से कोई भी वस्तु मनुष्य स्वयं उत्पन्न नहीं कर सकता।

यदि हम अर्पण नहीं करते, तो क्या होता है?

गीता अध्याय 3 श्लोक 12 के अनुसार, जो मनुष्य इन उपहारों को बिना यज्ञ या अर्पण के भोगता है, वह “स्तेनः” — अर्थात् “चोर” कहलाता है। ऐसा व्यक्ति केवल भोगवादी होता है और आध्यात्मिक उन्नति से वंचित रहता है।

यज्ञ क्यों आवश्यक है?

1. देवताओं की भूमिका प्रकृति प्रबंधन में

श्रीकृष्ण गीता में स्पष्ट करते हैं कि देवता भगवान विष्णु के प्रतिनिधि हैं जो प्रकृति का संचालन करते हैं। वर्षा, हवा, सूर्य का प्रकाश और उपजाऊ भूमि सभी देवताओं के अधीन हैं। यज्ञ करने से देवता प्रसन्न होते हैं और मनुष्यों को आशीर्वाद देते हैं।

2. प्रकृति और मनुष्य का पारस्परिक संबंध

हमारा जीवन प्रकृति पर निर्भर है। बिना सूर्य, जल, वायु और अन्न के जीवन असंभव है। यज्ञ करके हम प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

3. चोरी का दोष क्या है?

जो व्यक्ति प्रकृति के संसाधनों का उपयोग करता है लेकिन यज्ञ या दान नहीं करता, वह चोर है। उदाहरण के लिए:

  • बिना दान के धन संचय करना
  • वनों की अंधाधुंध कटाई करना
  • नदियों को प्रदूषित करना

यज्ञ के प्रमुख प्रकार (वैदिक और आधुनिक)

1. पंचमहायज्ञ (हिंदू धर्म के पाँच प्रमुख यज्ञ)

यज्ञ का नामउद्देश्य
ब्रह्मयज्ञवेद पाठ और ज्ञान दान
देवयज्ञअग्नि में आहुति देना
पितृयज्ञपितरों को तर्पण देना
मनुष्ययज्ञगरीबों को भोजन दान
भूतयज्ञपशु-पक्षियों को अन्न देना

2. संकीर्तन यज्ञ (कलियुग का सबसे सरल यज्ञ)

चैतन्य महाप्रभु ने कहा कि कलियुग में हरिनाम संकीर्तन (भगवान के नाम का जप) सबसे बड़ा यज्ञ है।

चैतन्य महाप्रभु ने कहा कि कलियुग में हरिनाम संकीर्तन
चैतन्य महाप्रभु कलियुग में हरिनाम संकीर्तन

3. आधुनिक युग के यज्ञ

  • सामाजिक सेवा (दान, अन्नक्षेत्र)
  • पर्यावरण संरक्षण (वृक्षारोपण, जल बचाना)
  • आध्यात्मिक यज्ञ (मंत्र जप, ध्यान)

आज के युग में यज्ञ कैसे करें? (व्यावहारिक सुझाव)

1. दैनिक जीवन में छोटे-छोटे यज्ञ

  • प्रातःकाल तुलसी को जल चढ़ाना
  • गाय को रोटी खिलाना
  • पक्षियों के लिए दाना-पानी रखना

2. सामाजिक यज्ञ

  • रक्तदान करना
  • विद्यालयों में निःशुल्क शिक्षा देना
  • गरीब बच्चों को किताबें दान करना

3. डिजिटल युग में यज्ञ

  • ऑनलाइन धार्मिक प्रवचन सुनना
  • भजन-कीर्तन के YouTube चैनल्स को सपोर्ट करना
  • सोशल मीडिया पर आध्यात्मिक ज्ञान बाँटना

यज्ञ न करने के नुकसान (क्या होता है अगर हम यज्ञ नहीं करते?)

  1. प्रकृति का प्रकोप – बाढ़, सूखा, जलवायु परिवर्तन
  2. मानसिक अशांति – तनाव, अवसाद, चिंता
  3. आर्थिक समस्याएँ – धन की कमी, नौकरी में अस्थिरता

निष्कर्ष: यज्ञ ही जीवन का आधार

भगवद्गीता का श्लोक 3.12 हमें सिखाता है कि “जो देवताओं को अर्पित किए बिना भोगता है, वह चोर है।” आज के समय में यज्ञ का अर्थ सिर्फ हवन-पूजा नहीं, बल्कि सामाजिक सेवा, दान और प्रकृति संरक्षण भी है।

“यज्ञ करो, दान दो, और ईश्वर के प्रति कृतज्ञ रहो – यही सच्चा सुखी जीवन जीने का मार्ग है।”

अगर हम यज्ञ को अपने जीवन का हिस्सा बना लें, तो न केवल हमारा जीवन सुखमय होगा, बल्कि समाज और प्रकृति भी संतुलित रहेगी।

Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस

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